रेल हमारी

रेल हमारी

नदिया लहरें खेत पहाड़ी
इनसे गुजरे रेल हमारी।

ले छोटी सी आशा मन में,
मुस्कानों को ओढ़ लिया है।
जंगल झाड़ी और सुरंगें,
पर्वत रस्ते मोड़ लिया है।

छुक-छुक करती भाव लुभाती,
गाँव-गाँव से अपनी यारी।
नदिया लहरें खेत पहाड़ी
इनसे गुजरे रेल हमारी।

लाखों सपने लिए साथ में,
नित-नित उम्मीदें गढ़ते हैं।
हर आने जाने वालों के,
मन के भावों को पढ़ते हैं।

हर रिश्तों से नेह हमारा,
अपनी सबसे रिश्तेदारी।
नदिया लहरें खेत पहाड़ी
इनसे गुजरे रेल हमारी।

हमने भारत के कण-कण को,
सदियों से खिलते देखा है।
जीवन रेखा हम भारत के,
हर सपना पलते देखा है।

भारत की आशाओं में है,
अपनी थोड़ी हिस्सेदारी।
नदिया लहरें खेत पहाड़ी
इनसे गुजरे रेल हमारी।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       29 फरवरी, 2024

डाकिया जब खबर दे गया

डाकिया जब खबर दे गया

दूर पगडंडियाँ गीत गाती रहीं,
रात भर दीपिका टिमटिमाती रही।
द्वार पर नींद से नैन उलझे रहे,
कोर की बूँद में मौन उलझे रहे।

रात के मौन को वो सहर दे गया,
डाकिया जब सुबह ये खबर दे गया।

आस की बूँदों में पाती भिंगोकर,
नैन ने देखा फिर सपना सँजोकर।
देख पाती हृदय ये मचलता रहा,
थी कहीं इक तपिश मन पिघलता रहा।

नेह की पंक्तियों को लहर दे गया,
डाकिया जब सुबह ये खबर दे गया।

खुली पाती चेहरा दिखाई दिया,
पंक्ति में भाव मन के सुनाई दिया।
दूरियों से नजर डबडबाती रही,
आस की तितलियाँ मन लुभाती रही।

आस को इक नई वो प्रहर दे गया,
डाकिया जब सुबह ये खबर दे गया।

दूरियाँ जो रहीं आज मिटने लगीं,
धुंध की बदलियाँ आज छँटने लगीं।
मन मिलन का नया गीत गाने लगा,
ऋतु पतझड़ में मधुमास छाने लगा।

शांत मन की नदी को लहर दे गया,
डाकिया जब सुबह ये खबर दे गया।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      28 फरवरी, 2024

मिल के सब निभाना

मिल के सब निभाना

आ जी लें जिंदगी को किस पल का क्या ठिकाना,
सुख-दुख ये जिंदगी है इसे मिल के सब निभाना।

हमने काट ली है आधी सदी यहाँ पर,
कौन जाने कितनी है बाकी यहाँ पर।
अब आसमान पूरा तुम्हारे वास्ते है,
ध्यान से तो देखो कितने रास्ते हैं।

इन रास्तों के संग-संग रिश्ते सभी निभाना
सुख-दुख ये जिंदगी है इसे मिल के सब निभाना।

बीती उस सदी में माना कमी रही थी,
तंग जेब कारण कोई कमी कहीं थी।
पल आने वाला सारे सपने नए सजाएं,
फूलों के रास्ते हों खुशियों से जगमगाएं।

पर बीते उन पलों का न नेह तुम भुलाना,
सुख-दुख ये जिंदगी है इसे मिल के सब निभाना।

जो गीत लिख रहा हूँ सब भाव हैं हमारे,
है आशीष ये हमारा के पथ सदा सँवारे।
मुश्किलें भी हों गर तो तुम विचल न जाना,
हो कैसा भी प्रलोभन तुम मचल न जाना।

तुम जीतने से पहले न हार मान जाना
सुख-दुख ये जिंदगी है इसे मिल के सब निभाना।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       28 फरवरी, 2024

