मुक्तक

मुक्तक
     1
महज नजरों का धोखा है इसे कुछ और मत समझो।
मुसाफिर हूँ मोहब्बत का मुझे कुछ और मत समझो।
नहीं इसमें खता मेरी है सारा दोष नजरों का,
मैं आशिक हूँ नजारों का मुझे कुछ और मत समझो।
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       2
आये थे तेरे पास निभाने के वास्ते।
चले कुछ दूर तक साथ निभाने के वास्ते।
तुमने इसे मजबूरियों का नाम दे दिया,
छोड़ा तुम्हारा साथ निभाने के वास्ते।
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         3
ऐसा नहीं कि हमको कोई शौक नहीं है।
रुसवाइयों का दिल में कहीं खौफ नहीं है।
मजबूरियों ने शौक को ऐसा दफन किया,
हरदम यही कहा के हमको शौक नहीं है।
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          4
वक्त के सितम भी कितने क्रूर हो गए।
हम ठीक से मिले न थे कि दूर हो गए।
हाथ की लकीरों में कुछ तो कमी रही,
मजबूरियों में उलझे यूँ मजबूर हो गए।
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           5
ऐसा नहीं के आँख में मेरे नमी नहीं।
ऐसा नहीं कि अब भी है तुम पर यकीं नहीं।
हाँ, दूर हुआ तुमसे यही दोष है मेरा,
कैसे कहूँ तेरे बिना कोई कमी नहीं।
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             6
नहीं भूला अभी तक दिल पुरानी वो मुलाकातें।
अभी तक याद है दिल को सुहानी चाँदनी रातें।
नहीं है बेवफा कोई महज ये खेल किस्मत का,
गिरे जब हाथ से लम्हे न थी कुछ राज की बातें।
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                7
ये माना कि हमें इस राह में मिलना जरूरी था।
चले जिस राह हम तुम साथ में चलना जरूरी था।
मगर कुछ बंदिशें थीं, घाव थे दिल मे लगे ऐसे,
दिलों से बंदिशों के घाव का धुलना जरूरी था।
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                 8
यही चाहत है इस दिल की तुम्हें हर पल निहारूँ मैं।
तुम्हारे गेसुओं के छाँवों में लम्हा गुजारुँ मैं।
नहीं होंगे जुदा तुमसे अब यही वादा हमारा है,
कि अपनी साँस के हर मोड़ पर तुमको ही पुकारूँ मैं।
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               9
महफ़िल में यहाँ देखो हजारों लोग आए हैं।
दिल में प्यार, अपनापन भरे सब लोग आए हैं।
अपनी खुशनसीबी है मिले हैं आप सब हमको,
दिलों को जीतने सबके प्यारे लोग आए हैं।
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                 10
हैं लिखे जो गीत सब तुमको सुनाना चाहता हूँ।
तुम्हारे गीतों को मैं गुनगुनाना चाहता हूँ।
ख्वाहिश है तुम्हारे संग जीने और मरने की,
के मेरे दिल में है क्या-क्या दिखाना चाहता हूँ।
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                11
खुशी के साथ में कुछ गम का रहना भी जरूरी है।
किसी से बात अपने दिल की कहना भी जरूरी है।
कहीं ना बोझ बन जाये रुके आँसू इन आँखों में,
पलक के कोर से आँसुओं का बहना भी जरूरी है।
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               12
थी जाने कैसी जिद सभी पे भारी पड़ गई।
मजबूरियाँ सभी जिंदगी पे भारी पड़ गईं।
उलझे रहे सब शौक यहाँ मजबूरियों में यूँ,
कि ये जिंदगी भी मौत पे अब भारी पड़ गई।
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                 13
एक सपना नयन में छुपाए रहे।
बात दिल की लवों पे दबाए रहे।
जब भी सोचा तुम्हें बताऊँ कभी,
दूर होने के डर दिल में छाए रहे।
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                   14
ज़ख्म जो भी मिले हम सिले ही नहीं।
दाग दिल पर लगे जो धुले ही नहीं।
दिल को मेरे कोई शिकायत नहीं,
बस ये सोचा हम तुम मिले ही नहीं।
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                   15
