पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।
पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।।
अश्रु जो बहते पलक से होता आत्मा का क्षरण
बह गये आँसुओं को बोलो कहाँ मिलता शरण
जो गिरे ये पलक से तो हाथ ही हैं पोंछते
फिर कहो किसलिये यहाँ उदासियों को पोसते।।
ये अश्रु व्यर्थ हो न जायें कुछ तो तुम जतन करो
पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।।
पंथ की नाकामियों का है जरूरी आकलन
जिंदगी ये हार जीत का है सुखद संकलन
है कौन जो जगत में दुख से सदा वंचित रहा
या कहो किस भाग्य में सुख ही सदा संचित रहा।।
सभी पलों को जिंदगी के स्वयं आँचल में भरो
पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।।
है विकलता पास आये मौन तुम पुचकार लो
भर आलिंगन में अपने प्रेम उस पर वार दो
दो घड़ी का है जगत ये व्यर्थ ना इसको करो
जिंदगी है कीमती बस प्रेम से स्वागत करो।।
अब जिंदगी को पाश में लो व्यर्थ न क्रंदन करो
पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18जनवरी, 2022
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