गणपति जी पर दोहे।

गणपति जी पर दोहे।  

कलुष निकंदन पूज्य प्रभु, तुम हो देव महान
संकट सारे दूर हों, दो ऐसा वरदान।।

रिद्धि सिद्धि के देवता, पूर्ण करो सब काज
मंगलकारी देवता, रखो हमारी लाज।।

जग की सब बाधा हरो, गौरी तनय गणेश
जीवन हो सुखमय सभी, रहे न कहीं कलेश।।

ऐसा दो आशीष प्रभु, रहे न मन में दोष
सबके कारज पूर्ण हों, मन में हो संतोष।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        31अगस्त, 2022

तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

हँसकर अपनी आहों को आ गीतों में यूँ ढालें हम
तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

मैं तेरी पीड़ाएँ चुन लूँ तुम भी मेरी पीर चुनो
मैं तेरी आहों को सुन लूँ तुम भी मेरी आह सुनो
इक दूजे के सपनों में हम निज सपनों को ढूँढें
मैं राहों के कंटक बिन लूँ तुम भी मेरी राह बुनो।।

तुम औ मैं के मौन सफर में मिलें एक हो जायें हम
तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

तुम मेरे सपनों को जी लो मैं भी तेरे स्वप्न जियूँ
तुम मेरे घावों को सी दो मैं भी तेरे घाव सियूँ
इक दूजे की आहों में बस इक दूजे को अपनाएं
तुम मेरे आँसू पी जाओ मैं भी तेरे अश्रु पियूँ।।

अधरों पर ऐसे बस जायें बनें गीत की हम सरगम
तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

आ नींद ओढ़ लो तुम मेरे, तेरे सपनों में आऊँ
तुमने जो भी गीत लिखे हैं जीवन भर उसको गाऊँ
होंगे अपने दिवस सुनहरे रातें अपनी बनें दिवाली
दूर क्षितिज तक आशाओं का आँचल कभी न ही खाली।।

ताप धूप की सर्द रात का मिलकर सितम सहेंगे हम
तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        31अगस्त, 2022

अब वो बात नहीं होती।

अब वो बात नहीं होती।  

जाने क्या बात है के बात नहीं होती है
नम तो होती हैं मगर आँख नहीं रोती है।।

हिचकियाँ आती रही रात भर जाने यूँ ही
होंठों ने चाहा मगर नाम नहीं लेती हैं।।

सुबह से नजरें लगा रखी हैं दरवाजे पे
जाने क्या बात है जो साँझ नहीं होती है।।

निकलता है सूरज भी चंदा भी रोज मगर
पर वो पहली सी सुबह, रात नहीं होती है।।

उन सपनों को छिपा रखे हैं पलकों में कहीं
रात तो होती है पर आँख नहीं सोती है।।

तेरी यादों को कांधों पे लिए चलते हैं
सीधे चलते हैं अब अगलात नहीं होती है।।

ये आँसू भी अब बादल बन गये हैं सारे
नम करते हैं मगर बरसात नहीं होती है।।

लिखने को लिखते हैं बहुत 'देव" मगर फिर भी
गीत गजलों में अब वो बात नहीं होती है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अगस्त, 2022



तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।

तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।

मन के भीतर कितनी यादें
हैं शोर कहीं पर, सन्नाटे
यादों के कुछ उजले पन्ने
स्याह अँधेरी कुछ थी रातें
मन में कितने पल पलते हैं
तेरे खत को जग पढ़ते हैं।।

दूर क्षितिज तक आना जाना
सपनों का ले ताना बाना
पदचिन्हों की कई निशानी
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
कितना कुछ मन में गढ़ते है 
तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।

नयनों में गीतों का दर्पण
कुछ पाया कुछ किया समर्पण
कुछ ने अंतस को बहलाया
मन के घावों को सहलाया
कुछ में कितना कुछ कहते हैं
तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।

बरगद की वो छाँव पुरानी
पुरवा वाली रात सुहानी
पावस की वो शीतल रातें
नयनों से नयनों की बातें
तारों से बातें करते हैं
तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।

उम्र से लंबी होती रातें
रातों से भी लंबी बातें
वीथी पे फिर नई कहानी
भाव मनहरे पंक्ति पुरानी
पलकों को फिर नम करते हैं
तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        26अगस्त, 2022

