गीत लिख पाता नहीं हूँ

गीत लिख पाता नहीं हूँ

क्या व्याकरण से शब्द खोजूँ,
और कितना और सोचूँ।
मृदु रूप की इस रोशनी से,
मैं मृदुल मनमोहिनी से।

जब पास आ पाता नहीं हूँ,
गीत लिख पाता नहीं हूँ।

प्रिय सांध्य की इस रोशनी से,
मधुमास की चाशनी से।
मृदु नैन की इस भंगिमा से,
गात की इस नीलिमा से।

पुष्पित अधर की पंखुरी से,
आस भर इस अंजुरी से।
ये नैन के सपने सुहाने,
जब खड़ा सागर मुहाने।

जब पार जा पाता नहीं हूँ,
गीत लिख पाता नहीं हूँ।

सुन इस हवा का गीत मद्धम,
है निशा का मीत शबनम।
श्रृंगार बूँदों में मचलती,
है निशा पल-पल पिघलती।

ये भाव तब किसको सुनाएं,
जब पथिक पथ भूल जाए।
तब सोचता हूँ प्यार कर लूँ,
मैं हार को स्वीकार लूँ।

जब जीत मैं पाता नहीं हूँ,
गीत लिख पाता नहीं हूँ।

एकांत की रिमझिम घटाएँ,
बूँद मधुमित गीत गाएं।
बिजलियों से माँग भरकर,
बादलों के अंग लगकर।

आ नैन में सपना सजा कर,
चाहतों के गीत गा कर।
फिर कुछ नया अनुमान कर लूँ,
भाव का सम्मान कर लूँ।

अनुमान कर पाता नहीं हूँ,
गीत लिख पाता नहीं हूँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       12 फरवरी, 2024






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