मेरे गीत अमर हो जाएं

मेरे गीत अमर हो जाएं

मेरे गीत कुँवारे अब तक, अधरों का मधुपान करा दो,
छू कर इन मधुमय अधरों को, मेरे गीत अमर हो जाएं।

कली-कली से शब्द चुने हैं, भ्रमरों से गुंजन माँगा है,
मन भावों को लिखने खातिर, रात-रात भर मन जागा है।
वर्ण-वर्ण में सजा भावना, प्रति चरणों में भाव सजाये,
मन को जो अनुरागी कर दे, साँसों ने वो गीत बनाये।

मेरे गीत अधूरे अब तक, साँसों का अनुमान करा दो,
छू कर इन मधुमय अधरों को, मेरे गीत अमर हो जाएं।

जब-जब जिसने जो-जो माँगा, रिक्त नहीं लौटाया हमने,
अंक भले था खाली अपना, जग पर नेह लुटाया हमने।
मिली भेंट में जग से जो भी, हमने उससे सपन सजाये,
तुमको भी कुछ दे पाऊँ मैं, प्रति पल कितने जतन बनाये।

रिक्त रहें न गीत मेरे ये, भावों का सम्मान करा दो,
छू कर इन मधुमय अधरों को, मेरे गीत अमर हो जाएं।

कितना जीवन बीत चुका है, शेष कहीं कुछ बचा हुआ है,
जीवन के अंतिम छंदों का, भाव अभी तक रुका हुआ है।
भावों की लाली जब सजती, तब सजती है कहीं महावर,
सुख की साँसों पर होता है, गीतों का अमरत्व निछावर।

अपने अधरों के कंपन से, छंदों के अरमान सजा दो,
छू कर इन मधुमय अधरों को, मेरे गीत अमर हो जाएं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       16 फरवरी, 2024

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