जीवन की कितनी इच्छाएं मन में मोह जगाती हैं।।

जीवन की कितनी इच्छाएं मन में मोह जगाती हैं।।

कुछ सपने नयनों में भरकर
खुली आँख में खो जाती हैं
पलकों की पंखुरियों से जब
नींद सुनहरी ले जाती हैं।।

पलकों की पाँखुरियों पर हौले से चुम्बन दे जाती हैं
तब जीवन की कितनी इच्छाएँ मन में मोह जगाती हैं।।

जाने कितनी अभिलाषा से
मन प्रतिपल लिपटा जाता है
जाने कितने अनुरागों में
मन खुद को सिमटा पाता है।।

अनुरागों की मृदुल छुअन जब आशा के दीप जलाती है
तब जीवन की कितनी इच्छाएँ मन में मोह जगाती हैं।।

खुली पलक के स्वप्न सभी ये
निज नयनों के हैं आभूषण
आशाएँ भी घनीभूत हों
नित-नित करतीं जिनका पोषण।।

उम्मीदें नवदीप जला जब पल-पल मन हर्षाती हैं
तब जीवन की कितनी इच्छाएँ मन में मोह जगाती हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05अगस्त, 2022

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...