तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।
हैं शोर कहीं पर, सन्नाटे
यादों के कुछ उजले पन्ने
स्याह अँधेरी कुछ थी रातें
मन में कितने पल पलते हैं
तेरे खत को जग पढ़ते हैं।।
दूर क्षितिज तक आना जाना
सपनों का ले ताना बाना
पदचिन्हों की कई निशानी
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
कितना कुछ मन में गढ़ते है
तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।
नयनों में गीतों का दर्पण
कुछ पाया कुछ किया समर्पण
कुछ ने अंतस को बहलाया
मन के घावों को सहलाया
कुछ में कितना कुछ कहते हैं
तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।
बरगद की वो छाँव पुरानी
पुरवा वाली रात सुहानी
पावस की वो शीतल रातें
नयनों से नयनों की बातें
तारों से बातें करते हैं
तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।
उम्र से लंबी होती रातें
रातों से भी लंबी बातें
वीथी पे फिर नई कहानी
भाव मनहरे पंक्ति पुरानी
पलकों को फिर नम करते हैं
तेरे खत को जब पढ़ते हैं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26अगस्त, 2022
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