संभावनाएँ।

संभावनाएँ।  

भोर की पहली किरण 
जब चूमती हैं गात को
मुक्त होती हैं दिशायें
फैलती हैं ज्योत्सनायें।।

वेद मंत्रों की ऋचाएँ
कानों में मृदु गीत घोलें
पंछियों की आहटें मृदु
कान में संगीत घोलें
गूँजते हैं दश दिशायें
दे रही संभावनाएँ।।

प्राची से दिनकर निकलकर
पुण्य पंथों को सजाता
दे के नव एहसास फिर
शून्य से सबको जगाता
भर रहा जीवन में प्रतिपल
मृदु आस की संवेदनाएँ।।

जागो है भारत तुम्हें है
नव गीत का निर्माण करना
गूँजे जिससे विश्व सारा
संगीत का निर्माण करना
त्यागो आलस्य हैं खड़ी
सामने मृदु कामनायें।।

सत्य का संज्ञान कर के
लक्ष्य का संधान कर लो
आस का आकाश ले कर
पुण्य का अनुमान कर लो
संशयों से दूर देखो
रच रहीं संभावनाएँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       26जनवरी, 2022

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