काहें को भटके मनवा
काहें भरल बा निराशा,
चार दिन के जिंदगानी
फिर त पलट जाई पासा।
माटी के खोता में हौ
व्याकुल पंछी के बसेरा
दिन रात भटके इ सगरो
ढूँढे नया इक सवेरा।
दिनवा सिमटते सिमटते
आई सांझ ले बुढापा
राम नाम जप ले बंदे
फिर त पलट जाई पासा।
प्रीत के रस्ता पे चलि के
आपन जिंदगी सुधार ल
हमर, तोहर चक्कर छोड़ा
सगरो के तू अपना ला।
चार कदम के हौ रास्ता
संगे कुछ नाही जा ला
राम नाम जप ले बंदे
फिर त पलट जाई पासा।
माया, मोह, लोभ में पड़ि
तू भटक रहे हो काहें
यहीं सारा रह जायेगा
तू अटक रहे हो काहें।
मनवा के निखार ला तू
छंट जाई सब कुहासा
राम नाम जप ले बंदे
फिर त पलट जाई पासा।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01जून,2020
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