ऐसे कैसे रहते हो।

ऐसे कैसे रहते हो।  

कितना कुछ सुनते हो सबकी
फिर भी हंसते रहते हो
कुछ बतलाओ मुझसे भी
के ऐसे कैसे रहते हो।।

कितनी ही आवाजों में
तुमने खुद को ढाला है
मुख से उफ ना किया कभी
हँस कर सबको पाला है
आघातों के बीच खड़े हो
फिर भी हँसते रहते हो।
कुछ बतलाओ मुझसे भी
के ऐसे कैसे रहते हो।।

छोटी छोटी इच्छाओं का
सबकी हरदम मान किया
खुद की सारी इच्छाओं का
हरपल ही बलिदान किया
दबी हुई इच्छाएं कितनी
फिर भी हँसते रहते हो।
कुछ बतलाओ मुझसे भी
के ऐसे कैसे रहते हो।।

कितने सूनेपन में तुमको
छुपकर रोते देखा है
रोशन महफ़िल में भी तुमको
 तन्हा होते देखा है
तन्हाई की टीस लिए हो
फिर भी हँसते रहते हो।
कुछ बतलाओ मुझसे भी
के ऐसे कैसे रहते हो।।

तुमको देखा जीवन देखा
पग पग कितनी सीख मिली है
अँधियारा कितना हो गहरा
उम्मीदों से जीत मिली है
तुमको देखा तब है जाना
जीवन किसको कहते हैं।
अब जाकर मैंने भी जाना
के ऐसे कैसे रहते हो।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28फरवरी, 2021

आँखों की बातें।

आंखों की बातें।   

दिल की कितनी ही बातें
दिल ही में रह जाती हैं
होंठ कहें चाहे ना कुछ भी
आँख मगर कह जाती है।।

कोई कितना दूर रहे पर
यादों में रहता है हरदम
परछाईं बन चलता रहता
साँसों में बसता है हरदम।

आती जाती साँसें हरदम
गीत उसी के गाती हैं।
होंठ कहें चाहे ना कुछ भी
आँख मगर कह जाती है।।

आज वफ़ा की बातें कितने
अरमानों में झलक रहे हैं
और राहतें दिल के कितने
पैमानों में छलक रहे हैं।

अरमानों के पैमाने भी
सपनों में आती जाती हैं।
होंठ कहें चाहे ना कुछ भी
आँख मगर कह जाती है।।

इक थर्राहट होठों पर है
आँखों में भी बेचैनी है
दिल मे दूर किसी कोने पर
शायद अब भी बेचैनी है।

बेचैनी के कितने ही पल
छुप छुप कर बह जाती है।
होंठ कहें चाहे ना कुछ भी
आँख मगर कह जाती है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       28फरवरी, 2021





इतिहास बनाने आया हूँ।

इतिहास बनाने आया हूँ।   

चलते फिरते इस जीवन में
जाने क्या क्या होता है
कहीं बिखरते फूल खुशी के
कहीं आसमां रोता है।

हंसते रोते आसमाँ में
उम्मीद जगाने आया हूँ।
इतिहासों को क्या दुहराना
मैं इतिहास बनाने आया हूँ।।

आँखों में अंगारे देखा
जिह्वाओं पर नारे देखा
छोटे से जीवन में हमने
जीत कभी कभि हारे देखा।

हार जीत से ऊपर उठकर
विश्वास जगाने आया हूँ।
इतिहासों को क्या दुहराना
मैं इतिहास बनाने आया हूँ।।

बने बिगड़ते संबंधों में
अपनेपन की पीड़ाएँ हैं
कभी गौर से देखो जब भी
दिखती कितनी क्रीड़ाएँ हैं।

संबंधों में सूनेपन का
वनवास मिटाने आया हूँ।
इतिहासों को क्या दुहराना
मैं इतिहास बनाने आया हूँ।।

इस जीवन की अँगनाई में
धूप छाँव का डेरा है
जिंदापन का एहसास तभी
जब संवादों का फेरा है।

अधरों के मुखरित कंपन में
नव साँस जगाने आया हूँ।
इतिहासों को क्या दुहराना
मैं इतिहास बनाने आया हूँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28फरवरी,2021