साथ रहने का वादा अधूरा रहा।
भावनाओं का सागर अधूरा रहा।
राहों की थी जाने क्या मजबूरियाँ,
जब भी हम तुम मिले कुछ अधूरा रहा।
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              16
दूर अब भी वहीं है वो वीरानियाँ।
बैठ गिनता जहाँ अपनी तनहाइयाँ।
लोगों में मैं रहूँ या अकेले कहीं,
ढूँढता हर घड़ी तेरी परछाइयाँ।
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            17
न पुष्प लाया हूँ न नजराने लाया हूँ।
गीत की कुछ पंक्तियाँ सुनाने आया हूँ।
बस दिल में आपके जरा जगह बना सकूँ,
भावनाओं को मैं सहलाने आया हूँ।
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            18
शूल चुभे पैर में या लहू निकल पड़े।
ताप में झुलसे फफोले अब उबल पड़े।
रोकेंगी क्या मुश्किलें राह की तुम्हें,
हौसला जब जीत का लेकर निकल पड़े।
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              19
जो दूर तक चले उसी का साथ चाहिए।
जो हाथ न छोड़े उसी का हाथ चाहिए।
मिलने को मिल जाएंगे कितने सफर में,
जो साथ निभाए उसी का साथ चाहिए।
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             20
शब्द-शब्द हैं चुने तब पंक्तियां बनी।
पंक्तियाँ चुनी कहीं तब गीतिका बनी।
गीतिका में भरी जब दिल की भावना,
वही नेह के प्रसार की पत्रिका बनी।
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               21
नजराना चाहिए न उपहार चाहिए।
दिल में आपके मुझे बस प्यार चाहिए।
जिंदगी की दौड़ सभी जीत जाएंगे,
मुझको साथ आपका हर बार चाहिए।
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                  22
आज माना हारा हूँ पर दिल को गम नहीं।
हौसला मेरा हुआ है अब भी कम नहीं।
आज हारा हूँ मगर कल जीत जाएंगे,
अपना भरोसा है ये कोई भरम नहीं।
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                 23
कुछ पलों का साथ है ये मेरा आपका।
गीतों में जो भाव हैं वो प्यार आपका।
क्या कहूँ क्या-क्या मिला है मुझको आपसे,
सुन रहे हैं मुझको है अहसान आपका।
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               24
शिकायतें, हिदायतें सभी सहूलियतें बदल गईं।
इस जिंदगी के दौर की सब हकीकतें बदल गईं।
इंसानियत के मरने का है अब किसको गम यहाँ,
ताकत के इस दौर में सभी नसीहतें बदल गईं।
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              25
चेहरों पे सदा सबके तुम मुस्कान खिलाना।
सपनों की लिखावट से सदा घरबार सजाना।
हर पल रहे खुशियाँ सदा दामन में तुम्हारे,
आशीष है बेटी सदा तुम यूँ ही मुस्काना।
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                26
देखो मोहब्बत ने नई जीत लिखी है।
मजबूत इरादे ने नई प्रीत लिखी है।
अब लिख रही है भोर आसमान इक नया
सांध्य सितारों ने भी नई रीत लिखी है।
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                  27
मुश्किल थी यहाँ फिर भी हमने काम है किया।
हर पल तुम्हारे नाम का गुणगान है किया।
तुमने तो बस समझा हमें इक वोट की तरह,
जब चाहा भुनाया हमें और फेंक फिर दिया।
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                 28
बहुत वीरानियाँ पसरीं कभी कुछ शोर तो होगा
मिरी परछाइयों का भी कभी कुछ दौर तो होगा।
बहुत भटकी हैं राहें ये कितनी ख्वाहिशें लेकर,
मिरी तन्हाइयों का भी कभी कुछ ठौर तो होगा।
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             29
नहीं हूँ पास माना मैं मगर थोड़ी सी दूरी है,
के थोड़े फासले रखना यहाँ पर भी जरूरी है।
मैं कैसे भूल सकता हूँ बिताए संग लम्हों के,
समय के साथ चलना है तो दूरी भी जरूरी है।
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         30

