तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक
होंगे साथ तुम्हारे लाखों किंतु अकेला चल सकता हूँ
तुमसे दूर रहा हूँ अब तक क्या बतलाऊँ क्या मजबूरी
बिन तेरे इस जीवन में मैं भी हँसकर पल सकता हूँ
विरह-मिलन के मौन पलों में पाया जो व्यवहार मुबारक
तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक।।
तुमने जाने जीवन पथ पर मेरे सपने क्यूँ ठुकराए
तुमको भान नहीं था लेकिन मेरे पग को डिगा न पाये
होंगे तुमने लिखे बहुत से निज जीवन की मधुर कहानी
लेकिन अब भी गूंज रहे हैं गीतों में मेरी गाथाएँ
जिन अधरों ने गीत भुलाये उनका भी आभार मुबारक
तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक।।
अपने भावों को गीतों में रच कर हमने महल बनाया
साँसों की सरगम डाली जब तब जाकर जीवन को पाया
अपने गीतों से जगती के मन को नित बहलाने वाले
दुनिया ने कुछ भी गाया पर ढाई आखर गाने वाले
मेरे गीतों ने तुमसे जो पाया वो आभार मुबारक
तुम्हें मुबारक हार पुष्प के मुझको अश्रु धार मुबारक।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
23अगस्त, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें