पास नहीं क्यूँ आते हो?

पास नहीं क्यूँ आते हो?

कितने तारे नील गगन में जोह रहे बाँह पसारे
क्यूँ यूँ इनको उलझाते हो पास नहीं क्यूँ आते हो?

निस दिन बाहों को पुलकित कर
साँसों में पुष्पादित स्वर 
धवल दीप्त कर इस जीवन को
यूँ ही तुम बहलाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?

पुन अंतर्मन को झंकृत कर 
विरह वेदना के स्वर भर
भावों को अस्फुट स्वर देकर
अंतर्मन दहलाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?

शैशव मन के भावों में घुल
मृदु यौवन मधुरस से धुल
साँसों में स्मित मधुमासों का
पोर-पोर छू जाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30अप्रैल, 2023

अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

एक तिनका आ कहीं से आँख में ऐसे पड़ा
यूँ लगा जैसे हृदय में शब्द आकर के गड़ा
आह फिर निकली हृदय से मौन मन को बींधती
कंठ से फिर आह निकली शून्यता को चीरती
शून्यता में छिपी जाने कितनी वेदनायें
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

हैं छुपे कितने उजाले वक्त की बदलियों में
और कितने खो गए धूम्र बनकर चिमनियों में
पर कहीं अब भी छपे हैं वीथियों पे कुछ निशाँ
देखती हैं मौन आँखें शून्य में वो कहकशाँ
है कहीं अब भी छिपी शून्य में संवेदनाएं
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

थी अधूरी बात मन की टूट आँसू गिर गया
बात पूरी कह न पायी धूल में वो मिल गया
पर कपोलों पर छपे रह गये संवाद के पल
मिट न पायी रेख उनकी यूँ चुभे उस रोज पल
मिल गए जो धूल में क्या कहें परिवेदनाएं
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अप्रैल, 2023

आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

जो दूर थे तारे गगन में इन क्षणों में पास हैं
शून्यता के मध्य देखो पल आज कितने खास हैं
आ निशा के इन पलों को सींच दें सौदामिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

हैं दूर जो नक्षत्र सारे अंक में भर आज लायें
तोड़ कर निज बंधनों को आज फिर से पास आयें
आ सजायें पंक्तियों को हम मधुर अनुरागिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

गूँजते हैं गीत अब भी सुन तनिक जो थे सुरीले
फैलते हैं भाव मन के सांध्य में होकर रंगीले
आ मिलायें साँस को हम साँस की अनुगामिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अप्रैल, 2023

लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

लेकर द्वार मिलूँगा मैं।  

जब गाने को गीत रहे ना, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

सुंदर है हर फूल यहाँ पर, इस जीवन के उपवन में
सबका मोल चुका पाना कब, संभव होता मधुवन में
लेकिन पुष्पच्छादित मन ले, पल-पल राह तकूँगा मैं
जब उपवन की क्यारी भटके, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

सागर से मिलकर कितनी, नदिया हर पल रही पियासी
खुशियों के सम्मुख रहकर, आहों में जब रहे उदासी
दिल की बात सुने न कोई, संग-संग तब रहूँगा मैं
दिल के घाव तुम्हें सताए, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

इतना भी अनिभिज्ञ नहीं हूँ, मन की बात समझ न पाऊँ
इतना भी अनजान नहीं, चेहरों को मैं पढ़ न पाऊँ
मौन उदासी के भावों को, कह दो यहाँ पढूँगा मैं
जब चेहरे के भाव थकेंगे, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27अप्रैल, 2023

गीत अधूरा रहे न कोई।

गीत अधूरा रहे न कोई।  

प्यासी आँखों में मन का, गीत अधूरा रहे न कोई
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

गरजो-बरसो आज घटा बन, सौ-सौ बिजली बन चमको
अंग-अंग में मादकता की, मोहक छवि बनकर दमको
गूँजो बनकर मधुर तान तुम, मन मेरा बहका जाओ
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

सूखी-सूखी धरती सारी, एक बूँद को जोह रही
उमड़-घुमड़ कर श्याम घटायें, मेरे मन को मोह रही
बरसो श्याम घटा बनकर तुम, अंतर्मन नहला जाओ
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

दस्तक देती द्वार खड़ी है, मेरे मन के पुरवाई
गीत अधूरे राग बिना है, जाने कैसी निठुराई
मन के गीत सजे अधरों पर, ऐसा राग सुना जाओ
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