पलकों में आँसू बोया था।

पलकों में आँसू बोया था।

तब मन मेरा था अकुलाया
जब मुझको संदेशा आया
खुद को मोड़ लिया तब मैंने
तुमसे जोड़ लिया तब मैंने
जागा था तब भाव समंदर
मेरे भी अंतस के अंदर
लगा समय खुद से मिलने का
मुरझाकर फिर से खिलने का
तुमको पाकर भी खोया था
पलकों में आँसू बोया था।।

मन में कितनी बातें आईं
यादों की सौगातें लाईं
कुछ ने हृदय को किया अधीर
कुछ पुनः जगाई मन की पीर
कुछ ने भावों को सहलाया
कुछ ने पलकों को बहलाया
कुछ ने मन को दिया सहारा
कुछ ने मन से किया किनारा
कुछ पाकर मन कुछ खोया था
पलकों में आँसू बोया था।।

सांध्य किरण द्वारे जब आयी
भावों ने तब ली अँगड़ाई
पंछी ने था गीत सुनाया
पलकों ने भी था कुछ गाया
अधरों ने तब कही कहानी
नयनों से जब बरसा पानी
तब आहों ने भाव सँभाला
गीतों में सब कुछ कह डाला
खुलकर उस दिन तब रोया था
पलकों में आँसू बोया था।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24अगस्त, 2022



तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक।।

तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक


माना तेज बहुत है धारा लेकिन फिर भी चल सकता हूँ
होंगे साथ तुम्हारे लाखों किंतु अकेला चल सकता हूँ
तुमसे दूर रहा हूँ अब तक क्या बतलाऊँ क्या मजबूरी
बिन तेरे इस जीवन में मैं भी हँसकर पल सकता हूँ
विरह-मिलन के मौन पलों में पाया जो व्यवहार मुबारक
तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक।।

तुमने जाने जीवन पथ पर मेरे सपने क्यूँ ठुकराए
तुमको भान नहीं था लेकिन मेरे पग को डिगा न पाये
होंगे तुमने लिखे बहुत से निज जीवन की मधुर कहानी
लेकिन अब भी गूंज रहे हैं गीतों में मेरी गाथाएँ
जिन अधरों ने गीत भुलाये उनका भी आभार मुबारक
तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक।।

अपने भावों को गीतों में रच कर हमने महल बनाया
साँसों की सरगम डाली जब तब जाकर जीवन को पाया
अपने गीतों से जगती के मन को नित बहलाने वाले
दुनिया ने कुछ भी गाया पर ढाई आखर गाने वाले
मेरे गीतों ने तुमसे जो पाया वो आभार मुबारक
तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अगस्त, 2022

चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

चाँदनी पथ है सँवारे भोर देखो द्वार पर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

है लहर में शोर माना और तूफ़ाँ तेज है
जिंदगी यदि फूल है तो काँटों की भी सेज है
सबके अपने भाव हैं सबकी अपनी कहानी
छप गये राह पर पदचिन्ह कितने बन निशानी।।

इस राह के प्रभाव को हँस के तू स्वीकार कर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

ध्यान से सुन तो तनिक राह क्या कुछ बोलती हैं
राह के संघर्ष के भेद सारे खोलती है
अनगिनत राही गये हैं एक बस तू ही नहीं
गूँजते हैं गीत जिनके राह में सुन तो यहीं।।

रच यहाँ नव गीत तू भी  स्वप्न को साकार कर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

मंजिलों ने कब यहाँ मोह राहों से जताया
स्वयं राहें जब चलीं मंजिलों को पास पाया
है यहाँ किसको पता राह में क्या-क्या मिलेंगे
वन मिलेंगे पुष्प या कंटकों के शर मिलेंगे।।

पुष्प या शर कंटकों के मौन सब स्वीकार कर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

क्या भला है क्या बुरा व्यर्थ है अब बात करना
रास्ते में चल पड़े मुश्किलों से क्या फिर डरना
है सफल पंथी वही जिसने पथ का मान किया
जीत पाया वो जगत जो चित्त का अवधान किया।।

कंटकों से सीख ले इस सत्य को स्वीकार कर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       21अगस्त, 2022

