भटक न जाना कहीं बिखर कर।

भटक न जाना कहीं बिखर कर।  

भीड़ बड़ी हैं इन राहों पर
सबके अपने अपने मेले
अगणित आशायें हैं पथ में
अगणित इच्छाओँ के रेले
दूर बड़ी मंजिल है माना
चलना हमको सँभल सँभल कर
पग पग अवसादों के मेले
भटक न जाना कहीं बिखर कर।।

मोड़ मोड़ पर कितनी आँखें
रह रह तुझको घूर रही हैं
तेरे पथ के अँधियारों से
अनजानी अरु दूर रही हैं
उनसे आगे जाना है तो
इच्छाओं को आज प्रबल कर
पग पग अवसादों के मेले
भटक न जाना कहीं बिखर कर।।

धारा के विपरीत चले जब
तूफानों से फिर क्या डरना
बीच राह में भँवर मिलेंगे
तुझको सबसे पार उतरना
मन में रख तू एक किनारा
होड़ मची है लहर लहर पर
पग पग अवसादों के मेले
भटक न जाना कहीं बिखर कर।।

सबका अपना अपना जीवन
इच्छाओं से सब जीते हैं
कोई पल पल रोता रहता
कोई हँस कर दुःख पीते हैं
घने कुहासे लाख भले हो 
सूरज नहीं छुपा अंबर पर
पग पग अवसादों के मेले
भटक न जाना कहीं बिखर कर।।

जब तेरा उद्देश्य अडिग हो
अरु हो तेरा विश्वास अटल 
अवसाद भरे ताने कितने 
क्या तुझे करेंगे कहीं विकल
दृढ़ता को हथियार बना कर
विजय पताका लगा शिखर पर
अवसादों से दूर निकल कर
चलो मुक्त हो आज शिखर पर।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01जनवरी, 2022

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