कुदरत का करिश्मा।

इक नया आगाज़ लिखते हैं।

देखा है।

इतने ऊंचे आज उड़ो तुम।

भूल नहीं सकता।

प्रेम के तुम देवता हो।

मैं ढूंढता हर बार हूँ।

मैं दिखलाती हूँ।
चिड़िया और उसके चुग्गे के मध्य संवाद।
चित्र चिंतन- एक प्रयास
मैं दिखलाती हूँ
उड़ उड़ कर नील गगन में
चुग चुग कर दाना लाई हूँ
नन्हें-मुन्ने अब बाहर आओ
मैं सारी दुनिया लाई हूँ।
डाली-डाली, पत्ते-पत्ते
ढूंढी कलियाँ, ढूंढे फूल
तब जो पराग कण पाई
सब चुन-चुन कर लाई हूँ।
माँ मुझे मत भोला समझो
देख समझ सकता हूँ सबको
डाली-डाली कूद कूद कर
मैं अब तो आ जा सकता हूँ।
अभी पंख तेरे हैं छोटे
छोटा तू है काया छोटी
उड़ने में वक्त तुझे है
छूना फिर तू नभ की चोटी।
अभी तुमको उड़ना न आया
छोटा है , कोई भरमाता
बस कुछ दिन की बातें हैं
तब तक सब समझाती हूँ।
तब तक पंखों के आंचल से
आ जा तुझको सहलाती हूँ
सीमाहीन गगन तेरा है
तब तक मैं दिखलाती हूँ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26जून,2020

तक़दीर की लिखावट।

निशा निमंत्रण।

तुमको कोई कमी मिलेगी।

योग।

भारत के आगे तड़पेगा।

जैसा कर्म वैसा फल।

उचित न्याय सबका अधिकार।

तुमको लेकिन खबर नहीं थी

नन्हें पांव।

मुखर सत्य।

फिर नई शुरुआत कर देंगे।

दोहे व छंद

गुलमोहर

इंसानों सा जीना होगा।

मन को साफ करो।

बाल कविता- इन्द्रधनुष से बचपन

पलट जाई पासा

राम-नाम सत्य जगत में
राम-नाम सत्य जगत में राम-नाम बस सत्य जगत में और झूठे सब बेपार, ज्ञान ध्यान तप त्याग तपस्या बस ये है भक्ति का सार। तन मन धन सब अर्पित प्रभु क...
-
श्री लक्ष्मण मूर्छा एवं प्रभु की मनोदशा चहुँओर अंधेरा फैल गया ऋषि ध्वनियाँ सारी बंद हुईं, पुलकित होकर बहती थी जो पौन अचानक मंद हुई। कुछ नहीं...
-
गीतों में कहानी साथी गीतों के मधुवन में हमने भी बोये गीत नए, कुछ गीतों में विरह वेदना औ कुछ में लिखी कहानी है। दो चार कहानी नयनों की दो चार ...
-
कितना देखा भाला लेकिन कुछ भी जान नहीं पाये। थी पहचानी गलियाँ लेकिन कुछ अनुमान नहीं पाये। पल-पल भेष बदलते देखा क्या जाने क्या अनजाने, अपनी ही...