फिर आज सहलाने चली हैं।

फिर आज सहलाने चली हैं।   

आह के किंचित पलों में गीत की कुछ पंक्तियाँ
दर्द के प्रभाव को फिर आज सहलाने चली हैं।।

पाप हो के पुण्य हो जो भी किया सबने किया
जो है गरल पिया कभी तो स्वयं अमृत भी पिया
क्यूँ यहाँ अफसोस करना राह की उलझनों से
लौट आते निज स्वरों के साथ जब जीवन जिया।।

प्रतिनाद के निस पलों में आह की कुछ सिसकियाँ
दर्द के प्रभाव को फिर आज सहलाने चली हैं।।

भाव हैं क्या खास पल में सब समझना चाहते 
खास की क्या खासियत है सब समझना चाहते
कौन है संपूर्ण औ कौन है आधे हृदय से
कौन के उस प्रश्न से क्यूँ सब उलझना चाहते।।

प्रश्न के आकाश पर कुछ उत्तरों की तितलियाँ
दर्द के प्रभाव को फिर आज सहलाने चली हैं।।

छप गये कुछ शब्द क्यूँ इस हृदय के श्याम पट पर
लौट आती हैं लहर सब झूमती देख तट पर
चल पड़ो संघर्ष में फिर झूमते गीत गाते
आह को स्वीकार कर लो राह में मुस्कुराते।।

साँस के अनुरोध पर फिर मौन पल में सिसकियाँ
दर्द के प्रभाव को फिर आज सहलाने चली हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       18अगस्त, 2022

आओ जग के अँधियारे में हम इक दीपक रोज जलाएं।।

आओ जग के अँधियारे में हम इक दीपक रोज जलाएं।।

माना पथ में रात अँधेरी नित जोह रही हो सूरज को
अनुमानों में घिरी प्रतिज्ञा कहीं खो न दे अब धीरज को
माना कि चंहुओर तिमिर है आ करें प्रकाशित अंतःपुर
आ भरें शून्य में अपनापन के हो उल्लासित अपना उर।।

दीप जलायें ज्ञान ज्योति का अंतस का तम दूर भगायें
आओ जग के अँधियारे में हम इक दीपक रोज जलाएं।।

लोभ-मोह माया का जीवन सब जगती का है सम्मोहन
निज आहों में, मधुमाया में उलझा रहता क्यूँ अपना मन
भावों में शीतलता भर लें आ मृदु गीतों से मन उपवन
पंथ पथिक का तब सम्मानित मन में जब जागे नव चेतन।।

क्षण भर का उल्लास यहाँ मन के सब अवसाद भगायें
आओ जग के अँधियारे में हम इक दीपक रोज जलाएं।।

मौन सफर हो अंधकार में मत पूछो के कैसी छाया
कुटिल नियति जब हावी हो तो क्या मतलब किसने क्या पाया
जगती के सब अनुमानों में कहीं सुहाना मौसम होगा
कहीं मिलेगी परछाईं जो दूर क्षितिज अनुबंधन होगा।।

मिलता जो कुछ मनोयोग से उससे ही जीवन महकाएँ
आओ जग के अँधियारे में हम इक दीपक रोज जलाएं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17अगस्त, 2022

साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।

साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।

अधरों पर जो शब्द रुके पलकों ने उनको बोल दिया
पाकर सांसों का स्पंदन ऋतुओं ने मधुघट खोल दिया
पा छंदों का आलिंगन नवगीत मधुर फिर नाच उठे
भँवरों का मृदु गुंजन सुन कलियों ने घूंघट खोल दिया।।

पलकों पर जो भाव सजे वो भाव-भाव सब अभिवंदन
साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।

रूप सजा कर पुष्पों ने मन का उपवन महकाया है
दीप जला कर यादों के एकाकी दूर भगाया है
चाँद-सितारों ने नभ से भेजी हैं कुछ नेह रश्मियाँ
जिनका अभिवादन करने ऋतुराज धरा पर आया है।।

पुष्पों से जो पंथ सजे उन पंथ-पंथ का अभिनंदन
साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।