इशारा।

इशारा।  

कब मेरे इस मौन को
संवादों का आश्रय मिलेगा
कब मेरे इस कौन को
परिचयों का आशय मिलेगा।

कब मुझे धरती मिलेगी
कब गगन मुझको मिलेगा
कब मिलूँगा खुद से मैं
कब चमन मुझको मिलेगा।

कब मिलेगा मन हमारा
और उपवन कब खिलेगा
कब खिलेंगी मौन कलियाँ
और गुलशन कब खिलेगा।

औरों की उम्मीदों का
कबतक वहन खुशियाँ करेंगी
औरों की इच्छाओं में
कबतक यहाँ खुशियाँ पलेंगी।

जानता हूँ प्रश्न कितने
मौन संवादों में छिपे हैं
और उनकी भावनाएँ
बीच पलकों के छिपे हैं।

अपनी सारी भावनाओं का
तुमसे सहारा चाहता हूँ
मौन को आवाज दूँ
तुमसे इशारा चाहता हूँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       25फरवरी, 2021

जीवन अविरल बहता रहता।

जीवन अविरल बहता रहता | 

जीवन अविरल बहता रहता 
कभी सुनता कभी कुछ कहता 
कितनी बातें इसके दिल में 
बिखर सिमट कर चलता रहता | 

कभी पाने की जिद कहीं की 
और कभी दाता बन बैठा 
कभि खोया अपनी ही धुन में 
और कभी याचक बन बैठा | 

कितने स्वप्न तराशे इसने 
खोकर आँखों की नींदें 
कितने दांव लगाए इसने 
अपनी आँखों को मींचें | 

जितने शब्द पिरोये इसने 
उतना इसको मान मिला 
चली लेखनी जब भी इसकी
इसको बस सम्मान मिला | 

इसकी परछाईं ने कितने 
आकारों को गढ़ा यहाँ 
भावों को औ मंतव्यों को
सँभल सँभल कर पढा यहाँ|

आभासों औ अहसासों में 
परिवर्तन ये पलता रहता 
जीवन अविरल बहता रहता 
जीवन अविरल बहता रहता ||   

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       23फरवरी, 2021

*सफर को कोई नाम दें।*   

इस खामोशी को जुबान दें
आओ इसे कुछ आयाम दें
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफ़र को अब कोई नाम दें।।

कब गुजरीं लम्हों में सदियाँ
अभी तलक ये पता ना चला
यूँ तो मिलते रहे हम सदा
खुद से अभी तक ना मैं मिला।

चलो खुद से मिलें दोनों
एक दूजे को कुछ नाम दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफर को अब कोई नाम दें।।

यूँ चले कितनी हसरत लिए 
आशाओं के जलाए दिए
कल लिखे थे जो गीत हमने
तिरे होठों ने उनको छुए।

चलो फिर से सारे गीतों को 
मिलकर के अपनी जुबान दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
साफर को अब कोई नाम दें।।

न तेरी ख़ता न मेरी ख़ता
हुआ कुछ मगर किसे है पता
अब भी दिलों में थोड़ी कसक
तुझे ये पता मुझे भी पता।

चलो आज फिर, वहीं पर मिलें
 एक दूजे को ईनाम दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफर को अब कोई नाम दें।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय

       हैदराबाद

       22फरवरी, 2021

सफर को कोई नाम दें।

सफर को कोई नाम दें।   

इस खामोशी को जुबान दें
आओ इसे कुछ आयाम दें
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफ़र को अब कोई नाम दें।।

लम्हों में सदियाँ कब गुजरी 
मुझे अब तलक पता ना चला
यूँ तो मिलते रहे सदा हम
पर खुद से अभी तक ना मिला।

चलो खुद से मिलें हम दोनों
एक दूजे को कुछ नाम दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफर को अब कोई नाम दें।।

यूँ चले कितनी हसरत लिए 
आशाओं के जलाए दिए
कल लिखे जो भी गीत हमने
तिरे होठों ने उनको छुए।

चलो फिर उन सारे गीतों को 
मिलकर हम अपनी जुबान दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
साफर को अब कोई नाम दें।।

न तेरी ख़ता न मेरी ख़ता
हुआ कुछ मगर किसे है पता
अब भी दिलों में थोड़ी कसक
तुझे ये पता मुझे भी पता।

चलो आज फिर, वहीं पर मिलें
 एक दूजे को ईनाम दें।
कब तलक यूँ ही चलते रहेंगे
सफर को अब कोई नाम दें।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       22फरवरी, 2021

तुम आज गवाही देना।

तुम आज गवाही देना।   

बिखर रहे इन हालातों में
बस थोड़ी परछाईं देना
मौन हुआ हूँ भले यहाँ मैं
पर तुम आज गवाही देना।।

पल-पल अभ्यासों के बल पर
कितने विश्वासों के बल पर
चला पंथ उम्मीद सहारे
कितने अहसासों के बल पर।

हुई चूक जो कहीं कभी तो
तुम उसकी सुनवाई देना।
मौन हुआ हूँ भले यहाँ मैं
पर तुम आज गवाही देना।।

छोटे छोटे प्रण के बल पर
इच्छा का सम्मान किया है
गंतव्यों तक जाने खातिर
मैंने सबका मान किया है।

मेरे प्रण की पीड़ाओं की
तुम बस आज दवाई देना।
मौन हुआ हूँ भले यहाँ मैं
पर तुम आज गवाही देना।।

इक बस तेरा साथ मुझे है
सारी उम्मीदों से बढ़कर
मैंने अपना जीवन पाया
इक बस तुझसे ही मिलकर।

मेरे अहसासों से मिलकर
तुम अपनी परछाई देना।
मौन हुआ हूँ भले यहाँ मैं
पर तुम आज गवाही देना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       19फरवरी,2021


गान ऐसा दीजिए।

गान ऐसा दीजिए।  

पीत पुष्प पीत पात
पीत वसन ओढ़ रही
प्रीत का मधुर प्रभाव
गात गीत छेड़ रही।

ऋतु बसंत आ रही
भावों को लुभा रही
पुष्प पुष्प प्रीत बनी
मधुमय बन पिला रही।

खेत की ये क्यारियाँ
सरसों की बालियाँ
पीत रंग रँगी चुनर
धरती लहलहा रही।

पुष्प नूतन खिल रहे
नवपात वृक्ष खिल रहे
दूर क्षितिज मुक्त भाव
धरती गगन मिल रहे।

आज कामनाओं को
उड़ान नई दीजिए
भावना में प्रेम हो
गान ऐसा दीजिए।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      15फरवरी, 2021


कर्तव्यों की देहरी।

कर्तव्यों की देहरी।  

मौन विकल हो जाता है
एहसास शिथिल पड़ जाते हैं
कर्तव्यों के पुण्य पंथ पर
जब स्वार्थ कभी अड़ जाते हैं।

नींद हुई ओझल आँखों से
सपनों ने भी मुँह मोड़ा
एहसासों की देहरी पर
अपनों ने लाकर छोड़ा ।

दिल करता है मौन पहनकर
खुश सपनों में फिर खो जाऊँ
बहुत सहा उपहास अभी तक
फिर चेतन से जड़ हो जाऊँ।

बस अपनी दुनिया में जागूँ
खुद से बस खुद को माँगूँ
बस देखूँ निज स्वप्न सुनहरे
खुद की इच्छा से ही जागूँ।

आँख मूँदने भर से केवल
ये सूरज नहीं ढला करता 
अधिकार वही सुरक्षित होता
जो कर्तव्यों की गोद पलता ।

जागृत निशा का प्रहरी जब
अँधियारों से डरना कैसा
कर्तव्यों के पुण्य पंथ से
यूँ डरकर फिर टरना कैसा।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      15फरवरी, 2021



एक उम्मीद।

एक उम्मीद।   

साँझ ढली है राह थकी है
ओढ़ चली असमानी चादर
थके कदम, पर चले राह में
भरने कुछ सपनों की गागर।

कहे-अनकहे उनके किस्से
व्यवहारों में झलक रहे हैं
फ़टी एड़ियाँ, तप्त पसीने
कदम कदम पर छलक रहे हैं।

पनियायी आँखों में अब भी
सीमित सपनों की गहराई 
संग संग उसके राह चली
उम्मीदों ने ली अँगड़ाई।

चेहरों की मुस्काती सिलवट
सुना रही अनसुनी कहानी
सूरज ढल कर भले छुप गया
ढली नहीं उम्मीद सुहानी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
     हैदराबाद
     13फरवरी, 2021

कदमों के निशान।

कदमों के निशान।  

तुम चले जिस मार्ग पर
उस मार्ग पर मैं भी चला
तुम पले जिस डाल पर
उस डाल पर मैं भी पला।

पर कौन सी थी बात जो
हम दोनों में थोड़ी अलग
तुम अड़े जिस बात पर
उस बात से हरदम टला।

जब भी देखा मैने तुमको
इक व्यूह का घेरा दिखा
तुम तो रमे उस व्यूह में
पर मुश्किलों में मैं पला।

वेदनाओं के सफर में
क्यूँ चेतनाएँ मौन थी
चेतना की खोज में मैं
हरपल राह कितनी ही चला।

आज भी वीथी पर दिखेंगे
मेरे कदमों के निशान
छोड़ जिसको तुम चले
उस मार्ग मैं हरदम चला।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      11फरवरी, 2021

सीमित साधन में सपने।

सीमित साधन में सपने।   

कितने ही सपने आंखों के
सीमित साधन से तरस रहे
कितनी ही उम्मीदें पग में
बनकर आशाएँ बरस रहे।

सूर्य उदय से सूर्य ढले तक
कितना लंबा सफर चले हैं
कभी छाँव में पाया कुछ कुछ
कभी धूप में पाँव जले हैं।

धूप छाँव का सफर घना, पर
कभी पाए कभी तरस रहे।
कितने ही सपने आंखों के
सीमित साधन से तरस रहे।।

श्रेष्ठ स्वप्न आंखों में भरकर
उम्मीदों का गान किया है
दृष्टि शिखर पर रखकर हमने
पौरुष का सम्मान किया है।

कर्तव्यों के पथ चलने से
कितने ही जाने अलग रहे।
कितने ही सपने आंखों के
सीमित साधन से तरस रहे।।

मुट्ठी भर आकाश लिए ही
दूर क्षितिज को निकल पड़ा हूँ
उम्मीदों को पाने खातिर
उम्मीदों में रहा अड़ा हूँ।

साँझ ढले जीवन बेला में
कुछ कटु अनुभव, कुछ सरस रहे।
कितने ही सपने आंखों के
सीमित साधन से तरस रहे।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10फरवरी, 2021

गीतों में जीवन।

गीतों में जीवन।  

मैने तो अपने गीतों में
जीवन सारा लिख डाला
कहीं लिखीं उम्मीदें सारी
कहीं हताशा लिख डाला।

पंक्ति पंक्ति के बीच फासले 
कहीं बहुत तड़पाते हैं
पूर्ण विराम के बाद फासले
वहीं बहुत समझाते हैं।

कुछ मौन पंक्तियों ने फिर भी
बिना कहे सब कह डाला
मैंने तो अपने गीतों में
जीवन सारा लिख डाला।।

कहीं लिखी रिश्तों की बातें
और कहीं किश्तों की बातें
कहीं प्रेम का मौन समर्पण
और कहीं पहचानी घातें।

टीस हृदय की कहीं लिखी है
आस कहीं पर लिख डाला।
मैंने तो अपने गीतों में
जीवन सारा लिख डाला।।

पथ के प्रस्तर से टकराकर
अपनेपन की चाह लिखी
संघर्ष भरे जीवन पथ में
उम्मीदों की राह लिखी।

बनते और बिगड़ते पथ में
सपनों सा जीवन लिख डाला।
मैंने तो अपने गीतों में
जीवन सारा लिख डाला

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       10फरवरी, 2021

उम्र का सफर।

उम्र का सफर। 

जाने कैसा था सफर जिसपे मैं चलता रहा
मन में कितनी ख्वाहिशें लिए मैं पलता रहा।।

इक उम्र की तलाश में, इक उम्र गुजारी मैंने
उम्र की हसरत लिए, उम्र भर चलता रहा।।

ना थी कोई भीड़ और ना कोई था कारवाँ
मंजिलों की होड़ में खुद से ही मिलता रहा।।

उम्र की तलाश में ज़ख्म जितने भी मिले
जख्म के उस दर्द को उम्र से सिलता रहा।।

अब कोई शिकवा नहीं और ना कोई शिकायत
उम्र जीने के लिए मैं उम्र भर चलता रहा।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      09फरवरी, 2021

कह दो तो बतलाऊँ मैं।

कह दो तो बतलाऊँ मैं।   

मैंने जो तस्वीर बनायी
कह दो तो दिखलाऊँ मैं
अंतर्मन के भावों को
कह दो तो बतलाऊँ मैं।

मन में इक आकाश बुना है
कह दो तो दिखलाऊँ मैं
प्रतिपल तुमको पास सुना है
कह दो तो बतलाऊँ मैं।

और खयालों में मेरे
नहीं कभी कुछ और रहा
बस तेरी ही बातें समझी
नहीं कभी कुछ और कहा।

तुमसे ही आकाश मेरा
कह दो तो दिखलाऊँ मैं
तस्वीरों में तुमको देखा
कह दो तो बतलाऊँ मैं।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09फरवरी, 2021

शोक क्या करना।

शोक क्या करना।  

नहीं शिकायत शिकवा कोई
अफसोस यहाँ फिर क्या करना
जो मिला नहीं उसकी खातिर
शोक यहाँ फिर क्या करना।।

खामोशी से पाया जिसको
उसका कुछ उल्लास नहीं 
छूट गया है जो इस पथ में
उसका अब संताप नहीं।

उल्लास नहीं किया यहाँ जब
संताप यहाँ फिर क्या करना।
जो मिला नहीं उसकी खातिर
शोक यहाँ फिर क्या करना।।

पलकों से कितने ही अश्रु
रुके कभी, कभि छलक गए
कभी भिंगोया अंतर्मन को
और कभी यूँ  ढलक गए।।

ढलक गए आँसू पलकों से
दोष यहाँ किस पर धरना।
जो मिला नहीं उसकी खातिर
शोक यहाँ फिर क्या करना।।

मिले सफर में जाने कितने
औ जाने कितने छूट गए
साथ चले जो, तेरे अपने
थे गैर यहाँ जो, छूट गए।

बने बिगड़ते रिश्तों का फिर
दोष किसी पर क्या मढ़ना।
जो मिला नहीं उसकी खातिर
शोक यहाँ फिर क्या करना।।

हँस कर जीना सीख लिया जो
उसने ही जीवन जाना है
उसने ही है पाया जग में
जिसने खुद को पहचाना है।

पहचान लिया जिसने खुद को
मोह किसी से क्या करना।
जो मिला नहीं उसकी खातिर
शोक यहाँ फिर क्या करना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09फरवरी, 2021






तुमने सुन लिया।

तुमने सुन लिया।   

मैंने तो कुछ कहा नहीं
तुमने मगर सुन लिया
मन में मेरे जो भी था 
तुमने मगर सुन लिया।।

तुमसे अब मैं क्या कहूँ यहाँ
सभी कुछ तुमने कह दिया।
मैंने जो भी कहा नहीं
तुमने मगर सुन लिया।।

तुमसे मिले मुझको लगा
जिंदगी को साहिल मिला
सोई सोई चाहतों के
सपनों को हासिल मिला।

स्वप्न में जो मैंने बुना
तुमने मुझे वो कह दिया।
मैंने तो कुछ कहा नहीं
तुमने मगर सुन लिया।।

अब दुनिया मेरी तुमसे शुरू
तुमसे ही हैं सपने मेरे
तुमसे सारी आशाएँ हैं
तुमसे ही अब साँसें मेरी।

मेरि खुशनसीबी है ये
जो तुमने मुझे चुन लिया।
मैंने तो कुछ कहा नहीं
तुमने मगर सुन लिया।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       08फरवरी, 2021



आमंत्रण।

आमंत्रण।   

जब मन के भाव व्यथित हो 
मन ही मन अकुलाते हैं
उम्मीदों के घायल पक्षी
घुट घुट कर तड़पाते हैं।

तब शब्दों की सकल वेदना
देती मुझको है आमंत्रण।।

जब सपनों की देहरी पर
खिले फूल मुरझाते हैं
जब नन्हीं नन्हीं आंखों के
अधखिले स्वप्न झर जाते हैं।

