गीतों का मत उपहास करो।
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।
सुख की उम्मीदों में हमने अगणित दुख भी पाले हैं
फिर भी कदम कदम पर मेरे सुख पर कैसे ताले हैं
मेरे सुख के तालों पर अब तुम भी मत अनुताप करो
मुझको पश्चाताप नहीं मत तुम भी पश्चाताप करो।।
मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।
सुख की सेजों पर ही सोऊँ माँगा कब वरदान यहाँ
पीड़ा की गलियों में विचरूँ ऐसी भी ना चाह यहाँ
पीड़ा की गलियों में अब तुम मत कोई अभिताप करो
मुझको पश्चाताप नहीं मत तुम भी पश्चाताप करो।।
मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।
इस सारे संसार मध्य में ऑंसू आज सहारा है
किससे कहूँ हृदय की बातें किसको कहूँ हमारा है
मेरे आँसू पर अब तुम मत कोई भी परिताप करो
मुझको पश्चाताप नहीं मत तुम भी पश्चाताप करो।।
मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।
मोम नहीं अब पत्थर हूँ मै दर्द का यहाँ समंदर हूँ
जितना जग ने बाहर समझा उतना ही मैं अंदर हूँ
अब होने ना होने का तुम मत कोई अभिताप करो
मुझको पश्चाताप नहीं मत तुम भी पश्चाताप करो।।
मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12जनवरी, 2022
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