है माना जेब खाली पर खरीद सकता हूँ,
हो चाहे दाम कुछ भी पर खरीद सकता हूँ।
इस प्रेम से मिली है मुझको दौलतें इतनी,
तुम्हारा दर्द जो भी हो खरीद सकता हूँ।
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         31
कल जो कहते थे कि, अब कल से वो नहीं आयेंगे,
फिर से गीतों को मेरे, अब वो न गुनगुनायेंगे।
नहीं शिकवा मुझे उनसे, अब न कोई शिकायत है,
मगर क्यूँ साथ छूटा है, यहाँ कैसे बतायेंगे।
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              32
अब कोई रुकावटें मुझको न रोक पायेंगी,
अब कोई भी वेदना मुझको न तड़पाएँगी।
जब से थामा है हमने हाथ राम का अपने,
कोई भी मुश्किलें राहों में अब न आयेंगी।
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             34
दूर जाते हो नजर से , तो चले जाओगे,
माना फिर लौट के तुम अब यहॉं न आओगे।
तुम्हारी बेरुखी भी सब कुबूल है मुझको,
मुझे यादों से भला कैसे, पर भुलाओगे।
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लोरियाँ यहीं कहीं

लोरियाँ यहीं कहीं

चाँद की जमीन पर, क्यूँ रोटियों का घर नहीं
क्यूँ नींद द्वार पर खड़ी, क्यूँ लोरियाँ कहीं नहीं

आज है धुआँ-धुआँ, कभी तो रात साफ होगी
उम्र की लकीरों की, ये गलतियाँ भी माफ होंगी
वक्त की पाबंदियां भी, अनछुई कहाँ रहीं
क्यूँ नींद द्वार .......

तक रही हैं चाँद को, रो रही हैं लोरियाँ
दर्द के प्रभाव को, न छू सकी हैं लोरियाँ
जाने क्यूँ बिखर रही, जब डोरियाँ यहीं कहीं
क्यूँ नींद द्वार......

रोटियों सी जिंदगी, कहीं पकी कहीं जली
कल खड़ी थी साथ-साथ, जाने अब कहाँ चली
जिंदगी की रोटियाँ भी, हैं दबी यहीं कहीं
क्यूँ नींद द्वार.......

सब्र कर वक्त अभी, आटा गूँधने में व्यस्त हैं
हाथ कितने यहाँ, रोटियाँ सेंकने में मस्त हैं
चर्चा है बाजार में, मिलेंगी रोटियाँ कभी
क्यूँ नींद द्वार.....

एक वक्त वो भी था, एक वक्त आज है
रोटियाँ ही ताज थीं, रोटियाँ ही ताज हैं
रोटियों के बोझ में, लोरियाँ दबी रहीं
क्यूँ नींद द्वार....

नग्न हो रही सदी, तमाशबीन वक्त है
दर्द से भरे हुए हैं, लोरियों में रक्त है
कंठ स्वर दबे हुए, क्यूँ आँख झर-झर बही
क्यूँ नींद द्वार.....

हाथ जोड़ कर खड़े हैं, ताज के जो दास हैं
सदियों दूर तक रहे जो, कह रहे हैं पास हैं
झूठ फिर श्रृंगार कर, मोह फिर से मन रही
है नींद द्वार......

