तूफां में भी कश्ती सँभल जायेगी यहाँ।
नदियों के भी प्रवाह बदल जायेंगी यहाँ
अब क्या करोगे सोच के कि किसको क्या मिला
चले जो साथ मंजिलें मिल जायेंगी यहाँ।।
कैसे कहूँ के याद अब आती नहीं मुझे
कैसे कहूँ के राहें बुलाती नहीं मुझे
कैसी है मजबूरी क्या बताऊँ मैं यहाँ
तू भी तो बात अपनी बताती नहीं मुझे।।
थी कोई खता यहाँ जो मौसम बदल गया
न जाने क्या हुआ था जो मन ये मचल गया
तुमसे खता हुई या कि मुझसे हुई यहाँ
जाने हुई क्या बात जो रिश्ता बदल गया।।
वो रात की जो बात गुजर जायेगी यहाँ
सुधरी हुई थी और सुधर जायेगी यहाँ
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लें सभी
तूफां में भी कश्ती सँभल जायेगी यहाँ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01जनवरी, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें