अब वो बात नहीं होती।

अब वो बात नहीं होती।  

जाने क्या बात है के बात नहीं होती है
नम तो होती हैं मगर आँख नहीं रोती है।।

हिचकियाँ आती रही रात भर जाने यूँ ही
होंठों ने चाहा मगर नाम नहीं लेती हैं।।

सुबह से नजरें लगा रखी हैं दरवाजे पे
जाने क्या बात है जो साँझ नहीं होती है।।

निकलता है सूरज भी चंदा भी रोज मगर
पर वो पहली सी सुबह, रात नहीं होती है।।

उन सपनों को छिपा रखे हैं पलकों में कहीं
रात तो होती है पर आँख नहीं सोती है।।

तेरी यादों को कांधों पे लिए चलते हैं
सीधे चलते हैं अब अगलात नहीं होती है।।

ये आँसू भी अब बादल बन गये हैं सारे
नम करते हैं मगर बरसात नहीं होती है।।

लिखने को लिखते हैं बहुत 'देव" मगर फिर भी
गीत गजलों में अब वो बात नहीं होती है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अगस्त, 2022



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