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29जुलाई, 2023

एक कहानी

एक कहानी

गाड़ी में पीछे 
बैठा मुसाफिर
अपनी ही धुन में है रहता
लिखता कभी कुछ 
कहता कभी कुछ
फिर पन्नों में डूबा रहता।

आती जाती 
राहों को तकता
हँसता कभी गुनगुनाता
जीवन सफर है 
मन है मुसाफिर
खुद से ही कहता सुनाता

न कोई दिन है 
न कोई रातें
आधी अधूरी 
रह जाती बातें
मीठी सी यादें, 
तुतलाती बोली
गाड़ी में उसकी 
होली, दिवाली।

जब मन मचलता
खुद में ही हँसता
लिखता दिलों की कहानी
लम्हों को चुनता
लम्हों को सुनता
लम्हों को लिख दी जवानी।

अपना है क्या और
क्या है पराया
मुस्का के सबके 
मन को लुभाया
ऐ दुनिया वालों
मानो न मानो
उसकी भी है 
कुछ कहानी।

मन जब मचलता
खुद ही बहलता
खुद ही है
खुद का वो साथी।

ऐ सुगना सुन ले
उसकी तू धड़कन
दे दे उसे कुछ निशानी
कब तक अकेला
गुमसुम रहे वो
अब पूरी कर दे कहानी।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         28जुलाई, 2023





नई शुरुआत

नई शुरुआत

जिस मोड़ पे रुकी थी कभी अपनी जिंदगी
आ फिर शुरू करें वहीं से हम अपनी जिंदगी

इक लम्हा था गिरा जो कभी अपने हाथ से
छूटा था अपना हाथ जहां पे अपने हाथ से
आ फिर मिलें वहीं पे जहाँ बिखरी जिंदगी
जिस मोड़....

आये थे कितने लोग यहाँ कितने चल दिये
कुछ ने लुटाया प्यार यहाँ कुछ ने गम दिये
रिश्तों की कशमकश में घुटी अपनी जिंदगी
जिस मोड़.... 

अब खुद के मन से जाने क्यूँ बिछोह हुआ है
अब कैसे कह दूँ खुद से खुद को क्षोभ हुआ है
देख अपनी जिल्द में सिमटती अपनी जिंदगी
जिस मोड़.....

कोने में अब भी दिल के मगर आस बाकी है
उखड़ी हुई है माना मगर कुछ साँस बाकी है
उम्मीद के सिरे में कहीं है बँधी अपनी जिंदगी
जिस मोड़....

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25जुलाई, 2023

बिलखती धरती

बिलखती धरती

आज बिलखती धरती माता केशव क्यूँ कर दूर खड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

दूर दृष्टि का दंभ भरें क्यूँ पास हुआ जब देख न पाए
चीरहरण की कितनी घटना भूल इन्हें मन कैसे जाए
लगता शायद दरबारों में वोटों का अपकर्ष बड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

बिलख रही मानवता सारी देख बिलखती घर-घर नारी
दुर्योधन बन बैठे सारे हैं बने हुए सारे दरबारी
अपने घर की घटना छोटी दूजे का अपराध बड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

पूर्व में देखा पश्चिम देखा उत्तर देखा दक्षिण देखा
सत्ता मद में अपराधों का कदम-कदम पर रक्षण देखा
आज निहत्था कुरुक्षेत्र में अभिमन्यू फिर देख खड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

इन राज्यवार घटनाओं के ब्यौरे से क्या हासिल होगा
मौन रहा फिर आज समय तो अपराधों में शामिल होगा
दुखती धरती की छाती पर दुःशासन फिर आज खड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जुलाई, 2023

