जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

नहीं रोशनी मिलती जग को
अँधियारे में जीवन रहता
बात अधर तक पहुँच न पाती
मौन भला फिर कैसे कहता
पीड़ा जब मन को दहलाती तब दर्द हृदय कहाँ सह पाता
जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

स्वप्न सजाता पल-पल जीवन
चलता रहता नहीं ठहरता
कब ठहरा है किसी ठौर पर
कैसे कह दूँ नहीं अखरता
ठहरे जीवन की पीड़ा का फिर मर्म हृदय कहाँ सह पाता
जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

अंतर्मन की कितनी बातों
से है जीवन अनजाना सा
सारे यहाँ मुसाफिर हैं जब
फिर क्यूँ जग है मनमाना सा
मनमाने जग की पीड़ा का कितना भार नयन सह पाता
जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

जीवन के इस रंगमंच की
साँसें ठहरी कठपुतली हैं
कहीं मुखौटे रंग बिरंगे
कहीं काले कहीं उजली हैं
जो ये भान नहीं होता तो चेहरा क्या यहाँ पढ़ पाता
जो अश्रु सहारा न होता तो निज मन बात कहाँ कह पाता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       12अगस्त, 2022

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