तब शब्दों की सकल वेदना
देती मुझको है आमंत्रण।।

जब कौतुक दिखलाकर कोई
भोलापन बहलाते हैं
जब झूठे झूठे वादों से
स्वप्न दिखा फुसलाते हैं।

तब शब्दों की सकल वेदना
देती मुझको है आमंत्रण।।

आवाजों की दुनिया में 
जब कोई गुमसुम होता है
सुविधाओं के आँगन में
जब कोई भूखा सोता है।

तब शब्दों की सकल वेदना
देती मुझको है आमंत्रण।।

किसी कोख से नन्हीं कोई
अमिट प्रश्न दे जाती है
लिंगभेद के जाने कितने
प्रश्न हमें दे जाती है।

तब शब्दों की सकल वेदना
देती मुझको है आमंत्रण।।

जब लपटों में झुलस जिंदगी
चीखों में शोर मचाती है
जब अल्हड़ सी दुनिया कोई
पैसों पर बिछ जाती है।

तब शब्दों की सकल वेदना
देती मुझको है आमंत्रण।।

आकाशों की छाँवों खातिर
मुक्त कलम बँध जाती है
जब ताकत की चौखट पर
गान नया लिख जाती है।

तब शब्दों की सकल वेदना
देती मुझको है आमंत्रण।।

मेरे शब्दों में बसकर के
मुझको इतनी शक्ति देना
सबके भावों को दर्शाऊँ
मुझको ऐसी भक्ति देना।

 भरूँ हृदय में प्रेम सभी के
और सभी को दूँ आमंत्रण।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       08फरवरी, 2021

बात अभी भी बाकी है।

बात अभी भी बाकी है।   

दीप बुझाऊँ कैसे बोलो
रात अभी भी बाकी है
कहो विदाई कैसे दे दूँ
बात अभी भी बाकी है

चलो सुनाओ कोइ कहानी
नई कहो या कोइ पुरानी
मन के भावों को पुचकारे
अनजानी हो या पहचानी।

अनुमति तुमको कैसे दे दूँ
जज्बात अभी भी बाकी है।
कहो विदाई कैसे दे दूँ
बात अभी भी बाकी है।।

कदम कदम पर कितनी बातें
कितनी ही अभिलाषा हैं
कब शुरू हुआ कब हुआ खतम
जीवन की कैसी गाथा है

जीवन की गाथाएँ कितने
अध्यायों में बाकी हैं।
कहो विदाई कैसे दे दूँ
बात अभी भी बाकी है।।

उम्मीदों का सफर शुरू है
सपनों की परछाईं में
खुशियाँ मुझको आज मिली हैं
तुझसे ही अँगनाई में।

तुमसे मिलकर मैंने जाना
उम्र अभी भी बाकी है।
कहो विदाई कैसे दे दूँ
बात अभी भी बाकी है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06फरवरी, 2021

मेरे मन की कब समझोगे।

मेरे मन की कब समझोगे।  

मैं सहज भाव से ओतप्रोत
तुम उम्मीदों के मूलस्रोत
मैं भावों की सहज प्रवृत्ति
तुम आशा के सहस्रस्रोत।

शीश झुका करता मैं वंदन
मेरे मन की कब समझोगे।।

नव पल्लव सा डोल डोल
बंद हृदय को खोल खोल
कहो समर्पित कर दूँ मैं भी
अपने भावों को बोल बोल।

विनम्र हृदय करता है क्रंदन
मेरे मन की कब समझोगे।।

तुम अंतस की मधुर अल्पना
मुक्त हृदय की सकल कल्पना
तुम ही उम्मीदों के हिमगिरि
पवित्र भाव, और संकल्पना।

पवित्र भाव करते अभिनंदन
मेरे मन की कब समझोगे।।

मोक्ष तुम्हीं अभिषेक तुम्हीं
आशा और संकेत तुम्हीं
भावों का प्रतिपादन तुम हो
और मेरे साकेत तुम्हीं।

तुमसे ही अंतस के बंधन
मेरे मन की कब समझोगे।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05फरवरी, 2021


सुलगती आशाएँ।

सुलगती आशाएँ।   

उम्मीदें बाधाओं में घिर
बदल रही हैं परिधानों में
सुलग रही आशाएँ कितनी
जीवन के कुछ व्यवधानों में।