गजल- गीत कोई गाए कैसे

गजल-गीत कोई गाए कैसे

कैसी मुश्किल है कोई दिल को बताए कैसे
दर्द कब हद से गुजरता है  जताए कैसे

दूर तक जख्मों से छलनी हों जो मन की राहें
कोई इन राहों पे जाए तो वो जाए कैसे

हर किसी को  जो नहीं मिलता  मुहब्बत का सफर
कोई फिर दिल को दिलासा ये दिलाये कैसे

फिर से इन आँखों में  थोड़ी-जो नमी आयी है
आज आँखों से कोई अश्क छिपाए कैसे

भीड़ भी यूँ तो हरिक सिम्त मगर किससे कहें
 ये नकाबों का शहर है तो यूँ जाएं कैसे

गीत रहते हैं दफन  दिल में तेरी यादों के
"देव" महफ़िल में तेरी कोई भी गाए कैसे

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जुलाई, 2023




कोई बहाना बता दो

कोई बहाना बता दो

फिर से बचपन मेरा लौट आये
ऐसा कोई तो बहाना बता दो।

नन्हें पैरों के नीचे खुला आसमान
हर कदम यूँ लगे ज्यूँ नया हो विहान
हर घड़ी पलकों पे दृश्य नूतन सजे
भाव की पालकी नित्य नूतन लगे
नैन में दृश्य फिर से वही लौट आए
खोया हुआ वो खजाना बता दो।

न खबर न फिकर थी दुनिया जहाँ की
क्या है अपना-पराया फिकर ही कहाँ थी
जो मिला प्यार से मन उसी का हुआ
थपकियाँ नेह की मन का आँगन छुआ
वही थपकियाँ पलकों पे लौट आएं
ऐसा हमें फिर ठिकाना बता दो।

रिश्तों की डोर को थामकर उँगलियाँ
उड़ती रहतीं मगन प्यार की तितलियाँ
गुड़ की भेली बताशों की वो चाशनी
चाँदनी रात में ज्यूँ घुली रोशनी
रिश्तों को बाँधने फिर वहीं लौट आएं
फिर से रिश्तों को मन से निभाना बता दो।

कहाँ थे कहाँ आ गया अपना जीवन
दूर लगता है जाने क्यूँ मन का ये उपवन
रोटी, कपड़ों की जद्दोजहद ये बड़ी है
मुश्किलें लग रही जिंदगी से बड़ी हैं
खोई मुस्कान अधरों पे फिर लौट आये
दोस्ती की वो भुला तराना सुना दो।

फिर से बचपन मेरा लौट आये
ऐसा कोई तो बहाना बता दो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जुलाई, 2023

जीवन नैया डोल रही है

जीवन नैया डोल रही है

जीवन के महा समर में अब तो राह दिखा जाओ
जीवन नैया डोल रही है आओ पार लगा जाओ।

दूर-दूर तक गहरा सागर मुश्किल जाना पार हुआ है
भटक रहा मन अँधियारों में मुश्किल जग संसार हुआ है
ज्ञान ध्यान का दीप जलाकर मन का अँधियार मिटा जाओ
जीवन नैया डोल रही है आओ पार लगा जाओ।

हम सेवक प्रभु तुम हो स्वामी हम दीन-हीन प्रभु अंतर्यामी
तुम सा नहीं कोई जगत में तुम चंदन प्रभु हम हैं पानी
भरम जाल में उलझा है मन प्रभु आकर आस जगा जाओ
जीवन नैया डोल रही है आओ पार लगा जाओ।

भीड़ भरे इस वीराने में तुम ही हो इक मात्र सहारा
किससे मन की बात कहूँ मैं तुम बिन मेरा कौन सहारा
कुरुक्षेत्र में उलझा है मन गीता का सार सुना जाओ
जीवन नैया डोल रही है आओ पार लगा जाओ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22जुलाई, 2023

दिखता नहीं है

दिखता नहीं है

जाने अब सम्मान यहाँ दिखता नहीं है
इंसान को इंसान यहाँ दिखता नहीं है

खून से जिसने नवाजा जिंदगी को
उसका क्यूँ अहसान यहाँ दिखता नहीं है

चीखती है मौत भी देखो यहाँ अब
दर्द का आसमां यहाँ दिखता नहीं है

दूर देखो लाज का परदा लुटा है
घाव उसका क्यूँ यहाँ दिखता नहीं है

कौरवों की भीड़ का आतंक देखो
आँखों को अब भी यहाँ दिखता नहीं है

भीड़ में कोई नहीं जो सुन सके अब
"देव" केशव अब यहाँ दिखता नहीं है

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21जुलाई, 2023

वक्त गीत हमारा गायेगा

वक्त गीत हमारा गायेगा

कब वक्त यहाँ पर ठहरा है जो आज ठहर वो जायेगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

