लेखनी जब चले मन बहकने लगे।

लेखनी जब चले मन बहकने लगे।  

शब्द का ज्ञान ले भाव संज्ञान ले
सपनों की वादियों में मुस्कान ले
कुछ रचे शब्द मन में थिरकने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

चाँदनी ने कही जो अधूरी कथा
तारों के मन की वो अधूरी व्यथा
रात भर ओस में तन फिसलने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

अभिव्यक्तियों के भाव मन में लिये
पंक्ति में अक्षरों ने है अंतस छुये
शब्द ऐसे रचे मन समझने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

अश्रु पलकों में आकर रुके रह गये
अधरों ने भाव मन के ऐसे कहे
हर्ष के अश्रु बनकर वो चमकने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

नीर का भाव से मौन संबंध है
पीर का पलकों से ज्यूँ अनुबंध है
पीर के पलों में अश्रु तड़पने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

शब्द ऐसे चुनें गीत ऐसे लिखें
भावों के मर्म को जो बिखेरा करें
रश्मियाँ गीत की यूँ दमकने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

है यहाँ क्या कहो इक सिफर के सिवा
जिंदगी क्या कहो इक सफर के सिवा
राह में सब चलें सब समझने लगें
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        04जनवरी, 2022



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