रात होती रही

रात होती रही

रात भर तारों से बात होती रही
चाँद चलता रहा रात होती रही

किए अँधेरों ने यूँ तो लाखों जतन
शमा जलती रही रात होती रही

दर्द सिलवट का दिल ये भुला न सका
रात भर ऐसी बरसात होती रही

कैसे कह दूँ के हम तुम मिले ही नहीं
जब ख्यालों में मुलाकात होती रही

देव यादों ने दिल पे यूँ कब्जा किया
रात भर हिचकियों में बात होती रही

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24 फरवरी, 2024



शायरी

शायरी

मलाल है मुझको तेरे यूँ रूठ जाने का,
करूँ क्या जतन ऐ दिल तुझे मनाने का।

मेरी आँखों मे जो ये थोड़ी सी नमी है,
कहीं अब भी इस दिल में तेरी कमी है।

ये जो है दर्द का टुकड़ा ये जीने को जरूरी है,
वरना कौन है इतना जो मुझे प्यार यूँ करता।

नजर ये फेरते हैं जो मेरे आने के बाद,
करेंगे याद रो-रो कर मेरे जाने के बाद।

भला ऐसे भी कोई दूर जाता है क्या
जैसे आते हो तुम कोई याद आता है क्या

मुझे कहते थे जो बेवफा हो गया हूँ
वही राह में छोड़ मुझे चल दिये

दुनिया में कोई कब हमेशा रहा है,
जाना तो है हम सभी को यहाँ से।
पर जैसे गये तुम हमें छोड़ कर,
ऐसे भी कहो कोई जाता है क्या।

चले जाना ज़रा ठहरो अभी कुछ बात बाकी है,
सितारों ने सजाई है जो सारी रात बाकी है।

महफ़िल में तेरी कभी यूँ भी आयेंगे
हम न होंगे पर लम्हे गुनगुनायेंगे

ये अंदाजे बयां बहुत दिलकशी है
मगर चाहता दिल जिसे तुम नही हो

ऐसा नहीं प्यार मुझको नहीं है
मगर अब तलक ये जताना न आया

जिंदगी क़ा सफ़र यूँ सुहाना बहुत है
मगर ये सफर इतना आसान कब था

जंग है जिंदगी तुम लड़ो तो सही
मुश्किलें हैं तो क्या तुम बढ़ो तो सही

मुश्किलों से यहाँ रार क्या ठानना
जीतने तक यहाँ हार क्या मानना

बिन कहे पलकों से वो सब कह दिए
और कहते हैं कि उनको कहना न आया

जिंदगी कब किसी को कहाँ रोकती है।
उम्र की सिलवटें भी कहाँ टोकती है।
गर हौसला हो दिल में करे कुछ नया,
मुश्किलें कब किसी को यहाँ रोकती हैं।

साथ चल न सके जो जुदा हो गये
मोहब्बत के अब वो खुदा हो गये

रात भर चाँद से बात होती रही
तेरे ख़याल ने मुझे सोने न दिया

कैसे मानूँ के मैं याद आता नहीं
इन आँखों ने कह दी कहानी सभी

मुझसे नजरें चुरा कर भले चल दिये
आईना देखिएगा जरा सोच के

कुछ है बाकी निशानी मेरे प्यार की
बेसबब आईना तुमने चूमा न होता

रात भर हिचकियों ने सताया मुझे
और कहते हैं मैं याद आता नहीं

याद करना ही मोहब्बत की निशानी नहीं 
भूल जाना भी मोहब्बत हुआ करती देव

भूल जाना किसी को बड़ी बात नहीं है देव
फिर याद न आना बड़ी बात हुआ करती है

कौन कहता है कि अब हम उन्हें याद नहीं हैं
कमबख्त हिचकियाँ आज भी सोने नहीं देती

जिंदगी एक दिन तू भी ये मान लेगी
मेरी शख्शियत क्या है पहचान लेगी

हर पल मंजिलों पे नजर रखता हूँ
ऐ जिंदगी हर रोज सफ़र करता हूँ

खुद ही बोले खुद ही खफा हो गये
और कहते हैं हम बेवफा हो गये

अब तो तन्हाईयाँ भी सताती नहीं
तेरी रुसवाईयाँ रास आने लगीं

जिन्हें मेरी परछाइयाँ भी गँवारा नहीं
उम्र भर दुश्मनी क्या निभायेंगे वो

जीवन के अँधियारे में रोशनी की आस हैं दोस्त,
बेचैनियों में भी इस दिल के सबसे पास हैं दोस्त।
मुश्किल हालात में जब कुछ भी नहीं सूझता दिल को,
आँख का अश्रु, अधरों की हँसी, मौन जज्बात हैं दोस्त।

जिस गली से गये वो मुझे छोड़ कर
ले चली जिंदगी फिर उसी मोड़ पर

गुनाहों की फेहरिस्त में एक गुनाह और जोड़ आया हूँ,
उन्हें भरी महफ़िल में तन्हा छोड़ आया हूँ।

बड़े अजीब रंग हैं यहाँ जमाने के,
बहाने ढूँढते हैं लोग दिल जलाने के।

जागेंगे कब तलक हम यूँ ही रात भर
ए सितारों चलो रात को ओढ़ लें

चल दिये छोड़ कर मुझको तन्हा यहाँ
ये न सोचा कि तुम बिन जियें किस तरह

फूलों से नाजुक मेरा दिल ये था
जाने क्यूँ राह तुमने चुनी काँटों की

ये दर्द ही है जिसने अकेला होने न दिया
वर्ना जमाने में कौन इतना सगा होता है

क्या करूँ कोई शिकायत क्या तुम्हें इल्जाम दूँ
दोष था अपना कि तुमको मान बैठे हम खुदा

लिख सका न गीत कोई लाख जतन दिल ने किए
थी जाने क्या अपनी खता जो शब्द सारे रूठ गये

ऐ सितारों आ मिलें हम उस सुहाने मोड़ पर
क्या पता कोई कहानी मोड़ पर अब भी खड़ी हो

माना तेरी नजरों में मैं बस एक फसाना रह गया
शुक्र है इतना कि अब भी याद है मेरी कहानी

चाँद के संग रात भर हम भी सफर करते रहे
पटरियों पर रेल सी यूँ जिंदगी चलती रही

जब से गुजरे हैं हम उनकी गली से
खुद से भी हम अजनबी हो गये हैं

कैसे कह दूँ कि मैखाने में आ के कुछ पाया नहीं
ये साकी ये पैमाना जैसा कोई हमसाया नहीं

तेरी यादों की खुशबू से महकने लगे
बिन पिये ही कदम ये बहकने लगे

तेरे दिए दर्द को हम पिये जा रहे हैं
जिंदगी हँसकर तुझे हम जिये जा रहे हैं

तेरे सिवा मुझको कोई भाता नहीं है
सच तो ये है कोई नजर आता नहीं है

ये न समझो हमेशा यूँ तन्हा रहा हूँ
कभी जिंदगी का तेरे एक लम्हा रहा हूँ

उम्र की सिलवटें भाने लगी हैं
तेरी चाहतें रास आने लगी हैं

दूर जाना था तो पास आये ही क्यूँ
जो था मुमकिन नहीं गीत गाये ही क्यूँ

खुशियों में तुम्हारी मुस्कुराना चाहता हूँ।
तुम्हारे दर्द में ऑंसू बहाना चाहता हूँ।
थक गया हूँ मैं जमाने में दिखावे से,
सब कुछ छोड़ कर मैं पास आना चाहता हूँ।

बिन तेरे आँसुओं को पिये जा रहे हैं
एक अधूरा सा जीवन जिये जा रहे हैं

कैसे लिख दूँ मैं तेरे बिना जिंदगी
मेरी साँसों के हर तार में तू ही तू

✍️अजय कुमार पाण्डेय

अजनबी

अजनबी

दो कदम साथ जब हम चले ही नहीं,
कहें कैसे कि हम अजनबी हो गये।
साथ हम तुम कभी जब रहे ही नहीं,
कहें कैसे कि हम अजनबी हो गये।

दूर तुम भी रहे दूर हम भी रहे,
एक हसरत दिलों में दबी रह गयी।
रेल की पटरी संग चले साथ पर,
चाह दिल में मिलन की दबी रह गयी।

मिलन जब हमारा हुआ ही नहीं,
कहें कैसे कि हम अजनबी हो गये।

कर सके न वफ़ा अपने दिल से कभी,
चाहतों को सदा हम छुपाते रहे।
बात थी जो दिलों में नहीं कह सके,
हसरतों को सदा हम दबाते रहे।

हसरतें जब मिलन की दबी रह गयी,
कहें कैसे कि हम अजनबी हो गये।

एक अहसास से हम बँधे जब यहाँ,
कहें कैसे कि हम जानते ही नहीं।
इक कसक सी दिलों में दबी थी कहीं,
कहें कैसे कि पहचानते ही नहीं।

है कहीं कुछ कसक हम छुपाते रहे
कहें कैसे कि हम अजनबी हो गये।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22 फरवरी, 2024

