अपने मन की मधुशाला में
लिए खड़ा मैं मौन पियाला
कुछ छलकाये यादों पर अरु
कुछ को पृष्ठों पर लिख डाला
कुछ अधरों को आये छूकर
कुछ आँसू का बने निवाला
हाँ, बहुत गिरे हैं आँसू बनकर गीत मगर अब और नहीं
हाँ, बहुत लिखे हैं मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।
गुपचुप गुमसुम प्यारी बातें
वो बीते दिन अरु बीती रातें
मिलना जुलना साथ निभाना
सबकुछ खोकर सबकुछ पाना
मिला यहाँ उन्माद नहीं है
अरु खोने का अवसाद नहीं
है खोकर पाया बहुत यहाँ पर जीत मगर अब और नहीं
हाँ, बहुत लिखे है मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।
माना के इस गुंजित नभ में
मेरे हैं कुछ गीत अधूरे
माना मन की कुंज गली में
जो चाहे वो पुष्प न फूले
कुछ वंचित गीतों के कारण
पंथी अपना पथ क्यूँ भूले
हाँ, माना मन में रही अधूरी रीत मगर अब और नहीं
हाँ, बहुत लिखे हैं मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।
मन करता है मुक्त गगन में
बस पंछी बनकर उड़ जाऊँ
इन राहों के साथ चलूँ मैं
राहों संग-संग मुड़ जाऊँ
ढूँढूँ अपने मन के भीतर
बस अपनेपन को मैं गाऊँ
दिन अनुप्रासों के बहुत गये हैं बीत मगर अब और नहीं
हाँ, बहुत लिखे है मधुमासों के गीत मगर अब और नहीं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06अगस्त, 2022
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