अवनी के कानों में कुछ अंबर ने हँसकर बोला है
अवनी ने शरमाकर के फिर घूँघट का पट खोला है
मिले गीत से गीत यहाँ अधरों ने सबकुछ बोल दिया
ऐसा पावन मिलन देख मरुथल का भी मन डोल गया।।

मौन प्रेम के पावन पल के सब भाव-भाव का अभिनंदन
साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।

द्वार हृदय के खुले सभी आलिंगन ने यूँ मोह लिया
सदियों ने जो बात छुपाई लम्हों ने सब बोल दिया
अधरों की पाँखुरियों पर नवगीत मनहरे नाच उठे
शरमाई कलियों ने अपने सारे बंधन खोल दिया।।

छलका मधुघट अधरों पर है रोम-रोम सब अनुरंजन
साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16अगस्त, 2022

जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

उसपार हिमालय की घाटी के फिर शत्रु ने ललकारा है
जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

केसर का दम भरती क्यारी
औ पग-पग सुंदर फुलवारी
सींचा जिसको युगों-युगों से
है घायल वो धरा हमारी
शत्रु के नापाक इरादों ने फिर से हमको ललकारा है
जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

राम, कृष्ण, गौतम की धरती
गीता, वेद, पुराण, उपनिषद
अस्त्र-शस्त्र औ शास्त्र की शिक्षा
का अपना संसार है वृहद
ऐसी शिक्षाओं के प्रण को दूर कोई ललकारा है
जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

जाति धरम का बंधन तोड़ो
भारत को भारत से जोड़ो
गूंजे धरती और गगन ये
मन के सारे आलस छोड़ो
करो दमन सब मंसूबों को दुश्मन ने घात लगाया है
जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

गंगा की लहरें हैं गाती
यमुना जीवन राग सुनाती
सुबह सवेरे दिनकर जिसके
चौखट वंदनवार सजाती
देवों की इस मातृभूमि को अरि ने फिर ललकारा है
जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

दुश्मन बाहर दुश्मन भीतर
इक-इक से हमको लड़ना है
भाषा-भाषी क्षेत्रवाद से
ऊपर हम सबको उठना है
उठ जाओ के भीतर कितने साँपों ने फन फुँफकारा है
जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

लक्ष्मीबाई तात्या टोपे
वीर शिवाजी, मंगल पांडे
भगत, राजगुरु, सुखदेव, तिलक
गाँधी ने इसे सँवारा है
वीर शहीदों के बलिदानों से गूंज रहा नभ सारा है
जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

ये इतना आसान नहीं है
के अरि इसको छू भी पाये
गलत दृष्टि जो भी डालेगा
मुश्किल है वो फिर जी पाये
भारत के कण-कण में सुन लो, बसता मन प्राण हमारा है
जागो भारत पुत्रों जागो फिर माँ ने तुम्हें पुकारा है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       14अगस्त, 2022

जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

नहीं रोशनी मिलती जग को
अँधियारे में जीवन रहता
बात अधर तक पहुँच न पाती
मौन भला फिर कैसे कहता
पीड़ा जब मन को दहलाती तब दर्द हृदय कहाँ सह पाता
जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

स्वप्न सजाता पल-पल जीवन
चलता रहता नहीं ठहरता
कब ठहरा है किसी ठौर पर
कैसे कह दूँ नहीं अखरता
ठहरे जीवन की पीड़ा का फिर मर्म हृदय कहाँ सह पाता
जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

अंतर्मन की कितनी बातों
से है जीवन अनजाना सा
सारे यहाँ मुसाफिर हैं जब
फिर क्यूँ जग है मनमाना सा
मनमाने जग की पीड़ा का कितना भार नयन सह पाता
जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

जीवन के इस रंगमंच की
साँसें ठहरी कठपुतली हैं
कहीं मुखौटे रंग बिरंगे
कहीं काले कहीं उजली हैं
जो ये भान नहीं होता तो चेहरा क्या यहाँ पढ़ पाता
जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       12अगस्त, 2022

अंतस की व्यथा।

अंतस की व्यथा।  

सरयू की पावन रेती पर सूर्य पल-पल ढल रहा
है मौन अंतस में सँभाले मन अकेला चल रहा
मन जीत कर हारा जगत से अंक का भाव रीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।