आँसू- जीवन है ताना बाना

आँसू- जीवन है ताना बाना

1
कुछ कहना चुप हो जाना 
पलकों से सब कह जाना 
कुछ खोना कुछ है पाना 
जीवन है ताना-बाना।

कुछ रुक रुक कर के चलना 
फिर मिलना और बिछड़ना 
ठोकर खा-खाकर गिरना 
गिर-गिर कर और सँभलना। 

फिर गीतों मे ढल जाना 
बिन कहे बहुत कह जाना 
हँस- हँस कर सब अपनाना
जीवन है ताना-बाना। 

2
निज मन ये पुण्य पथिक है
चलता, रुकता न तनिक है
अभिलाषाओं का जगना
पलकों पर उनका सजना।

वो रात-रात भर जगना
नींदों से स्वयं उलझना
मन बहलाने की करवट
वो खिली माथ की सिलवट

सिलवट में भाव छुपाना
आँसू यदि, तो पी जाना
फिर से नव स्वप्न सजाना
जीवन है ताना-बाना।

3
कब जीवन रहा सरल है
पग-पग पे भरा गरल है
कभी नीलकंठ बना है
विष पीकर स्वयं तना है।

मन कितना क्रंदन करता
या जीता या फिर मरता
तब मन खुद की है सुनता
आँसू में जीवन बुनता।

ले बीती पीर पुरानी
तब लिखता नई कहानी
फिर स्वयं पात्र बन जाना
जीवन है ताना-बाना।

4
करुणा के मौन पलों में
झर-झर नयनों से बहती
अधरों पे मौन भले हो
आँसू हर पीड़ा कहती

सब बीती-बीती बातें
नयनों की सूनी रातें
जब-जब स्मृतियाँ तड़पातीं
तब-तब मन को समझातीं।

नयनों की अगन बुझाती
कुछ सुनती कुछ कह जाती
आहों से नेह जताना
जीवन है ताना-बाना।

5
मन गंगा से निर्मल था
सपनों में नीलकमल था
पल-पल ये दृश्य बनाता
मन ही मन उसे सजाता।

चुनता पग-पग के कंटक
वो पथ के सारे झंझट
फिर देता नई निशानी
कुछ अनजानी पहचानी।

जब उसको कुछ मिल जाता
मन ही मन वो खिल जाता
अंतस में नेह जताना
जीवन है ताना-बाना।

6
मन सुख को मौन तरसता
दुख आँसू बनकर झरता
इस कोमल हृदय कमल में
अलकों के मौन निलय में।

आँसू आयी बहलाने
घन पीड़ा को सहलाने
जो कह न सकी वो कहने
मन की पीड़ा को हरने।

देने को मौन दिलासा
बन कर छोटी सी आशा
फिर-फिर मन को समझाना
जीवन है ताना-बाना।

7

पलकों ने मौन पुकारा
आँसू ने दिया सहारा
दिल के छाले सहलाये
पल-पल मन को बहलाये।

आहों को दिया सहारा
साँसों ने जहाँ पुकारा
क्या करता मौन अकिंचन
कोरों से आये छन-छन।

आहों को पुनः मनाने
सपनों का पंथ सजाने
पलकों में फिर सज जाना
जीवन है ताना बाना।

©️✍️अजय कुमार पांडेय 
        हैदराबाद 
       19 फरवरी, 2024




जज्बात नहीं

जज्बात नहीं

बदल गए कितने ही मौसम बदले पर हालात नहीं
कागज़ की कश्ती झुलस गई आयी पर बरसात नहीं

सूनी आँखें तरस गयीं चौखट को तकते-तकते
पाती के संदेशों में अब पहली वाली बात नहीं

अबके शायद मन भी तरसे भींगी-भींगी रातों में
भींगी-भींगी रातों में अब पहले से जज्बात नहीं

रातों ने हर रोज सजायी सपनों की बारातों को
लेकिन जो सपने दे जाए आती क्यूँ वो रात नहीं

दो वक्त की रोटी को दूर शहर तक आ पहुँचे
माँ तेरी बासी रोटी सी इस रोटी में बात नहीं

दूर शहर तक चली जा रही पगडंडी धीरे-धीरे
पगडंडी का मोल चुका लें इतनी भी औकात नहीं

कितने सपने झुलस रहे हैं रोज बरसते वादों से
महज खोखले इन वादों से बदलेंगे हालात नहीं