कितनी गजलें, कितनी कविता, कितनी रातें कितने सपने
कितने भाव सुनहरे गाये, कितने हुए पराए अपने
कितने भाव पंक्ति में सिमटे, ये वक्त कभी बतलायेगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

आज यहाँ हम गाने वाले, क्या जाने कल और कहाँ हो
आज दिलों में रहते हैं हम, क्या जाने कल ठौर कहाँ हो
आज लिखे जो यहाँ कथानक, फिर कल कोई दुहरायेगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

कितनी शिद्दत से गीतों में हमने अपनापन पाया है
जितना तुमको सुनते देखा उतना खुलकर के गाया है
अपनेपन के इन गीतों से कल कोई मन बहलाएगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

पंक्ति-पंक्ति में इन गीतों के जीवन की मधुर कहानी है
बीत चुके हैं कितने जीवन जो बाकी बची सुनानी है
आज सुनाता हूँ मैं इनको कल कोई और सुनाएगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19जुलाई, 2023

शिव भजन।

शिव भजन।  

हाथ में डमरू जटा में गंगा, भस्म लपेटे रहते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

नहीं और कोई जगत का स्वामी
मेरे भोले हैं अंतर्यामी
जो भी इनकी शरण में आया
मनचाहा वो फल पाया
भटकों को हैं राह दिखाते
सबके मन की सुनते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

कोई नहीं है शिव सा दानी
शिव हैं चंदन हम हैं पानी
भरम जाल में उलझे सारे
आये प्रभु सब द्वार तिहारे
सबकी पीड़ा कष्ट निवारे
नीलकंठ बन रहते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

हम भी द्वार तिहारे आये
भक्ति भाव के पुष्प चढाये
हम माया में उलझे सारे
हर पल तुम्हरी ओर निहारें
प्रभु जगत के पालनहारे
सबके दिल में रहते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

प्रभु की महिमा हम क्या गायें
वेद, ग्रन्थ सब गाते हैं
प्रभु की एक झलक मिलने से
खुद देवलोक हरषाते हैं
भक्तों के सब कष्ट हरें प्रभु
हरपल हँसते रहते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18जुलाई, 2023

कजरी।

कजरी।  

पिया सावन में हमके बुलाई ल जिया हरषाई द न
पिया सावन में.....।

पड़े बरखा बहार तरसे मनवा हमार
पड़े बरखा बहार तरसे मनवा हमार
अबके सावन में झलुआ झुलाय द
जिया हरषाई द न
पिया सावन में......।

कइसे तोहके बोलाई कहा कइसे समझाई
कइसे तोहके बोलाई कहा कइसे समझाई
का बताई के कइसन अब हाल बा
जिया बेहाल बा न।

जब से गइला परदेस नाही चिट्ठी संदेश
जब से गइला परदेस नाही चिट्ठी संदेश
अबकी सावन में सुरतिया दिखाई द
जिया हरषाई द न
पिया सावन में....।

सुबह, साँझ, दिन, रात बाटे तोहरे खयाल
सुबह, साँझ, दिन, रात बाटे तोहरे खयाल
बिना तोहरे ई जिनगी मोहाल ब
जिया बेहाल ब न।

बड़ी बैरन हौ रात करी केकरा से बात
बड़ी बैरन हौ रात करी केकरा से बात
अबके सावन में हमके सजाई द
जिया हरषाई द न
पिया सावन में....।

जो न बाहर कमाइब बोला कइसे खियाईब
जो न बाहर कमाइब बोला कइसे खियाईब
बड़ा मुश्किल भयल अबकी साल बा
जिया बेहाल ब न।

हरदम मनवा डेरात आवे कइसन खयाल
हरदम मनवा डेरात आवे कइसन खयाल
आ के हमके तू फिर से हँसाई द
जिया हरषाई द न
पिया सावन में...।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16जुलाई, 2023




हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो

हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो

यूँ तो मन में भावनाओं का बहा निर्झर हमेशा
पर क्या जानूँ क्यूँ रुके स्वर कंठ तक आकर हमेशा
भाव मेरे छू के अपने भाव का अहसास दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

ये उँगलियाँ इन अक्षरों को छू सकें मचलीं हमेशा
गीतों की ये पंक्तियाँ मृदु स्पर्श को भटकीं हमेशा
छू के अपने आधरों से जिंदगी की आस दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

द्वार अधरों के रुकी हैं मन की सारी अर्चनाएं
चाहकर भी कह सके ना मन की सारी भावनाएं
अपने भावों से मिलाकर साँस का अहसास दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19जुलाई, 2023


लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है

लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है

खुश नहीं है आत्मा क्या जाने क्यूँ ऐसा हुआ है
कौन जाने इस हृदय को दर्द ये कैसा छुआ है
पूछते हैं शब्द सारे व्याकरण सुलझे नहीं क्यूँ
पँक्तियों में प्रश्न के वो अर्थ अब खुलते नहीं क्यूँ
जाने न क्यूँ उत्तरों में पीर का मंथन हुआ है
लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है।

उम्र भर शंकित रहा मन उलझनों में अड़चनों में
सोचता पल-पल रहा क्यूँ बँध न पाया बंधनों में
तोड़ जाने क्यूँ न पाया वक्त की सब वर्जनाएं
छल रही थी हर घड़ी जो थी कहीं कुछ एषणाएं
जाने न क्यूँ उम्र का किस पीर से बंधन हुआ है
लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है।

यूँ लग रहा है दर्द ही इस गात का श्रृंगार है
अब आँसुओं का खार ही इस जिन्दगी का सार है
मौन मन की भावनायें क्या कहूँ क्यूँ जल रही है
स्वयं की ये वेदनाएं स्वयं को क्यूँ छल रही है
लग रहा इस गात का अब पीर ही चंदन हुआ है
लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       14जुलाई, 2023

ऐषणाएं- अभिलाषा, याचना

दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है

दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है

अंजुरी में पुष्प भर कर आचमन करता हृदय
छंद की नव पंखुरी से गीत में भरता प्रणय
सुप्त होती भावनाओं को जगाता कौन है
दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है।

शांत सागर सम हृदय में प्रेम के संदेश सा
निर्लिप्त मन में लालसा, नेह के संकेत सा
शून्यता में कामनाओं को जगाता कौन है
दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है।

आरंभ है या अंत है या के अपरिमेय है
पास अपनी सी लगे ये और कभी अज्ञेय है
शून्य मन के भाव में हलचल मचाता कौन है
दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13जुलाई, 2023


अबके पावस में दिल चाहे तुम पर कोई गीत लिखूँ

अबके पावस में दिल चाहे तुम पर कोई गीत लिखूँ

अब तक कितने गीत लिखे, विरह वेदना प्रेम समर्पण
कुछ में खुद को पाया है, और किया कुछ में सब अर्पण
पर अब गीतों में दिल चाहे, पंक्ति-पंक्ति में प्रीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।

कितने कल्पित भावों से, रहा भ्रमित ये हृदय हमारा
खोज में ढाई अक्षर के, रहा भटकता मारा-मारा
सारे कल्पित भावों के, क्या हार लिखूँ क्या जीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।

दिवस रात का मिलन अनोखा, देख प्रहर भी ठहरा है
दूर क्षितिज पर उम्मीदों का, रंग अभी भी गहरा है
रिमझिम बारिश की बूँदों में, सांध्य पलों की प्रीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।

साँस-साँस के प्रति पृष्ठों पर, दिल चाहे श्रृंगार लिखूँ
छंद-छंद नव रीत सजाकर, मैं जीवन का सार लिखूँ
जीवन के इस पुण्य ग्रन्थ का, दिल चाहे मनमीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12जुलाई, 2023

हृदय का खालीपन।

हृदय का खालीपन।  

पलकों की गिरती बूँदों से मन को चाहे लाख भिंगो लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

