चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

चाँदनी पथ है सँवारे भोर देखो द्वार पर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

है लहर में शोर माना और तूफ़ाँ तेज है
जिंदगी यदि फूल है तो काँटों की भी सेज है
सबके अपने भाव हैं सबकी अपनी कहानी
छप गये राह पर पदचिन्ह कितने बन निशानी।।

इस राह के प्रभाव को हँस के तू स्वीकार कर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

ध्यान से सुन तो तनिक राह क्या कुछ बोलती हैं
राह के संघर्ष के भेद सारे खोलती है
अनगिनत राही गये हैं एक बस तू ही नहीं
गूँजते हैं गीत जिनके राह में सुन तो यहीं।।

रच यहाँ नव गीत तू भी  स्वप्न को साकार कर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

मंजिलों ने कब यहाँ मोह राहों से जताया
स्वयं राहें जब चलीं मंजिलों को पास पाया
है यहाँ किसको पता राह में क्या-क्या मिलेंगे
वन मिलेंगे पुष्प या कंटकों के शर मिलेंगे।।

पुष्प या शर कंटकों के मौन सब स्वीकार कर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

क्या भला है क्या बुरा व्यर्थ है अब बात करना
रास्ते में चल पड़े मुश्किलों से क्या फिर डरना
है सफल पंथी वही जिसने पथ का मान किया
जीत पाया वो जगत जो चित्त का अवधान किया।।

कंटकों से सीख ले इस सत्य को स्वीकार कर
चल बटोही चल चलें आ इस भँवर को पार कर।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       21अगस्त, 2022

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