गुलमोहर।
गुलमोहर की छांव तले
एक गीत सुनाने आया हूँ
भूली बिसरी उन यादों को
फिर आज जगाने आया हूँ।
दिन माना कितने बीत गए
पर याद तुम्हारी बनी रही
इक दूजे से हुए दूर भले
पर छाँह तुम्हारी बनी रही।
उन छाहों की अंगनाई में
फिर सुस्ताने आया हूँ
भूली बिसरी यादों को
फिर आज जगाने आया हूँ।
लिखना था पर शेष रह गये
कहना था संवाद खो गए
अतृप्त तृष्णा भावों में भर
इक दूजे से दूर हो गए।
शेष उन्हीं संवादों को
फिर आज सुनाने आया हूँ
भूली बिसरी यादों को
फिर आज जगाने आया हूँ।
दबी थी जो मन में तू कह ले
खुल कर आज खुद से मिल ले
पुनः आज फिर चूक गयी तो
न जाने कब ये पुष्प खिलेंगे।
फिर गुलमोहर की शाखों को
मैं दहकाने आया हूँ
भूली बिसरी यादों को
फिर आज सुनाने आया हूँ।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04जून,2020
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