बिना कथानक बनी यहाँ कब मन की एक कहानी कोई
रंगमंच पर बिना पटकथा कृतियाँ सारी सोई-सोई
संवादों में लिखे शब्द से पृष्ठों को फिर लाख सजा लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

पाँव जले मरुथल में कितने किसने देखा पता नहीं है
चले शूल पर कितने सपने पलकों को जब पता नहीं है
रात चाँदनी में नयनों के अनुरोधों को लाख जता लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

असमंजस के चक्रव्यूह में अभिमन्यू का जीवन दंडित
कुछ साँसों में कुछ आहों में आस निराशा के पल खंडित
रिश्तों के बेमेल चयन में कितना भी विश्वास जता लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

ओस बूँद से इस जीवन की मुश्किल प्यास बुझा पाना है
भागीरथ जो बना वही तो जाना क्या खोना-पाना है
टुकड़े-टुकड़े चाँद अंक में लाकर चाहे लाख सजा लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07जुलाई, 2023

शब्द हृदय का परिचय दे दें।

शब्द हृदय का परिचय दे दें।  

साँस-साँस में करूँ आरती, मैं आहों में गुणगान करूँ,
काश कभी ऐसा हो जाये, शब्द हृदय का परिचय दे दें।।

मुक्त गगन में उड़ते फिरते, संभव गीतों में ढल जाना,
कहना मन की बात निखरकर, भावों का ले ताना-बाना।
पल में छू लूँ हृदय वृन्द मैं, फिर अंतस में आख्यान करूँ,
अंजुलि में वो भाव भरूँ जो, पुण्य प्रवण का निश्चय दे दें।।

खोल हृदय के वातायन सब, बंधन सभी मुक्त हो जायें,
कुछ तो ऐसा लिखो आज फिर, मन ये प्रेम युक्त हो जाये।
कहीं वेदना यदि गहरी हो, मनमीत बने अवदान करे,
मिले नयन के मृदु बूँदों में, कोरों से जो अनुनय कर दे।।

बिन धागा के मोती बिखरे, माला में कब बँध पाते हैं
भटके मन के भाव अगर तो, छंद यहाँ कब सज पाते हैं
कहीं व्याकरण युक्त हृदय हो, जो त्रुटियों का संज्ञान करे
संभव होता पंक्ति-पंक्ति में, साँसों का जो संचय कर दे।

काश कभी--------।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05जुलाई, 2023


यादों के विषधर।

यादों के विषधर।  

रजनीगंधा नहीं महकती
दूर हुई कदमों की आहट
तब यादों के विषधर मन को
दंशों से घायल करते हैं।।

दूर हुई जीवन की पुस्तक
शब्द अधूरे बिखरे-बिखरे
एकाकीपन की पीड़ा से
धड़कन दिल की कैसे निखरे।

उलझन मन की नहीं सुलझती
मन ये चाहे थोड़ी राहत
तब यादों के विषधर मन को
दंशों से घायल करते हैं।।

सांध्य अजनबी सी लगती है
रात नहीं फिर अब सजती है
भीड़ भरे इन सन्नाटों में
आहें भी सिमटी रहती हैं।

सुधियों के मेले जब सजते
मन में भी होती अकुलाहट
तब यादों के विषधर मन को
दंशों से घायल करते हैं।।

जीवन बस बीता जाता है
पल-पल दुख सीता जाता है
लेकिन यादों के पनघट पर
मन का घट रीता जाता है।

रिसते हुए पीर के पल से
साँसों ने जब चाही चाहत
तब यादों के विषधर मन को
दंशों से घायल करते हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03जुलाई, 2023






पीड़ा को वरदान न मिलता सब गीत अधूरे रह जाते

यदि पीड़ा को वरदान न मिलता गीत अधूरे रह जाते पीड़ा को वरदान न मिलता सब गीत अधूरे रह जाते कितना पाया यहाँ जगत में कुछ भोगा कुछ छूट गया, कुछ ने ...