बादल की जब चाह धरा को, धरती उसे बुलाती है
सागर से मिलने को नदिया, खुद चलकर के आती है
मुरली की मृदु तान छेड़ कर, फिर मधुमास जगा जाओ
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27अप्रैल, 2023

हमसफ़र।

हमसफ़र।  

काश उस रोज तुझसे जो न बेखबर होता
तुम्हारे जुल्फ की छाँवों में मेरा बसर होता

मैं लिखता गीत तेरे नैन की हर करगुजारी पर
मिले हम राह ए मंजिल में कभी ऐसा सफर होता

तन्हा है बहुत मुश्किल गुजारा इस जमाने में
कि ऐसा हो जो मेरा है वही तुम्हारा भी घर होता

आया इस ऊँचाई पर तो जाना जिंदगी क्या है
अकेला हूँ बहुत मैं देव कोई हमसफ़र होता

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        26अप्रैल, 2023

ग़ज़ल--सँभल के मिलना।

सँभल के मिलना।  

जुनून-ए-इश्क की दुनिया है जरा सँभल के मिलना तुम
नकाबों में लिपट चेहरे हैं जरा सँभल के मिलना तुम

हिफाजत हो किसी की तो यहाँ नासूर पलता है
बड़े हैं शूल राहों में जरा सँभल के चलना तुम

चेहरों पे नहीं लिखा है किसी के दिल में क्या-क्या है
अगर दिल खोलते हो तो जरा सँभल के खुलना तुम

हजारों ख्वाहिशें माना तुम्हारे दिल में पलती है
गिरे जो ख्वाहिशें राहों में तो फिर खुद सँभलना तुम

कि अब परछाइयाँ भी दूर तक कब साथ देती हैं
राहों में बड़े धोखे हैं जरा सँभल के चलना तुम

वादों का भरोसा क्या यहाँ हर रोज गिरते हैं
जुबाँ पर और दिल में और जरा सँभल के मिलना तुम

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अप्रैल, 2023

ग़ज़ल-हालात के दर्द।

हालात के दर्द।  

क्या कहूँ के किन-किन हालात से गुजरे हैं
जिंदगी हम तो तेरी हर घात से गुजरे हैं

कुछ ख्वाब ऐसे चुभे हैं मेरी इन आँखों में
जख्म आँखों में लिए बरसात से गुजरे हैं

अब दर्द का क्या कहें क्या ठिकाना था कहाँ था
चुभती आहों औ दर्द के जज्बात से गुजरे हैं

कुछ खता थी या नहीं अब ये मालूम किसे है
बेबसी हम तो तेरी हर बात से गुजरे हैं

तब जाना जिंदगी भी एक खेल है यहाँ पर
कदम-कदम पर जब शह और मात से गुजरे हैं

क्या बताएं देव किस-किस ने सताया है हमें
बात जितनी भी निकली हर बात से गुजरे हैं

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अप्रैल, 2023

मन की पीर।

मन की पीर।  

एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

सूने नयनों ने कितने ही
यादों के संदेशे भेजे
मन के विह्वल नील गगन ने
कितने ही अंदेशे देखे
लेकिन मन के संदेशों को
चाहा लेकिन कह कब पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

कितनी बार हृदय ने चाहा
मन की पीर लिखे पृष्ठों पर
मन ने कितनी बार उकेरा
आहों के पल को पृष्ठों पर
कुछ थी धुंध हृदय में गहरी
पृष्ठों को मन समझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

मन के सारे भाव अधूरे
सब अक्षर-अक्षर हुए अवारा
दूर हुआ है मन दुनिया से
कहूँ किसे है कौन सहारा
उलझे ऐसे भाव हृदय में
चाहा कितना सुलझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

मन की खूँटी पर यादों की
कुछ तो बाकी बची कहानी
जिसकी पीड़ा में घुल-घुलकर
पिघल रही है एक हिमानी
पीड़ा के उस उच्च शिखर का
दर्द हृदय ये समझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अप्रैल, 2023

