सभी से जीत जाता हूँ तुम्हीं से हार जाता हूँ
सभी से जीत जाता हूँ तुम्हीं से हार जाता हूँ
भले मजबूत दीवारें मुझे कब रोक पायी हैं
तेरी परछाइयों से भी मैं अकसर हार जाता हूँ
मुसाफिर जिंदगी अपनी कहाँ आराम पाती है
किनारे पास होते हैं तो अकसर हार जाता हूँ
नहीं कोई शिकायत है मुझे तेरी अदावत से
कहीं कुछ तो बचा होगा जो अकसर हार जाता हूँ
नहीं कोई गिला तुमसे नहीं कोई शिकायत है
लिखूँ जब गीत उल्फत के तो अकसर हार जाता हूँ
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08फरवरी, 2024
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