बाजारू जब हुई व्यवस्था महँगे सब रिश्ते-नाते
देव दरकते रिश्तों में अब पहले से जज्बात नहीं

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      18 फरवरी, 2024

बेटी जब मुस्काती है

बेटी जब मुस्काती है

नन्हें-नन्हें हाथों से जब, उँगली मेरी थामी थी,
पूर्ण हुई सारी आशायें, प्रभु से जो-जो माँगी थी।
तेरी नन्हीं मुस्कानों से, कितने सपने जागे थे,
किलकारी की मृदुल गूँज से, सभी अँधेरे भागे थे।

पायल की छम-छम से कितने, जीवन राग सुनाती है,
जन्म-जन्म के पुण्य फलित हों, बेटी जब मुस्काती है।

रामायण में लिखे छंद सब, बसते हैं मुस्कानों में,
वेदों की भी सभी ऋचाएँ, जिसके मीठे गानों में।
सुबह वंदना शाम आरती, गंगा सी निर्मल धारा,
तुतलाते बोलों के आगे, सभी व्याकरण है हारा।

तुतलाते रागों में जिसके, भोर वंदना गाती है,
जन्म-जन्म के पुण्य फलित हों, बेटी जब मुस्काती है।

वन उपवन सब खिल जाता है, चिड़ियों के आ जाने से,
जीवन में उत्सव आता है, बिटिया के घर आने से।
घर-घर में सोहर होता है, और बधाई बजती है,
कहीं दूर माँ के आँचल में, जब-जब बेटी सजती है।

देवत्व देव का खिल जाये, बेटी जब-जब गाती है,
जन्म-जन्म के पुण्य फलित हों, बेटी जब मुस्काती है।

खुशकिस्मत होता है जीवन, जिसने कन्यादान किया,
सात जन्म का पुण्य जिया है, देवों का वरदान जिया।
जिसके होने भर से जीवन, मंदिर सा बन जाता है,
जिसकी एक झलक मिलते ही, धूप छाँव बन जाता है।

जिसके चरण पड़े जब घर में, खुशियाँ दौड़ी आती हैं,
जन्म-जन्म के पुण्य फलित हों, बेटी जब मुस्काती है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       17 फरवरी, 2024

मेरे गीत अमर हो जाएं

मेरे गीत अमर हो जाएं

मेरे गीत कुँवारे अब तक, अधरों का मधुपान करा दो,
छू कर इन मधुमय अधरों को, मेरे गीत अमर हो जाएं।

कली-कली से शब्द चुने हैं, भ्रमरों से गुंजन माँगा है,
मन भावों को लिखने खातिर, रात-रात भर मन जागा है।
वर्ण-वर्ण में सजा भावना, प्रति चरणों में भाव सजाये,
मन को जो अनुरागी कर दे, साँसों ने वो गीत बनाये।

मेरे गीत अधूरे अब तक, साँसों का अनुमान करा दो,
छू कर इन मधुमय अधरों को, मेरे गीत अमर हो जाएं।

जब-जब जिसने जो-जो माँगा, रिक्त नहीं लौटाया हमने,
अंक भले था खाली अपना, जग पर नेह लुटाया हमने।
मिली भेंट में जग से जो भी, हमने उससे सपन सजाये,
तुमको भी कुछ दे पाऊँ मैं, प्रति पल कितने जतन बनाये।

रिक्त रहें न गीत मेरे ये, भावों का सम्मान करा दो,
छू कर इन मधुमय अधरों को, मेरे गीत अमर हो जाएं।

कितना जीवन बीत चुका है, शेष कहीं कुछ बचा हुआ है,
जीवन के अंतिम छंदों का, भाव अभी तक रुका हुआ है।
भावों की लाली जब सजती, तब सजती है कहीं महावर,
सुख की साँसों पर होता है, गीतों का अमरत्व निछावर।

अपने अधरों के कंपन से, छंदों के अरमान सजा दो,
छू कर इन मधुमय अधरों को, मेरे गीत अमर हो जाएं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       16 फरवरी, 2024

