फिर आज सहलाने चली हैं।

फिर आज सहलाने चली हैं।   

आह के किंचित पलों में गीत की कुछ पंक्तियाँ
दर्द के प्रभाव को फिर आज सहलाने चली हैं।।

पाप हो के पुण्य हो जो भी किया सबने किया
जो है गरल पिया कभी तो स्वयं अमृत भी पिया
क्यूँ यहाँ अफसोस करना राह की उलझनों से
लौट आते निज स्वरों के साथ जब जीवन जिया।।

प्रतिनाद के निस पलों में आह की कुछ सिसकियाँ
दर्द के प्रभाव को फिर आज सहलाने चली हैं।।

भाव हैं क्या खास पल में सब समझना चाहते 
खास की क्या खासियत है सब समझना चाहते
कौन है संपूर्ण औ कौन है आधे हृदय से
कौन के उस प्रश्न से क्यूँ सब उलझना चाहते।।

प्रश्न के आकाश पर कुछ उत्तरों की तितलियाँ
दर्द के प्रभाव को फिर आज सहलाने चली हैं।।

छप गये कुछ शब्द क्यूँ इस हृदय के श्याम पट पर
लौट आती हैं लहर सब झूमती देख तट पर
चल पड़ो संघर्ष में फिर झूमते गीत गाते
आह को स्वीकार कर लो राह में मुस्कुराते।।

साँस के अनुरोध पर फिर मौन पल में सिसकियाँ
दर्द के प्रभाव को फिर आज सहलाने चली हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       18अगस्त, 2022

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