अधरों पर जो शब्द रुके पलकों ने उनको बोल दिया
पाकर सांसों का स्पंदन ऋतुओं ने मधुघट खोल दिया
पा छंदों का आलिंगन नवगीत मधुर फिर नाच उठे
भँवरों का मृदु गुंजन सुन कलियों ने घूंघट खोल दिया।।
पलकों पर जो भाव सजे वो भाव-भाव सब अभिवंदन
साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।
रूप सजा कर पुष्पों ने मन का उपवन महकाया है
दीप जला कर यादों के एकाकी दूर भगाया है
चाँद-सितारों ने नभ से भेजी हैं कुछ नेह रश्मियाँ
जिनका अभिवादन करने ऋतुराज धरा पर आया है।।
पुष्पों से जो पंथ सजे उन पंथ-पंथ का अभिनंदन
साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।
अवनी के कानों में कुछ अंबर ने हँसकर बोला है
अवनी ने शरमाकर के फिर घूँघट का पट खोला है
मिले गीत से गीत यहाँ अधरों ने सबकुछ बोल दिया
ऐसा पावन मिलन देख मरुथल का भी मन डोल गया।।
मौन प्रेम के पावन पल के सब भाव-भाव का अभिनंदन
साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।
द्वार हृदय के खुले सभी आलिंगन ने यूँ मोह लिया
सदियों ने जो बात छुपाई लम्हों ने सब बोल दिया
अधरों की पाँखुरियों पर नवगीत मनहरे नाच उठे
शरमाई कलियों ने अपने सारे बंधन खोल दिया।।
छलका मधुघट अधरों पर है रोम-रोम सब अनुरंजन
साँसों ने जो गीत लिखे वो शब्द-शब्द सारे चंदन।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16अगस्त, 2022
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