वरना गीत अधूरे रह जायेंगे।
वरना जो भी गीत लिखे हैं सभी अधूरे रह जायेंगे।।
जीवन भर महकूँ मैं यूँ ही
मन में मेरे नहीं लालसा
गीतों की गलियों में बहकूँ
ऐसी भी है नहीं लालसा
पर मेरे गीतों में तुम भी अपना गीत भरो हे प्रियवर
वरना जो भी गीत लिखे हैं सभी अधूरे रह जायेंगे।।
ये गीत नहीं वो पुष्प यहाँ
जो आसानी से मिलते हैं
भावों में जब प्यास जगी हो
तब ही जाकर ये खिलते हैं
मेरे मन की इन प्यासों में तुम थोड़ी तो बरसात भरो
वरना जो भी गीत लिखे हैं सभी अधूरे रह जायेंगे।।
जीवन के इस महा सिन्धु में
पल कितना कुछ सिखलाता है
जो भी डूबा आकर इसमें
जीवन का मोती पाता है
मेरे इस मोती की माला का तुम प्रियवर आधार बनो
वरना जो भी गीत लिखे हैं सभी अधूरे रह जायेंगे।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14जनवरी, 2022
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