जो न लिखता क्या मैं करता।

जो न लिखता क्या मैं करता।   

चल रहा था जिस सफर में बैठ कर के क्या मैं करता
इम्तिहानों की डगर थी जो न लड़ता क्या मैं करता।।

दिल किया मेरा कहूँ मैं बात तुमसे जो थी सारी
तुम नहीं जब सुन सके फिर बोल कर के क्या मैं करता।।

चाह थी इतनी मेरी के संग में तेरे चलूँ मैं
साथ मेरा जब न भाया फिर ठहर कर क्या मैं करता।।

जाने था कैसा वहम दिलों में जो घर कर गयी थी
बात जो समझा न पाया खुद समझ कर क्या मैं करता।।

कितनी ही सदियाँ घुल गयीं थी इक घरौंदे के लिये
दोराहे पर जब जिंदगी खुद बसर कैसे मैं करता।।

वो इश्क की जो एक कहानी थी हमारे दरमियाँ
रास जब तुमको न आयी भूलता ना क्या मैं करता।।

वो दीप थे जो भी जलाये हमने तेरे नाम के
आग जब दामन पे पहुँची फूँकता न क्या मैं करता।।

अब कट रही है जिंदगी बिन तेरे कैसे मैं कहता
गीत का ही आसरा था जो न लिखता क्या मैं करता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       07जनवरी, 2022

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...