अब क्या करूँ इस जिंदगी का साथ तेरा जब रहा न
दो कदम भी चल सका न मन साथ तेरे रह सका न
किसलिये ये तन रहे औ क्यूँ रहे मन प्राण इसमें
नयन छलकी प्रार्थना के भावों को मन सुन सका न।।

अंक के सब भाव बिखरे प्रीत का आधार रीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।

क्या करूँ वैभव लिए मैं क्या करूँ संसार सारा
भावनाओं की डगर में मन मिरा हर बार हारा
अश्रु पलकों में जो आये रुक गए सब द्वार आकर
सुन सके ना याचना को नैन ने कितना पुकारा।।

नैन से यूँ धार बरसी बादलों का कुंभ रीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।

हो गए कुंठित प्रणयबंध अवगुंठन कैसे खोलूँ
मौन अधरों पर ठहरे बंधनों को कैसे बोलूँ
कैसे दिखलाऊँ तुम्हें जो घाव दिल पर हैं लगे
मौन बिखरे उन पलों के ठौर कैसे आज जोड़ूँ।।

कैसे बतलाऊँ तुम बिन दर्द का सागर हूँ पीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।

जला ताप से जग देखा शीतलता से कौन जला
पानी भीतर अंगारों पर कभी सुना कौन चला
तिल-तिल कर बीत रहे हैं मेरे अब तो मौन प्रहर
जिसने मेरा सबकुछ छीना जाने थी वो कौन लहर। 

किसे बताऊँ कैसे मेरे मन का मधुघट रीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       12अगस्त, 2022

फिर क्यूँ ना हो स्वीकार मुझे।।

फिर क्यूँ ना हो स्वीकार मुझे।।

कुछ सपने पलकों पर ठहरे
क्या-क्या भाव रचाते हैं
सतरंगी बादल से मिलते
पल-पल स्वप्न सजाते हैं।।

इन सपनों में ही दिखता है
जीवन का आधार मुझे
फिर क्यूँ ना हो स्वीकार मुझे।।

पल-पल रंग बदलता जीवन
आहों में खिलता उपवन
आती जाती इन लहरों से
भींग उठा सारा तन मन।।

जब लहरों की चंचलता में
दिखी नयन की धार मुझे
फिर क्यूँ ना हो स्वीकार मुझे।।

अंतस में लिए अंतर्द्वंद्व
बाँट रहे नयन मकरंद
निज सपनों का मोह त्याग कर
बाँधा सबसे मृदु निबंध।।

मृदु बंधन की शीतलता में
दिखा मृदुल श्रृंगार मुझे
फिर क्यूँ ना हो स्वीकार मुझे।।

नवगीत सजा कर अधरों पर
हरण किया जगत की पीर
मुक्त कंठ हो गाया तुमने
रोक न पाया जग अधीर।।

तेरे हर भावों में प्रतिपल
दिखती है मनुहार मुझे
फिर क्यूँ ना हो स्वीकार मुझे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       11अगस्त, 2022



भोर सुंदर मुस्कुराये।

भोर सुंदर मुस्कुराये।  

शब्द को पहचान मिलती भावना को अर्थ बोलो
चाहतों को राह मिलती कामना को अर्थ बोलो
आ मिलो इक बार देखो है राह क्यूँ सूनी पड़ी
जो छुपे हैं भाव दिल में आज उनका अर्थ बोलो।।

है रोशनी वो ही भली दूर तक रोशन करे जो
चाहतें वो ही भली हैं अंक को उपवन करे जो
औ कब मिली है दूर रहकर प्रीत को मंजिल यहाँ
प्रीत है वो ही भली मन भाव को मधुवन करे जो।।

है अँधेरों की धमक या के उजाले मंद बोलो
रोकते हैं जो राह को कौन सा प्रतिबंध बोलो
ये है समय की मांग या फिर स्वार्थ की सबको पड़ी
हैं बदलते आज पल पल क्यूँ यहॉं कटिबंध बोलो।।

है नहीं इतनी अँधेरी रात तारे डूब जायें
है नहीं इतनी घनेरी रात के पथ लड़खड़ायें
तुम ही कहो के भोर का पथ रुक सका है कब यहाँ
रात के उस पार देखो भोर सुंदर मुस्कुराये।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
        10अगस्त, 2022