बहलाते रहे

बहलाते रहे

भूख संसद से सड़क तक मुद्दे दहलाते रहे
और अबकी बार कहकर हमको बहलाते रहे

वो पिलाते ही रहे हैं वादों की घुट्टी सदा
वादों के हर ताप से लम्हे झुलसाते रहे

लिख रही है मुफ्तखोरी मुल्क की वो दास्ताँ
बोझ में जिसके कुचल बस जेब सहलाते रहे

हम इधर आँचल का अपने रोज करते हैं रफू
खींच कर आँचल हमारा हमको फुसलाते रहे

शर्म भी हैरान है देख कर मंजर यहाँ का
मासूमियत को रौंद जब मन को बहलाते रहे

जोड़ने की बात कहकर तोड़ डाला रास्तों को
देव बस वो दूर से ही हाथ दिखलाते रहे

और एक तोहमत हमेशा हम पे ये लगती रही
देख कर उनका सुखन हम यूँ ही चिल्लाते रहे

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       14 फरवरी, 2024

सारी रात नहीं सोया था

सारी रात नहीं सोया था

ठूँठ हुआ सूरज लगता है,
उगता कभी-कभी छुपता है,
कभी सरकता धीरे-धीरे,
सागर के उस तीरे-तीरे,
दूर क्षितिज जब वो ढलता है,
क्यूँ जाने मन को खलता है,
दूर कहीं ये मन खोया था,
सारी रात नहीं सोया था।

सरिता के पनघट पर जाकर,
छलकाई यादों की गागर,
नैन मूँद कर उपवन घूमा,
यादों के हर पट को चूमा,
सन्नाटे में बहुत पुकारा,
अपने प्रतिशब्दों से हारा,
यादों को हर पल ढोया था,
सारी रात नहीं सोया था।

आँसू का हर मौन छुपाकर,
पलकों का हर कोर सजाकर,
गिरी बूँद में कलम डुबोया,
हृदय पटल पर उसे सँजोया,
अधरों पर छुपकर ले आया,
साँसों ने तब गीत सुनाया,
पहली बार नहीं रोया था,
सारी रात नहीं सोया था।

कभी याद तो आती होगी,
आहों को सहलाती होगी,
किसी मोड़ पर जब सोचोगे,
पीछे मुड़ कर जब देखोगे,
तुमको गीत सुनाई देगा,
बिछड़ा मीत दिखाई देगा,
बस उधेड़बुन में खोया था
सारी रात नहीं सोया था।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       13 फरवरी, 2024

गीत लिख पाता नहीं हूँ

गीत लिख पाता नहीं हूँ

क्या व्याकरण से शब्द खोजूँ,
और कितना और सोचूँ।
मृदु रूप की इस रोशनी से,
मैं मृदुल मनमोहिनी से।

जब पास आ पाता नहीं हूँ,
गीत लिख पाता नहीं हूँ।

प्रिय सांध्य की इस रोशनी से,
मधुमास की चाशनी से।
मृदु नैन की इस भंगिमा से,
गात की इस नीलिमा से।

पुष्पित अधर की पंखुरी से,
आस भर इस अंजुरी से।
ये नैन के सपने सुहाने,
जब खड़ा सागर मुहाने।

जब पार जा पाता नहीं हूँ,
गीत लिख पाता नहीं हूँ।

सुन इस हवा का गीत मद्धम,
है निशा का मीत शबनम।
श्रृंगार बूँदों में मचलती,
है निशा पल-पल पिघलती।

ये भाव तब किसको सुनाएं,
जब पथिक पथ भूल जाए।
तब सोचता हूँ प्यार कर लूँ,
मैं हार को स्वीकार लूँ।

जब जीत मैं पाता नहीं हूँ,
गीत लिख पाता नहीं हूँ।

एकांत की रिमझिम घटाएँ,
बूँद मधुमित गीत गाएं।
बिजलियों से माँग भरकर,
बादलों के अंग लगकर।

आ नैन में सपना सजा कर,
चाहतों के गीत गा कर।
फिर कुछ नया अनुमान कर लूँ,
भाव का सम्मान कर लूँ।

अनुमान कर पाता नहीं हूँ,
गीत लिख पाता नहीं हूँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       12 फरवरी, 2024






साँसों ने गुणगान किया

साँसों ने गुणगान किया

जब-जब देखा दर्पण मैंने, यादों ने मधुपान किया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

पलकों पे सपनों की सागर, अधरों ने मृदु गीत कहे,
बीते कितने जाने जीवन, यादों के मनमीत रहे।
प्रेम ग्रन्थ के इतिहासों ने, कितने ही सोपान जिया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

लहरों का नर्तन देखा है, जब-जब मौसम बदला है,
बीते चाहे कितने सावन, अपना हरदम पहला है।
हर सावन में मधुमासों ने, कितने ही अनुमान जिया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

