शब्दों में छलकेगा ही।

शब्दों में छलकेगा ही।  

जीवन के इस महासिन्धु की
है छोटी सी धारा माना
उद्गम पर यदि रोक लगेगी
शब्दों में फिर छलकेगा ही।।

प्यालों में सिमटा ना पाया
जीवन भर जल की बूँदों को
पलकों में सिमटा ना पाया
भावों की बहती बूँदों को
भावों पर यदि रोक लगेगी
पलकों से फिर छलकेगा ही
उद्गम पर यदि रोक लगेगी
शब्दों में फिर छलकेगा ही।।

बीच भँवर में साथ छोड़ना
उत्तम कैसे कहो कहूँ मैं
भय के आगे पीठ मोड़ना
संयम कैसे कहो कहूँ मैं
संयम पर आघात लगेगा
आवाजों में तड़पेगा ही
उद्गम पर यदि रोक लगेगी
शब्दों में फिर छलकेगा ही।।

जिसने कर्मयोग को समझा
गुण- दोष उसी ने पहचाना
आरोपों के चक्रव्यूह में
उसका ही है आना जाना
कर्मयोग का पुष्प खिला कर
सँवरेगा अरु महकेगा ही
उद्गम पर यदि रोक लगेगी
शब्दों में फिर छलकेगा ही।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17जनवरी, 2022



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