पलकों से जो बरसे गीत कहलाये।।

पलकों से जो बरसे गीत कहलाये।।

भाव पलकों में जो आये शब्द अकुलाए
और पलकों से जो बरसे गीत कहलाये।।

शब्द की ओढ़नी में छंद का श्रृंगार कर 
जो ले गयी सभी मेरे हृदय के भाव हर 
वो भाव निज हृदय की पंक्तियों में समाये
और पलकों से जो बरसे गीत कहलाये।।

लिखी बात मन की शब्द का लेकर सहारा
आस का आकाश पृष्ठ पर हमने उतारा
चित्र गढ़े तूलिका ने वो मन को बहलाये
और पलकों से जो बरसे गीत कहलाये।।

क्या करूँ अर्पित कहो अब तुम्हें मैं निशानी
जो बताये तुमको दर्द की सारी कहानी
आहें वो मेरे हृदय की मेघ बन छाये
और पलकों से जो बरसे गीत कहलाये।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10अगस्त, 2022



कहीं तो रास्ता होगा।

गजल-कहीं तो रास्ता होगा।  

बंद से लगती इन गलियों में कहीं तो रास्ता होगा
कहीं तो होगा कोई ऐसा कि जिससे वास्ता होगा।।

आवाजें दूर से टकराकर फिर से लौट आती हैं
कहीं कुछ तो है यहाँ ऐसा के जिससे राब्ता होगा।।

सुना सच बोलने से दुश्मनी बढ़ जाती है शहर में
कोई तो है यहाँ ऐसा जो सच को भाँपता होगा।।

खड़ी न कर दीवारें दरमियाँ अपनी औ जमाने के
के अँधेरा है बहुत गहरा कोई तो रास्ता होगा।।

सिखाया है यही हमको यहाँ जमाने की अदावत ने
चलो जिस राह पर खुलकर देव वही तो रास्ता होगा।।

इस शहर में हर किसी ने अपनी महफ़िल सजा रखी है
लगता है तन्हाइयों से सभी का कुछ वास्ता होगा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08अगस्त, 2022

आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।


दुनिया के इस छोर से हमने
दुनिया के उस छोर को देखा
कितनी ही सूनी आँखों में
देखी है बेबस सी रेखा
कहीं बेबसी के मेले में खो मत जाना यूँ घिरकर
आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

जाना जिनको चले गये हैं
जो तेरे, संग रह गये हैं
मिलना जुलना खेल जगत का
साथ चले, कुछ छूट गये हैं
छोड़ चले जो बीच सफर में व्यर्थ बहाना आँसू उनपर
आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

बात बदल जाती है अकसर
उन पर यदि संज्ञान नहीं लो
ऐसी कोई गली बता दो
राह कभी सुनसान नहीं हो
कभी अकेले हुए यहाँ तो स्वयं परखना खुद को खुलकर
आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

साथ चले तो बात बनेगी
दूर रहे तो रार ठनेगी
बहती आँधी से क्या डरना
कहाँ रुकी जो यहाँ रुकेगी
आँधी औ तूफानों में अब कश्ती पार करायें चलकर
आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अगस्त, 2022

बहुत लिखे हैं मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।

बहुत लिखे हैं मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।

अपने मन की मधुशाला में
लिए खड़ा मैं मौन पियाला
कुछ छलकाये यादों पर अरु
कुछ को पृष्ठों पर लिख डाला
कुछ अधरों को आये छूकर
कुछ आँसू का बने निवाला
हाँ, बहुत गिरे हैं आँसू बनकर गीत मगर अब और नहीं
हाँ, बहुत लिखे हैं मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।

गुपचुप गुमसुम प्यारी बातें
वो बीते दिन अरु बीती रातें
मिलना जुलना साथ निभाना
सबकुछ खोकर सबकुछ पाना
मिला यहाँ उन्माद नहीं है
अरु खोने का अवसाद नहीं
है खोकर पाया बहुत यहाँ पर जीत मगर अब और नहीं
हाँ, बहुत लिखे है मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।

माना के इस गुंजित नभ में
मेरे हैं कुछ गीत अधूरे
माना मन की कुंज गली में
जो चाहे वो पुष्प न फूले
कुछ वंचित गीतों के कारण
पंथी अपना पथ क्यूँ भूले
हाँ, माना मन में रही अधूरी रीत मगर अब और नहीं
हाँ, बहुत लिखे हैं मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।