बंधन से मन मुक्त हुआ है, आशा का संचार हुआ,
आना-जाना, खोना-पाना, जीवन का व्यवहार हुआ।
मुक्त बंधनों से होकर के, मन अपनी पहचान जिया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

आज शून्य से जीवन उठकर, अपनी परिधि बनाई है,
त्रिज्याएँ जब स्वयं चलीं तब, नापी सब गहराई है।
व्यास, परिधि, त्रिज्या से उठकर, वीथी का संज्ञान किया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10 फरवरी, 2024

दिल की राहत

दिल की राहत

स्वप्न न थे पलकों पर कोई, और नहीं कोई चाहत थी,
तुमसे जब तक मिले नहीं थे, दिल में कितनी राहत थी।

शाम कहीं पर सुबह कहीं पर, रात कहीं भी कटती थी,
करते थे बस मन जो चाहे, महफ़िल अपनी जमती थी।
सुबह शाम का बोध नहीं था, और नहीं कोई आहट थी,
तुमसे जब तक मिले नहीं थे, दिल में कितनी राहत थी।

यार दोस्त से मिलकर कितने, सपने सदा सजाते थे,
सुनते थे हम कभी किसी की, अपनी कभी सुनाते थे।
अपनेपन के उस रिश्ते में, कितनी ही गर्माहट थी,
तुमसे जब तक मिले नहीं थे, दिल में कितनी राहत थी।

नाम हमारा दर्ज हुआ है, दुनिया के दीवानों में,
अपनों के भी बीच रहूँ तो, लगता हूँ अनजानों में।
भूल गया दिल कभी यहाँ के, दिलों पे बादशाहत थी,
तुमसे जब तक मिले नहीं थे, दिल में कितनी राहत थी।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10 फरवरी, 2024

भूली बिसरी यादें

भूली बिसरी यादें

कॉलेज के दिन बड़े सुहाने,
नहीं खौफ थी चिंता थी।
कल के दिन की किसे खबर थी,
उम्मीदें सब जिंदा थीं।

एक हाथ में चाय का प्याला,
दूजे में अखबार का पर्चा।
देश-विदेश की सभी समस्या,
पर हम मिल करते थे चर्चा।

खर्चा वो करता था सारा,
जो मुद्दों पे हार गया।
मिली नौकरी तो अब जाना,
मन को कितना मार गया।

आधी रात सड़क पर जाना,
दूर बहुत हम जाते थे।
दोस्त यार संग कितने किस्से,
सुनते और सुनाते थे।

सूनी सड़क पर राजा बनते,
अपना राज चलाते थे।
इक दूजे की करी खिंचाई,
अपना मन बहलाते थे।

अपनी बारी जब आती तो,
कहते अब बेकार हुआ।
मिली नौकरी तो अब जाना,
मन को कितना मार गया।

राजनीति की कितनी चर्चा,
चुटकी में कर जाते थे।
सत्ता पर हम कभी बिठाते,
कभी सरकार गिराते थे।

दिल्ली से बंगाल की चर्चा,
चाय समोसे संग होती थी।
राजनीति पर कोई चर्चा
बिन कश्मीर कहाँ होती थी।

जिम्मेदारी के आते ही,
रातों पर अधिकार गया।
मिली नौकरी तो अब जाना,
मन को कितना मार गया।

दस रुपये था पॉकेट खर्चा,
कितना कुछ कर जाते थे।
इक-इक पैसा जोड़-जोड़ कर,
सारे पिकनिक जाते थे।

साईकल की दौड़ सड़क पर,
बस से बाजी लगती थी।
थक जाते थे पैर हमारे,
उम्मीदें कब थकती थीं।

अल्हड़पन की उन बातों का,
जाने सब व्यवहार गया।
मिली नौकरी तो अब जाना,
मन को कितना मार गया।

सुबह-शाम बस दौड़ रहे हैं,
उम्मीदों के रेले में।
ढूँढ़ रहे हैं अपने मन को,
भीड़ भरे हर मेले में।

शिकन माथ पर जब आती है,
हर पल उसे छुपाते हैं,
यादों की ड्योढ़ी पर कितने,
आँसू मौन छुपाते हैं।

इस भीड़ भरी तन्हाई में,
क्यूँ वो बचपन हार गया।
मिली नौकरी तो अब जाना,
मन को कितना मार गया।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10 फरवरी, 2024








