दोहे व छंद

दोहे व छंद

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राम नाम की धुन लगा, राम नाम की प्यास।
माया-मोह बिसराई, कर राम नाम की आस।।1।।

संकट का है ये समय, धैर्य का है मान।
शांत चित्त बर्ताव से,बनेंगे बिगड़े काम।।2।।

 आपद के इस काल में, वचन बड़े अनमोल,
 भावों को शीतल करे, ऐसी बोली बोल।।3।।
 
बिखरी किरणें भोर की, दूर सब अंधकार।
मन में सुगढ़ भाव जगे, सुंदर सब  व्यवहार।।4।।

मन से सब कटुता मिटे, सुंदर जग परिवार।
राग-द्वेष भाव छंटे, मिले ज्ञान आधार।।5।।

जीवन इक संग्राम है, चलता रहता युद्ध।
सुगम इसको करना है, कर ले मन को शुद्ध।।6।।

भांति भांति के लोग हैं, भांति भांति के  भाव
जैसा जिसका भाव है, मिलती वैसी  छांव।।7।।

बादल से बारिश गिरे, बन कर के संगीत
रिमझिम बारिश बूंद ने, भर दी दिल में प्रीत।।8।।

भींगा भींगा मन यहां, भींगा गया है तन
नदिया, नाले सब भरे, हर्षाया जन गण मन।।9।।

बादल से बिजली गिरे, खूब मचाये शोर
मौसम का रुख देख के, नाचन लागे मोर।।10।।

सावन आया झूम के, बरसी प्रेम फुहार
बारिश की हर बूंद से, स्वर्णिम वंदनवार।।11।।     

झूठा धन का मोह है, झूठा सब अभिमान
झूठा पद  से नेह  है, झूठा  है  अतिमान।।12।।

राम बनाई देह है, ना करो साभिमान
अंत समय मिट जाएगा, रहता बस सम्मान।।13।।

मात-पितु की सेवा से, बनते बिगड़े काम,
जो करते अपमान वो, ना पाते सम्मान।।14।।

चक्की चलती जाये है, नहि करती आराम,
निःस्वार्थ सबहि तारती, तब पाती सम्मान।।15।।

है यही अरज हमारी ,हँसता रहे जहान
अपने नेक कामों से, सब जन पाएं सम्मान।।16।।

बैर भाव सब खतम हो, खतम सारे अवसाद,
मिलजुल कर के सब रहें,जीवन बने महान।।17।।

धीरे धीरे सुबह हुई, जग गयी जिंदगी,
अंधकार सब दूर हुए,शुरू हुई बंदगी।।18।।

तुम भी सब आलस्य त्यजो, सुमिरो प्रभु का नाम
जीवन है इक पुण्यपंथ, पूरन कर सब काम।।19।।

सूरज से सीखो सदा, रहना तुम गतिमान।
जीवन की इस दौड़ में,गढो नए प्रतिमान।।20।।

जीवन इक संगीत है, मिल सब गाओ गान।
एक दूजे में प्रेम हो, कहीं न हो अभिमान।।21।।

चलती रहती जिंदगी, चलता रहता काम।
इक पल जो भी रुक गया, रुक जाते सब काम।।22।।

जीवन चक्की जांत की, हर पल चलती जाए।
जैसी मुटठी कर्म की, वैसी पिसती जाए।।23।।

मनवा प्यासा प्रेम का, घट घट भटकत जाय।
जिस ठौर पर प्रेम मिले, वो ही का हो जाय।।24।।

मनवा में जो बैर हो,स्थिर नहिं हो पाए।
प्रेम भाव मन में बसे,जनम सुफल हो जाय।।25।।

सब जन हैं शंकित यहां,मन में है संताप।
प्रेम भाव से सब मिलो, घटे त्रास अभिषाप।।26।।

जीवन है गुरुकुल यहां,नित नव पाठ पढ़ाए।
जैसा जो भी देखता, वैसी राह दिखाए।।27।।

मनवा का सब खेल है, मनवा का अनुबंध।
मनवा से ही प्रीत है, मनवा से संबंध।।28।।

प्रेम प्यार की लौ जले, मन में हो विश्वास।
सबमें सौहार्द्र भरें, आओ रचें इतिहास।।29।।

मन में कभी न राखिए, लोभ क्रोध मद मोह।
ज्ञानी जन सब कह गए, इनसे बाढ़े द्रोह।।30।।

बुद्धि, विवेक, धैर्य, बल, जीवन के हथियार।
इनसे ही सम्मान है, होता जग उजियार।।31।।

शब्द सभी अनमोल हैं, धरो शब्द का ध्यान।
शब्दों से ही होत हैं, मान और अपमान।।32।।

हिल मिल कर यदि सब रहे, बढ़े प्रेम व्यवहार।
घर में तब सुख शांति हो, फैले कीर्ति अपार।।33।।

है छोटी सी बात ये, कहे सभी ऋषि राज।
इन्द्रिय जो वश में करे, करे जगत पर राज।।34।।

अपने मन विश्वास भर, शुरू करो सब काम।
हर मुश्किल आसान हो, बढ़े जगत में नाम।।35।।

मेहनत से न भागिए, इसके बिन सब व्यर्थ।
नहीं कहीं सम्मान मिले, मिट जाते सब अर्थ।।36।।

निश्चय से जो प्रीत है, निश्चित हरपल जीत।
निश्चय से सबकुछ मिले, निश्चित मन का मीत।।37।।

सुंदर जग संसार है, सुंदर जग का रूप।
खिली कहीं पे छांव तो, कहीं खिली है धूप।।38।।

घट घट बसता प्रेम जब, सजता तब संसार।
प्रेम बिना कब चल सके , कोई भी व्यापार।।39।।

भटका मन संसार में, पाता कभी न चैन।
ज्यूँ आंँखों में नींद बिन, कटे नहीं ये  रैन।।40।।

भटका मन संसार में, पाता कब अधिकार।
जो मन को वश में करे, पाए सिद्धि अपार।।41।।

✍️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      

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