शब्द पन्नों पे उतरे गजल हो गए।

शब्द पन्नों पे उतरे गजल हो गए।  

याद आयी उनकी नयन सजल हो गए
शब्द पन्नों पे उतरे गजल हो गए

बात में कुछ सच्चाई तो होगी वहाँ
यूँ ही नहीं बातें सारी असल हो गए

तेरी यादों ने इतना रुलाया हमें
नैन के कोर सारे विजल हो गए

उनके दर्द ने दर्द को दर्द इतना दिया
कि दर्द के भाव सारे खिजल हो गए

कहीं कुछ तो कमी रह गयी आहों में
के जतन जो थे सारे विफल हो गए

अब कहें देव किससे मन की यहाँ पर
दिल के रिश्ते सभी अब अजल हो गए


विजल- जल विहीन, निर्जल
खिजल- शर्मिंदगी
अजल- मृत्यु

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27मई, 2023

नहीं आती।

नहीं आती।  

जाने क्यूँ रात अब नहीं आती
नींद आँखों में अब नहीं आती

कितनी उम्मीद थी घटाओं से
बूँद आँखों में अब नहीं आती

रोज तकता हूँ रात तारों को
फिर वही रात अब नहीं आती

जिसने दिल को कभी लुभाया था
वो सूरत नजर अब नहीं आती

एक गुजारिश थी उनसे मिलने की
क्या ये फरियाद अब नहीं आती

कुछ तो ख्वाहिश अभी अधूरी है
जिंदगी रास अब नहीं आती

यादों से जाने कैसी अनबन है
याद आती थी अब नहीं आती

अपना साया भी कुछ अधूरा है
कल थी परछाईं अब नहीं आती

पहले आती थी देव हँसी यूँ ही
किसी बात पर अब नहीं आती

कैसे रखूँगा मैं खबर उनकी
अपनी भी खबर अब नहीं आती

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20अप्रैल, 202

कैसे कहो मनाऊँ मैं।

कैसे कहो मनाऊँ मैं। 

जाने कैसी है हलचल
व्यग्र हो रहा मैं पलपल
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं ।।

भाव हृदय में रह रहकर
हलचल नई मचाते हैं
रचता हूँ कुछ और यहाँ
और गीत रच जाते हैं
रूठे शब्दों को बोलो
कैसे आज बुलाऊँ मैँ।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैँ।।

अनजाना भय व्याप्त हुआ
किसने जाने किसे छुआ
संवादों पर ताले हैं
उर के फूटे छाले हैं
बाँध सबर का टूट रहा
जीवन जैसे रूठ रहा
टूट रहे सपनों को फिर
कैसे कहो सजाऊँ मैं।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं।।

कदम कदम पर क्रंदन है
मौन हृदय का नंदन है
कितने सपने खोएंगे
पलकें कब तक रोयेंगे
चीखूँ या अरदास करूँ
कैसे और प्रयास करूँ
कैसे दर्द दिखाऊँ मैं
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ में।।

जो विलंब है आने में
तो इतना उपकार करो
जहाँ जहाँ तम गहरा है
वहाँ वहाँ उजियार करो
ऐसा दो वरदान मुझे
गीत नया रच जाऊँ मैं
अँधियारे में दीप जला
मधुर रागिनी गाऊँ मैं।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं।।

 ©️✍️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद

उम्मीद नहीं टूटा करती।।

 उम्मीद नहीं टूटा करती।।

ढीली माना डोर हाथ की आस नहीं टूटा करती
एक हार से जीवन की उम्मीद नहीं टूटा करती।।

माना तेज धूप राहों में दूर-दूर तक छाँव नहीं
मन को थोड़ा चैन मिले ऐसा भी कोई गाँव नहीं
माना छाँव दूर है लेकिन राह नहीं रूठा करती
एक हार से जीवन की उम्मीद नहीं टूटा करती।।

मन पर कितने बोझ भले हों काँधे कब झुक जाते हैं
जिनके सपने उच्च शिखर कब बाधा से घबराते हैं
मन को मन थाह मिले जब चाह नहीं रूठा करती
एक हार से जीवन की उम्मीद नहीं टूटा करती।।

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता
पलकों के यूँ झुक जाने से सपना नहीं गिरा करता
भले उम्मीदों की राह कठिन साँस नहीं छूटा करती
एक हार से जीवन की उम्मीद नहीं टूटा करती।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27मई, 2023

गीत को सम्मान।

गीत को सम्मान।  

हो समर्पण प्रेम में जब तब मधुरतम गान बनता
तब हृदय में प्रेम पनपे गीत को सम्मान मिलता।।

नैन की जब पुण्य बूँदें इस हृदय की सींचती हैं
प्रेम में अभिभूत होकर जब अधर को भींचती हैं
साँस भी उन्मुक्त होकर जब कह पड़े दिल की लगी
और आहों में हृदय की जब भावनाएं हों जगीं
भावनाओं के समर में नेह को जब मान मिलता
तब हृदय में प्रेम पनपे गीत को सम्मान मिलता।।

बूँद पलकों से उतरकर जब कपोलें चूमती हैं
नैन से बिछड़ी मगर जब मस्त होकर झूमतीं हैं
जब बहे गीतों के संग आँसुओं की धार घुलकर
और कह दे भावनाओं से हृदय के तार मिलकर
जब नयन से गीत छलके आँसुओं को मान मिलता
तब हृदय में प्रेम पनपे गीत को सम्मान मिलता।।

लेखनी जब भी मचलकर गीत लिखती कागजों पर
चाँदनी मन की निखरती सुर सजाती बादलों पर
अर्चना के भाव में मन प्रेम को नव धाम देते
मौन गीतों को सफर में इक नया आयाम देते
पाषाण मन के भाव को जब नया भगवान मिलता
तब हृदय में प्रेम पनपे गीत को सम्मान मिलता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
        19अप्रैल, 2023

रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

उर पीड़ा के मौन अंश जो, नयन कोर में रहते प्रतिपल
जो स्थापित मन के भावों को, चुभते बनकर अभिशापित दल
बूँद नयन से चरण पखारूं, मैं आहों को समझाता हूँ
रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

साँसों से साँसों का बंधन, है आह-आह का अनुबन्धन
निज हृदय सृजित स्मित भावों का, हिय पीड़ा से कैसा बंधन
आँसू के दो चार कणों से, मैं तप्त हृदय नहलाता हूँ
रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

दुर्बल मन के कुछ सपनों का, जाने कैसा ये चढ़ाव है
बिखरे मोती मनके सारे, कैसा मन का ये दुराव है
बिखरे मनके मोती चुनता, मन ही मन को समझाता हूँ
रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

कुछ सपनों के मर जाने से, रिश्तों में कैसी परवशता
एक कोख से जन्मे मन में, कैसी लघुता कैसी गुरुता
अंतर्मन के कोर में बसे, पाषाणों को समझाता हूँ
रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18अप्रैल, 2023

अंतिम मधु प्याला।।

 अंतिम मधु प्याला।।


गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला
तारों का रथ चाँद सारथी, जीवन अपना है मधुशाला।।

कितने द्वार खड़े पीने को, कितने प्याले तोड़ चुके हैं
कितने मदिरालय में रहकर, जीवन मधुघट फोड़ चुके हैं
प्रथम बूँद की कुछ को चाहत, कुछ अंतिम की बाट जोहते
मधु की लाली में नव जीवन, कुछ को प्यासी राह मोहते
कुछ डूबे मधु के सागर में, और बने कुछ जीवन हाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

दिल से दूर हुए हैं कितने, जीवन मधु सा जीनेवाले
मदिरालय ने कितने देखे, आते-जाते पीने वाले
कितने पीकर मस्त हुए हैं, कितने डूब गए जीवन में
कितने साकी रूठ गए हैं, डूबे कितने सिन्धु नयन में
जब-जब छलकी प्याली मन की, तब-तब नयन बने ख़ुद हाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

कुछ मुस्काये नयनों में घुल, कुछ नयन कोर से ढलक गये
कुछ ने मन को दिया सहारा, अरु कुछ राहों में बहक गये
कुछ राहों में घिरकर भटके, कुछ को भय भ्रम ने आ घेरा
कुछ ने सहज भाव स्वीकारा, जीवन जनम मरण का फेरा
कितने मदिरालय खुद बहके, कितनों ने खुद संशय पाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

कुछ को धूप मिली राहों में, कुछ ने पग-पग पाई छाया
कुछ अभाव में जीवन काटा, कुछ को हाथ मिली बस माया
कुछ बंधन में स्वयं बँधे हैं, कुछ को हालातों ने बांधा
कुछ साधक बन स्वयं सधे हैं, कुछ को अनुपातों ने साधा
कितनी मद की प्याली छलकी, अरु टूटी कितनी मधुशाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

