तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।।
तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।।
युग-युग से अंधकार में तुमने मुझको पाला
नित राहों में दीप जला हाथ पकड़ सम्भाला
इस जीवन के तापों में तुमसे मिली है छाँव
तुम बिन नहीं पूरा होगा मेरे मन का गाँव।।
छोड़ चले जो बीच सफर मिलेगी कैसे ठाँव
तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।।
आज कह दो बातें मन की खोल हृदय का द्वार
कब तक मौन दबा रखोगे उर में हाहाकार
कंठ के कुंठित स्वरों का मोल तब कोई नहीं
पड़ रही हों लाल डोरे आंख जब सोई नहीं।।
खोल दो अपने हृदय को न अब रोको तूफान
तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।।
वक्त कितना शेष है अब सूर्य देखो ढल रहा
सांध्य की आगोश में जा मौन हो कुछ कह रहा
तुम कहो कितनी बची हैं उन हड्डियों में भार
कौन जाने किस समय में पुष्प बन जाये क्षार।।
कहने सुनने को यहाँ रह जायेंगे आख्यान
तुम बिन अब तक है अधूरा इस जीवन का गान।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01अगस्त, 2022
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