आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।


दुनिया के इस छोर से हमने
दुनिया के उस छोर को देखा
कितनी ही सूनी आँखों में
देखी है बेबस सी रेखा
कहीं बेबसी के मेले में खो मत जाना यूँ घिरकर
आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

जाना जिनको चले गये हैं
जो तेरे, संग रह गये हैं
मिलना जुलना खेल जगत का
साथ चले, कुछ छूट गये हैं
छोड़ चले जो बीच सफर में व्यर्थ बहाना आँसू उनपर
आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

बात बदल जाती है अकसर
उन पर यदि संज्ञान नहीं लो
ऐसी कोई गली बता दो
राह कभी सुनसान नहीं हो
कभी अकेले हुए यहाँ तो स्वयं परखना खुद को खुलकर
आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

साथ चले तो बात बनेगी
दूर रहे तो रार ठनेगी
बहती आँधी से क्या डरना
कहाँ रुकी जो यहाँ रुकेगी
आँधी औ तूफानों में अब कश्ती पार करायें चलकर
आओ फिर से गीत सजा लें अपने अधरों पर मिलकर।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अगस्त, 2022

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