अंतिम बूँद प्रखर कितनी है, समझा किसने काल हलाहल
जिसने कंठ धरा है इसको, पग-पग चलता रहा चलाचल
लेकिन अंतिम बूँद मदिर की, प्यासे मन को भरमाती है
मदिरालय के द्वार पहुँचकर, अंतिम सुख क्या दे पाती है
अंतिम सुख की चाह हृदय में, मधु घट सेज सजाती हाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       15अप्रैल, 2023


आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

उम्र का पहिया निरंतर चल रहा रफ्तार से
आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

बीते कितने ही बसंत और कितनी आस है
अतृप्त मन के भाव की और बाकी प्यास है
पल-पल घट रही दूरियाँ उम्र के अनुपात की
और धूमिल हो रही है तेज प्रतिपल गात की
किंतु मन की भावनाएं गीत नूतन गढ़ रही
आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

बढ़ रहा दायित्व जब से मौन मन का गान है
उम्र के अनुरोध है ये मत कहो अभिमान है
चल रहे हैं पंथ सारे पर शिथिल चाल माना
अनुभवों की रेख पर है जिंदगी का ताना-बाना
मौन हल्की सी हँसी अब झुर्रियों को ढँक रही
आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

लिख दिए ग्रन्थ कितने और कितने लिख रहे
चाहतों के पृष्ठ में जा गीत कितने छिप रहे
दूर कितना भी सवेरा दीप लेकिन जल रहा
मौन एकाकी हृदय के अंक को पर खल रहा
आहटें हल्की समय की रेत बनकर झर रहीं
आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        11अप्रैल, 2023





इतिहास

इतिहास।  

हो सुलगती आग भीतर,मौन रहना क्या उचित है
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

चल न पाए पंथ पर जो, आज भी पथ जोहते हैं
इक अधूरी आस लेकर, स्वयं का मन टोहते हैं
जो देखते हैं वीथियों पर, स्वप्न के टुकड़े बिखरते
बस देखते हैं वो सफर में, सूर्य को रथ से उतरते
स्वयं बढ़कर हाथ थामो, हो सके अहसास पूरा
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

दूर यदि जाओ कभी तो, पास रखना कुछ निशानी
रिश्तों की डोरी बँधी है, उम्र पर है आनी जानी
बाँध कोई कब सका है, वक्त को पाबंदियों में
और रिश्तों के सफर में, मौन को अभिव्यक्तियों में
कुछ शब्द जो ठहरे अधर पर, कब रहा कोई अछूता
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

लिख दिये हैं ढेर सारी, पर है अभी बाकी कहानी
कुछ सुनी है हमने तुमसे, और कुछ अपनी सुनानी
एक मन में भाव कितने, और कितनी यादें पल रही हैं
आज कह दो स्वयं आकर, देख संध्या ढल रही है
इस सांध्य के स्मित पलों में, ना चाँद रह जाये अधूरा
क्या पता किस पृष्ठ का इतिहास रह जाये अधूरा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10अप्रैल, 2023

भारत।

भारत।  

जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत
स्वर्ण स्वर है, स्वर्ण भाव है, स्वर्ण ब्रह्म विशारद
जल थल नभ.....।।

सत्य सनातन शिव मनभावन, त्रेता, द्वापर, कलयुग
पग-पग कुसमित, पथ-पथ सुषमित जैसे है सतयुग
श्री राम, कृष्ण आदि देव, और कण-कण विश्वनाथ
कालेश्वर, ओंकारेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, और केदारनाथ
धर्म संस्कृति श्रद्धा सबुरी, आदि परंपरा वाहक
जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत।।

गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, कल-कल आदि गोमती
सस्य-श्यामला, पुण्य धरा को, सूर्य किरण हैं चूमती
जन गण मन विश्वास अडिग है, कण-कण इसका पावन
प्रकृति के सब रंग समाहित, ऋतुएं सब मनभावन
इसकी ओर विश्व की नजरें, ज्यूँ तके वृष्टि को चातक
जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत।।

सुबह आरती शाम वंदना, सब भारत नाम पुकारें
वसुधैव कुटुंबकम का प्रण मन में, प्रति पल यही उचारें
वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, हैं ज्ञान ध्यान के दाता
शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता, जग कितना कुछ है पाता
विश्व रूप है, विश्व गुरु है, है विश्व शांति का द्योतक
जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत।।

