शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।
रश्मि की गोद में स्वप्न कितने बुने
हो विदित के यहाँ मोक्ष की राह पर
शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।
छंद की पंक्ति में जो समाहित हुआ
भाव के रूप में जो आवाहित हुआ
अरु वाणी में जिसके मधुर तान थी
वही गीत अधरों से प्रवाहित हुआ।।
जो कहे गीत पल पल मधुरतम बने
प्रीत के भाव में वो निकटतम बने
हो विदित के यहाँ मोक्ष की राह पर
शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।
रात ने ओट से भोर से कुछ कहा
वो जो बीती निशा में क्या कुछ सहा
मौन को गीत से था मिला आसरा
प्रीत के पाश में गुनगुनाता रहा।।
अंक में प्रीत के स्वप्न जितने बुने
पंथ में प्रीत के पुष्प उतने चुने
हो विदित के यहाँ मोक्ष की राह पर
शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।
हैं समर्पित दिशायें तुम्हारे लिये
गीतों की अदायें तुम्हारे लिये
शब्द श्रृंगार से अब सजे जो यहाँ
वो सारी विधायें तुम्हारे लिये।।
पंथ में पुण्य के ग्रंथ जितने सुने
पंक्ति ने जीत के पंथ उतने बुने
हो विदित के यहाँ मोक्ष की राह पर
शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09जनवरी, 2022
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