सभी से जीत जाता हूँ तुम्हीं से हार जाता हूँ

सभी से जीत जाता हूँ तुम्हीं से हार जाता हूँ

न जाने कैसा बंधन है जो अकसर हार जाता हूँ
सभी से जीत जाता हूँ तुम्हीं से हार जाता हूँ

भले मजबूत दीवारें मुझे कब रोक पायी हैं
तेरी परछाइयों से भी मैं अकसर हार जाता हूँ

मुसाफिर जिंदगी अपनी कहाँ आराम पाती है
किनारे पास होते हैं तो अकसर हार जाता हूँ

नहीं कोई शिकायत है मुझे तेरी अदावत से
कहीं कुछ तो बचा होगा जो अकसर हार जाता हूँ

नहीं कोई गिला तुमसे नहीं कोई शिकायत है
लिखूँ जब गीत उल्फत के तो अकसर हार जाता हूँ

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08फरवरी, 2024

साँसें हारी हैं

साँसें हारी हैं

उन्हें यकीं हो या के न हो, बेचैनी हम पर भारी है,
चुभती हैं आहें साँसों में, ये साँसें फिर भी हारी हैं।

तार-तार अनुमान सभी हैं, ये चुभती हुई हवायें क्यूँ,
बिखरे-बिखरे सपने सारे, हैं घायल सभी फिजायें क्यूँ।
कौन सुनेगा किससे मन के, अपने सारे भाव उचारें,
दूर-दूर तक नहीं दिख रहा, किसको मन अब आज पुकारे।

भावों में सूनापन गहरा, आशायें मन पर भारी हैं,
चुभती हैं आहें साँसों में, ये साँसें फिर भी हारी हैं।

महँगे हैं सपने आँखों के, पलकों पे अब नींद नहीं है,
बाजारू हो चुकी व्यवस्था, बदलेगी उम्मीद नहीं है।
जाड़े की सिलवट में सिमटे, साँसों के अरमान बिचारे,
बाट जोहते कंबल के हैं, रातों के आगे सब हारे।

बाजारू जब हुई व्यवस्था, पलकों के सपने भारी हैं,
चुभती हैं आहें साँसों में, ये साँसें फिर भी हारी हैं।

सोचा कितनी बार कहूँ मैं मुद्दे सारे सरकारों से,
लेकिन मन की बात लौट कर, आयी कितने दरबारों से।
खड़े द्वार पर तकते-तकते, उम्मीदें सारी उलझीं हैं,
उम्मीदों के महा युद्ध में, ये साँस कहो कब सुलझी है।

उम्मीदों के घने युद्ध में, सब बाजी मन पे भारी है,
चुभती हैं आहें साँसों में, ये साँसें फिर भी हारी हैं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       03फरवरी, 2024

आँसू से रिश्तेदारी

आँसू से रिश्तेदारी

खुशियों के तुम गीत सजा लो गम की कुछ परवाह न कर,
अपना क्या है अपनी तो हर गम से रिश्तेदारी है।

जिनके मन ने भ्रम पाले हैं सारे गीत सजाये हैं,
कैसे जानेंगे जीवन ने कितने नेह लुटाये हैं।
जिनके मन अभिसिंचित हैं सुविधाओं की बरसातों से,
दर्द यहाँ कैसे जानेंगे स्वप्न गिरे क्यूँ आँखों से।

सुविधाओं की सेज सजा भ्रम की कुछ परवाह न कर,
अपना क्या है अपनी तो हर भ्रम से रिश्तेदारी है।

कुछ आँसू पलकों पर ठहरे कुछ पलकों से उतर गये,
जो पलकों पर ठहरे हैं दुख उतरे का क्या जानेंगे।
कुछ बंधन से मुक्त हुए हैं, कुछ आहों में उलझ गये
मुक्त हुए जो बंधन से उलझे का दुख क्या जानेंगे।

अधरों पे सब गीत सजा लो आँसू की परवाह न कर,
अपना क्या है अपनी हर आँसू से रिश्तेदारी है।

तुमने जब-जब जो-जो चाहा इस जीवन में पाया है,
मेरे हिस्से में जीवन के माना खारा सागर है।
सरिताओं की मृदु लहरों ने तुमको गीत सुनाया है,
मेरे हिस्से की लहरों में माना दुख का सागर है।

मृदु लहरों में स्वयं नहा लो खारे की परवाह न कर,
अपना क्या है अपनी तो खारे से रिश्तेदारी है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       01 फरवरी, 2024


श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...