कीर्ति पताका फहराई है, सोई सदियाँ जागीं
भेद-भाव, संताप मिटाया, समस्त वेदना भागी
ज्योति जला कर राष्ट्रवाद का, दिया धर्म को जीवन
सत्य शिवम है सत्य सुंदरम, उल्लासित सब अंतर्मन
शंखनाद है पांचजन्य का, है भारत विश्व उद्धारक
जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10अप्रैल, 2023

शायरी।

महफ़िल में तेरी कभी यूँ भी आयेंगे
हम न होंगे पर वो लम्हे गुनगुनायेंगे

साथ चल न सके जो जुदा हो गये
मोहब्बत के अब वो खुदा हो गये

रात भर चाँद से बात होती रही
तेरे ख्वाब ने मुझको न सोने दिया

कैसे मानूँ के मैं याद आता नहीं
इन आँखों ने कह दी कहानी सभी

मुझसे नजरें चुरा कर भले चल दिये
बस, आईना देखिएगा जरा सोच के

कुछ है बाकी निशानी मेरे प्यार की
बेसबब आईना तुमने चूमा न होता

रात भर हिचकियों ने सताया मुझे
और कहते हैं मैं याद आता नहीं

याद करना ही मोहब्बत की निशानी नहीं देव
भूल जाना भी मोहब्बत हुआ करती है

भूल जाना किसी को बड़ी बात नहीं है देव
फिर याद न आना बड़ी बात हुआ करती है

कौन कहता है कि अब हम उन्हें याद नहीं हैं
कमबख्त हिचकियाँ आज भी सोने नहीं देती

जिंदगी एक दिन तू भी ये मान लेगी
मेरी शख्शियत क्या है पहचान लेगी

हर पल मंजिलों पे नजर रखता हूँ
ऐ जिंदगी हर रोज सफ़र करता हूँ

खुद ही बोले खुद ही खफा हो गये
और कहते हैं हम बेवफा हो गये

अब तो तन्हाईयाँ भी सताती नहीं
तेरी रुसवाईयाँ रास आने लगीं

जिन्हें मेरी परछाइयाँ भी गँवारा नहीं
उम्र भर दुश्मनी क्या निभायेंगे वो

जीवन के अँधियारे में रोशनी की आस हैं दोस्त,
बेचैनियों में भी इस दिल के सबसे पास हैं दोस्त।
मुश्किल हालात में जब कुछ भी नहीं सूझता दिल को,
आँख का अश्रु, अधरों की हँसी, मौन जज्बात हैं दोस्त।

मन का जीवन।

मन का जीवन।  

आज कसौटी पर कितने ही
कटु शब्द ह्रदय चुभ जाते हैं।
मन को जीने की खातिर हम
कितना मन को समझाते हैं।।

कर सज्ज हृदय के मौन सार
कर परिचय मूल्यों के अपार।
भावों में अनुशाषित जीवन
हर्षित, पुलकित, कुसमित उपवन।।
वर्षित प्रेम भाव रस संचित
हम उद्द्यम करते जाते हैं।
मन को जीने की खातिर हम
कितना मन को समझाते हैं।।

थोड़ा खोना थोड़ा पाना
थोड़ा है थोड़े की जरूरत।
संचित कर सपनों की गागर
पृष्ठ उकेरी कितनी मूरत।।
कितने संचित स्वप्न हृदय के
पग-पग नव आस जगाते हैं।
मन को जीने की खातिर हम
कितना मन को समझाते हैं।।

सुख-दुख जीवन के दो पहलू
एक आता एक जाता है।
हार-जीत की पकड़ से कहो
अब कौन भला बच पाता है।।
आस साँस के द्वार खड़ी जब
खुद से खुद को फुसलाते है।
मन को जीने की खातिर हम
कितना मन को समझाते हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07अप्रैल, 2023


पुण्य पथिक।

पुण्य पथिक।  

जो पुण्य पंथ के राही हैं,
वो आस नहीं छोड़ा करते।
लहरों के चंद थपेड़ों में,
पतवार नहीं छोड़ा करते।।

