यादों की बातें।
गा ना पाये गीत यहाँ जो यादों में सब लिपट गये।।
बहुत सरल है इस जग में आरोपों की झड़ी लगाना
बहुत सरल है जग में औरों के ऊपर प्रश्न उठाना
सच है मन की बात कठिन जो औरों के मन को भाये
और सुनाना गीतों में मन के भावों को समझाना।।
समझा ना पाये भाव यहाँ जो गीतों में सिमट गये
गा ना पाये गीत यहाँ जो यादों में सब लिपट गये।।
कितनी आहें कितने आँसू कितनी रची कहानी है
कितनी बातें दबी रह गयीं कितनी और सुनानी है
लिखे कलम शब्द सँजोकर उतने भाव मुखर हो बैठे
शब्द नहीं जो लिखे कलम ने गीतों में कह जानी है।।
आँखों के आँसू पलकों में आये आकर सिमट गये
गा ना पाये गीत यहाँ जो यादों में सब लिपट गये।।
डूबा है आकाश कहीं तो किरणें भी तो मंद हुईं
तम के भ्रम में दूर क्षितिज पर किरणों की गति कुंद हुई
जलते दीपक आज निशा से आंखमिचौली खेल रहे
आशाओं के इंद्रधनुष क्यूँ रंगों में बेमेल रहे।।
इंद्रधनुष के रंग यहाँ सब आकाशों में सिमट गये
गा ना पाये गीत यहाँ जो यादों में सब लिपट गये।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27जनवरी, 2022
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