छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।
रात की सेज पर गीत की चाँदनी
ओस ओढ़े हुए मुस्कुराने लगी
कुछ कहा मौन ने साज सजने लगे
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।।
सपने पलकों पे आ थिरकने लगे
बिन पिये ही कदम ये बहकने लगे
हाथ आया जब से तेरा हाथ में
रात और दिन मेरे महकने लगे।।
अंक में प्रीत की रीत पलने लगी
रात रानी बनी खिलखिलाने लगी
कुछ कहा मौन ने साज सजने लगे
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।।
शब्द कितने मधुर पंक्ति में लिख गये
भाव कितने मृदुल अंक में छिप गये
झरे पुष्प अधरों से बने गीत वो
बात अपने हृदय की सभी कह गये।।
भाव कितने हृदय में मचलने लगे
कामनायें मधुर गीत गाने लगीं
गीत नूतन अधर पर सँवरने लगे
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।।
प्रेम संकेत पा रश्मियाँ खिल गयीं
साज ऐसे सजे रागिनी सज गयीं
कुछ कहें ना कहें मौन कहने लगे
हम मिले जो यहाँ धड़कनें मिल गयीं।।।
शब्द का साथ पा गीतिका यूँ सजी
धड़कनें भी मधुर गीत गाने लगीं
प्रेम का पंथ ऐसे सुसज्जित हुआ
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06जनवरी, 2022
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