मोड़ मोड़ पर क्षोभ बड़े हैं
जाने कितने लोभ खड़े हैं
मचल रही यूँ आज चेतना
लगता जैसे रोक पड़े है।

बिलख रही है आज वेदना
दिवस ढले अवसानों में।
सुलग रही आशाएँ कितनी
जीवन के कुछ व्यवधानों में।।

आकृतियों के कितने बंधन
विकृतियों में सुलग रहे हैं
स्वीकृतियों के कितने अवसर
अनुकृतियों में विलग रहे हैं।

विकृतियाँ स्वीकृतियाँ भी अब
कुतुक बनी हैं पैमानों में।
सुलग रही आशाएँ कितनी
जीवन के कुछ व्यवधानों में।।

भ्रम से आच्छादित मंडल में
उपहारों का कुछ मोल नहीं
उम्मीदों आशाओं से भी
जीवन क्या अनमोल नहीं।

भ्रम का अनुपालन क्यूँ लगता
मोक्ष दे रहा अनुमानों में।
सुलग रही आशाएँ कितनी
जीवन के कुछ व्यवधानों में।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       04फरवरी, 2021

मैंने जीना सीख लिया।

मैंने जीना सीख लिया।   

मुक्त कर अपने हृदय को
मैंने जीना सीख लिया
अंतस के सारे घावों को
मैंने सीना सीख लिया।

स्वप्न जीवन के बहुत थे
पर ध्वस्त कितने हो गए
कुछ राह को मंजिल मिली
अभ्यस्त कितने हो गए।

बनते बिगड़ते स्वप्न को
मैंने सीना सीख लिया।
मुक्त कर अपने हृदय को
मैंने जीना सीख लिया।।

वक्त ही सब सर्जना है
औ वक्त ही संजीवनी
वक्त ही अनुमान सारे
औ वक्त ही चेतावनी।

वक्त के अमृत गरल सब
मैंने पीना सीख लिया।
मुक्त कर अपने हृदय को
मैंने जीना सीख लिया।।

कुछ रंग जीवन के चुने
कुछ कल्पना किरणावली
पर क्या करूँ हालात का
जो दे गए प्रश्नावली।

प्रश्नावली के प्रश्न में
मैंने जीना सीख लिया।
मुक्त कर अपने हृदय को
मैंने जीना सीख लिया।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       03फरवरी, 2021

तेरा प्यार अब दवा हो गया।

तेरा प्यार अब दवा हो गया।  

न तेरी खता थी, न मेरी खता थी
मगर कोई अपना खफ़ा हो गया है।

खबर कुछ नहीं है खता किसकी थी वो
सनम वो मगर अनमना हो गया है।

दिए ख्वाब जिसने, सुहाने सफर के
वही रास्ते से जुदा हो गया है।

कभी साथ जिसका गँवारा नहीं था
सुना है कि अब वो खुदा हो गया है।


मुझे क्या किसी भी दवा की जरूरत 
तेरा प्यार ही अब दवा हो गया है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       01फरवरी, 2021



यूँ ही धुँआ नहीं होता।

यूँ ही धुँआ नहीं होता।  

कुछ वजह रही होगी कोई यूँ ही जुदा नहीं होता।
कुछ आग लगी होगी वरना यूँ ही धुँआ नहीं होता।।

यूँ तो हर कोई अब रहता है खफा एक दूजे से
शायद अब सबके दिल में पहले सा खुदा नहीं होता।।

यूँ तो हर दफा दोष शमा का ही नहीं होता यारों
कुछ कसक रही होगी यूँ परवाना फना नहीं होता।।

ना जाने कितनी ही आहों का असर फिजाओं में है
वरना शाखों से वो पत्ता यूँ ही जुदा नहीं होता।।

कोई मतलब नहीं महज साथ रहने से यहाँ तब तक
जब तक की दिल से दिल तक का कोई वास्ता नहीं होता।।

कुछ तो वजह रही होगी सर झुकाने की किसी दर पर
कभी भी कोई यूँ ही तो यहाँ पर खुदा नहीं होता।।

कोई तो चोट गहरी ही लगी होगी दिल पर यारों
वरना कभी कोई यूँ ही यहाँ बेवफा नहीं होता।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       01फरवरी, 2021



श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...