मन करता है मुक्त गगन में
बस पंछी बनकर उड़ जाऊँ
इन राहों के साथ चलूँ मैं
राहों संग-संग मुड़ जाऊँ
ढूँढूँ अपने मन के भीतर 
बस अपनेपन को मैं गाऊँ
दिन अनुप्रासों के बहुत गये हैं बीत मगर अब और नहीं
हाँ, बहुत लिखे है मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अगस्त, 2022

जीवन की कितनी इच्छाएं मन में मोह जगाती हैं।।

जीवन की कितनी इच्छाएं मन में मोह जगाती हैं।।

कुछ सपने नयनों में भरकर
खुली आँख में खो जाती हैं
पलकों की पंखुरियों से जब
नींद सुनहरी ले जाती हैं।।

पलकों की पाँखुरियों पर हौले से चुम्बन दे जाती हैं
तब जीवन की कितनी इच्छाएँ मन में मोह जगाती हैं।।

जाने कितनी अभिलाषा से
मन प्रतिपल लिपटा जाता है
जाने कितने अनुरागों में
मन खुद को सिमटा पाता है।।

अनुरागों की मृदुल छुअन जब आशा के दीप जलाती है
तब जीवन की कितनी इच्छाएँ मन में मोह जगाती हैं।।

खुली पलक के स्वप्न सभी ये
निज नयनों के हैं आभूषण
आशाएँ भी घनीभूत हों
नित-नित करतीं जिनका पोषण।।

उम्मीदें नवदीप जला जब पल-पल मन हर्षाती हैं
तब जीवन की कितनी इच्छाएँ मन में मोह जगाती हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05अगस्त, 2022

अनगिन खुशियाँ लेकर आया राखी का त्योहार।।

अनगिन खुशियाँ लेकर आया राखी का त्योहार।।

प्रीत के धागों ने बांधा स्नेह का संसार
अनगिन खुशियाँ लेकर आया राखी का त्योहार।।

ये जग भूल भुलैया है इक, भटक रहे हैं सारे
सुख शांति की खातिर अपना सबकुछ हैं हारे
ऐसे में मन की शीतलता का है ये आधार
अनगिन खुशियाँ लेकर आया राखी का त्योहार।।

सावन की मस्ती में कोयल मधुमय गीत सुनाती
मेघों के मृदु ताप पे बरखा रानी भी मुस्काती
चहुँ ओर है हरियाली और बह रही मृदुल बयार
अनगिन खुशियाँ लेकर आया राखी का त्योहार।।

आज धरा ने चंदा मामा को संदेशा भिजवाया
इंद्रधनुषी राखी बाँधी माथे तिलक लगाया
सच है दुनिया में सबसे सच्चा भाई बहन का प्यार
अनगिन खुशियाँ लेकर आया राखी का त्योहार।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01अगस्त, 2022

तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।।

तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।। 

तनिक ठहर जा मौन पल में ऐ मेरे मन प्राण
तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।। 

युग-युग से अंधकार में तुमने मुझको पाला
नित राहों में दीप जला हाथ पकड़ सम्भाला
इस जीवन के तापों में तुमसे मिली है छाँव
तुम बिन नहीं पूरा होगा मेरे मन का गाँव।।

छोड़ चले जो बीच सफर मिलेगी कैसे ठाँव
तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।। 

आज कह दो बातें मन की खोल हृदय का द्वार
कब तक मौन दबा रखोगे उर में हाहाकार
कंठ के कुंठित स्वरों का मोल तब कोई नहीं
पड़ रही हों लाल डोरे आंख जब सोई नहीं।।

खोल दो अपने हृदय को न अब रोको तूफान
तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।। 

वक्त कितना शेष है अब सूर्य देखो ढल रहा
सांध्य की आगोश में जा मौन हो कुछ कह रहा
तुम कहो कितनी बची हैं उन हड्डियों में भार
कौन जाने किस समय में पुष्प बन जाये क्षार।।

कहने सुनने को यहाँ रह जायेंगे आख्यान
तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।। 

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01अगस्त, 2022


श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...