अंतस की व्यथा।
है मौन अंतस में सँभाले मन अकेला चल रहा
मन जीत कर हारा जगत से अंक का भाव रीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।
अब क्या करूँ इस जिंदगी का साथ तेरा जब रहा न
दो कदम भी चल सका न मन साथ तेरे रह सका न
किसलिये ये तन रहे औ क्यूँ रहे मन प्राण इसमें
नयन छलकी प्रार्थना के भावों को मन सुन सका न।।
अंक के सब भाव बिखरे प्रीत का आधार रीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।
क्या करूँ वैभव लिए मैं क्या करूँ संसार सारा
भावनाओं की डगर में मन मिरा हर बार हारा
अश्रु पलकों में जो आये रुक गए सब द्वार आकर
सुन सके ना याचना को नैन ने कितना पुकारा।।
नैन से यूँ धार बरसी बादलों का कुंभ रीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।
हो गए कुंठित प्रणयबंध अवगुंठन कैसे खोलूँ
मौन अधरों पर ठहरे बंधनों को कैसे बोलूँ
कैसे दिखलाऊँ तुम्हें जो घाव दिल पर हैं लगे
मौन बिखरे उन पलों के ठौर कैसे आज जोड़ूँ।।
कैसे बतलाऊँ तुम बिन दर्द का सागर हूँ पीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।
जला ताप से जग देखा शीतलता से कौन जला
पानी भीतर अंगारों पर कभी सुना कौन चला
तिल-तिल कर बीत रहे हैं मेरे अब तो मौन प्रहर
जिसने मेरा सबकुछ छीना जाने थी वो कौन लहर।
किसे बताऊँ कैसे मेरे मन का मधुघट रीता
निःशब्द अवनी निःशब्द अंबर क्या कहे कौन जीता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12अगस्त, 2022
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