सिहरन मन की।

सिहरन मन की।  

चंदन गात तुम्हारा रूपसी यादों में मुस्काता है
हौले से इक सिहरन मन के मृदु भावों को छू जाता है।।

प्राची से छनकर किरणें जब मन का चुंबन लेती हैं
भावों के उपवन में कितने सपने में वो बुन लेती हैं
सपनों के आलिंगन में जब-जब ऊषा ने अँगड़ाई ली 
हौले से मुस्काती प्राची भाव सुनहरे रच देती है।।

रूप सुनहरा जब जब तेरा मन उपवन में लहराता है
हौले से इक सिहरन मन के मृदु भावों को छू जाता है।।

पदचापों की मधुर रागिनी जब भरती गीतों का आँगन
तब-तब मन के उपवन में सजती है पुण्य सुरों की सरगम
कंगन की खन-खन सुन कर तब खिल जाती हैं मन की कलियाँ
नये सुरों में गीत सजा मन सुनना चाहे मृदु संबोधन।।

अधरों का मृदु कंपन जब-जब नवगीत मनहरा गाता है
हौले से इक सिहरन मन के मृदु भावों को छू जाता है।।

शब्दों का संयोजन ऐसा गीतों की हो मधुर पालकी
अधरों का संबोधन ऐसा बातें किरणें स्वतः मानती
रच जाते हैं नव गीत कई मृदु भावों के मुस्काने से
खिल जाता हैं मधुवन सारा गीतों में तेरे गाने से।।

तेरे पलकों के नरतन से दृश्य मनोरम हो जाता है
हौले से इक सिहरन मन के मृदु भावों को छू जाता है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25जनवरी, 2022

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