जमाना गुनगुनायेगा।

जमाना गुनगुनायेगा।  

हाल ए दिल जानने तिरा यहाँ अब कौन आयेगा
हवाओं ने नजर फेरी संदेशा कौन लायेगा।।

ये माना नींद तुझको तो कभी आई नहीं लेकिन
बता पलकों में तिरी नींदों को फिर कौन लायेगा।।

तिरे गीतों ने पलकों को दिखाये हैं कई सपने
संग में तू नहीं होगा उन्हें फिर कौन गायेगा।।

मिले जो जख्म दुनिया से नहीं मुश्किल भुलाना है
मगर दिल की लगी को फिर कोई कैसे भुलायेगा।।

है बाकी रोशनी अब भी कहीं मन के अँधेरों में
तुम्हारा साथ पाया जो दिया फिर टिमटिमायेगा।।

चलो कुछ गीत हम रच दें ज़माने की रवायत के
सदियों बाद भी जिनको ये जमाना गुनगुनायेगा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जनवरी, 2022

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