तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

हँसकर अपनी आहों को आ गीतों में यूँ ढालें हम
तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

मैं तेरी पीड़ाएँ चुन लूँ तुम भी मेरी पीर चुनो
मैं तेरी आहों को सुन लूँ तुम भी मेरी आह सुनो
इक दूजे के सपनों में हम निज सपनों को ढूँढें
मैं राहों के कंटक बिन लूँ तुम भी मेरी राह बुनो।।

तुम औ मैं के मौन सफर में मिलें एक हो जायें हम
तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

तुम मेरे सपनों को जी लो मैं भी तेरे स्वप्न जियूँ
तुम मेरे घावों को सी दो मैं भी तेरे घाव सियूँ
इक दूजे की आहों में बस इक दूजे को अपनाएं
तुम मेरे आँसू पी जाओ मैं भी तेरे अश्रु पियूँ।।

अधरों पर ऐसे बस जायें बनें गीत की हम सरगम
तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

आ नींद ओढ़ लो तुम मेरे, तेरे सपनों में आऊँ
तुमने जो भी गीत लिखे हैं जीवन भर उसको गाऊँ
होंगे अपने दिवस सुनहरे रातें अपनी बनें दिवाली
दूर क्षितिज तक आशाओं का आँचल कभी न ही खाली।।

ताप धूप की सर्द रात का मिलकर सितम सहेंगे हम
तुम बन जाओ छंद गीत का जिसको मिलकर गायें हम।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        31अगस्त, 2022

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