भारत।
स्वर्ण स्वर है, स्वर्ण भाव है, स्वर्ण ब्रह्म विशारद
जल थल नभ.....।।
सत्य सनातन शिव मनभावन, त्रेता, द्वापर, कलयुग
पग-पग कुसमित, पथ-पथ सुषमित जैसे है सतयुग
श्री राम, कृष्ण आदि देव, और कण-कण विश्वनाथ
कालेश्वर, ओंकारेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, और केदारनाथ
धर्म संस्कृति श्रद्धा सबुरी, आदि परंपरा वाहक
जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत।।
गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, कल-कल आदि गोमती
सस्य-श्यामला, पुण्य धरा को, सूर्य किरण हैं चूमती
जन गण मन विश्वास अडिग है, कण-कण इसका पावन
प्रकृति के सब रंग समाहित, ऋतुएं सब मनभावन
इसकी ओर विश्व की नजरें, ज्यूँ तके वृष्टि को चातक
जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत।।
सुबह आरती शाम वंदना, सब भारत नाम पुकारें
वसुधैव कुटुंबकम का प्रण मन में, प्रति पल यही उचारें
वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, हैं ज्ञान ध्यान के दाता
शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता, जग कितना कुछ है पाता
विश्व रूप है, विश्व गुरु है, है विश्व शांति का द्योतक
जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत।।
कीर्ति पताका फहराई है, सोई सदियाँ जागीं
भेद-भाव, संताप मिटाया, समस्त वेदना भागी
ज्योति जला कर राष्ट्रवाद का, दिया धर्म को जीवन
सत्य शिवम है सत्य सुंदरम, उल्लासित सब अंतर्मन
शंखनाद है पांचजन्य का, है भारत विश्व उद्धारक
जल थल नभ में गुंजित है, बस एक ही नाम भारत।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
10अप्रैल, 2023
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