माना के धुंध घनेरी है,
औ रात अभी गहराई है।
माना के सूरज किरणों पे,
हल्की सी बदली छाई है।
रश्मिरथी, जो पुण्य पंथ के,
व्यवहार नहीं छोड़ा करते।
लहरों के चंद थपेड़ों में,
पतवार नहीं छोड़ा करते।।

जो चले यहाँ बस जीत लिखे,
अवसादों में भी गीत लिखे।
रुँधे कंठ हो चाहे लेकिन,
जब लगे गले, मनमीत लिखे।
रिश्तों के मध्य, भँवर फँसकर,
वो तार नहीं तोड़ा करते।
लहरों के चंद थपेड़ों में,
पतवार नहीं छोड़ा करते।।

कौन विश्व में ऐसा बोलो,
जिसका सर सबसे ऊँचा है।
सीना तान खड़ा पर्वत भी,
आकाश तले तो नीचा है।
जीवन में दंभ किया जिसने,
वो धार नहीं मोड़ा करते।
लहरों के चंद थपेड़ों में,
पतवार नहीं छोड़ा करते।।

इक छोटी सी नदिया हमको,
बस बात यही समझाती है।
कुछ राहों के अवरोधों से,
क्या, डूब कहीं खो जाती है।
बढ़ना जिनकी फितरत में हो,
अटकाव, नहीं तोड़ा करते।
लहरों के चंद थपेड़ों में,
पतवार नहीं छोड़ा करते।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       03अप्रैल, 2023





भाव अंतस के।

भाव अंतस के। 

न जाने क्यूँ वहाँ उम्मीद सारी टूट जाती है
लिखे जब भाव अंतस के कलम आँसू बहाती है।।

खिले जब फूल सपनों के नजारे गुनगुनाते हैं
इशारों ही इशारों में वहाँ अपना बनाते हैं
चमन में फूल, कलियाँ हैं नजारे हैं, बहारें हैं
मगर जब पास जाता हूँ नजारे रूठ जाते हैं
कुछ तो बात है ऐसी के पैहम टूट जाती है
लिखे जब भाव अंतस के कलम आँसू बहाती है।।

लिखे जो गीत थे अपने रचे जो साज थे अपने
सजे जब राग अधरों पर देखे नयनों ने सपने
मगर था दोष किस्मत का कहीं जो रागिनी टूटी
अधूरी ख्वाहिशों के बीच बिछड़े राह में अपने
है कुछ तो बात ऐसी कि तराने भूल जाती है
लिखे जब भाव अंतस के कलम आँसू बहाती है।।

समेटे दर्द गीतों में लिखे मन दीन दुनिया के
लिखे जो चोट मन खाये चुभे जो तीर दुनिया के
नहीं था दोष स्याही का नहीं था दोष पृष्ठों का
अधूरी चाह थी मन की अधूरे भाव दुनिया के 
कुछ तो बात है ऐसी के साँसें रूठ जाती हैं
लिखे जब भाव अंतस के कलम आँसू बहाती है।।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         02अप्रैल,2023

खिड़की वाली सीट।

खिड़की वाली सीट।   

वो सीटी से सब कुछ कहना
वो झंडी का इशारा
यूँ लगा जैसे मुझे
मेरे बचपन ने पुकारा।
वो रेल का सुहाना सफर
और उसकी सुहानी यादें
कभी खत्म न होने वाली
वो प्यारी-प्यारी बातें।
खिड़की वाली सीट की चाहत
धूप में जैसे छाँव सी राहत
वो पेड़ों का दूर से पास आना
फिर तेजी से पीछे छूट जाना
उस एक पल में मन
कुछ खोता कुछ पाता है
न जाने क्या-क्या याद आता है।
वो खिड़की से आती हुई
उम्मीदों के झोंके
गुजरी यादों में ले जाती है
ठहरे हुए पेड़, चलता हुआ सूरज
जीवन का भेद समझाती हैं।
वो पटरियों पर दौड़ती जिंदगी
जिसका कोई छोर नहीं दिखता
खिड़की से तलाशती दो आँखें
सच ही तो है रेल की जिंदगी
आगे बढ़ती है जब 
कोई शोर नहीं दिखता।
हर बार हल्की सी मुस्कान
होठों पे लिए हम आते हैं
और कितने ही सपनों को
हम सपनों से मिलवाते हैं

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       01अप्रैल, 2023

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...