गीत गाती रही है चाँदनी।
रात भर उस गीत को गाती रही है चाँदनी।।
क्यूँ बूँद पलकों से गिरे दोष क्या किसको पता
छोड़ क्यूँ दहलीज आये कौन सी थी वो खता
आये छलके अश्रु कितने गीत बन जज्बात के
पीर था या स्वप्न कोई जो चुभा किसको पता।।
पीर भावों के समझकर तूलिका ने गीत लिखा
रात भर उस गीत को गाती रही है चाँदनी।।
ओस बूंदों से फिसल जब भाव मन के गिर पड़े
शब्द कुछ गूँजे हृदय में मौन पर ना कह सके
थी जगी सिहरन वहाँ पर भाव ने जिसको छुआ
छलछलाये पीर मन के गीत में सब कह पड़े।।
भावों का संस्कार पा तूलिका ने गीत लिखा
रात भर उस गीत को गाती रही है चाँदनी।।
रात भर इक कहानी मन में कहीं पलती रही
गीत लिख कर वेदना के रात भर कहती रही
प्राण के संचार से कुछ शब्द अधरों से झरे
आस के आकाश पर वो गीत बन झरती रही।।
प्राणों का संचार पा तूलिका ने गीत लिखा
रात भर उस गीत को गाती रही है चाँदनी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03जनवरी, 2022
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