बेटी जब मुस्काती है

बेटी जब मुस्काती है

नन्हें-नन्हें हाथों से जब, उँगली मेरी थामी थी,
पूर्ण हुई सारी आशायें, प्रभु से जो-जो माँगी थी।
तेरी नन्हीं मुस्कानों से, कितने सपने जागे थे,
किलकारी की मृदुल गूँज से, सभी अँधेरे भागे थे।

पायल की छम-छम से कितने, जीवन राग सुनाती है,
जन्म-जन्म के पुण्य फलित हों, बेटी जब मुस्काती है।

रामायण में लिखे छंद सब, बसते हैं मुस्कानों में,
वेदों की भी सभी ऋचाएँ, जिसके मीठे गानों में।
सुबह वंदना शाम आरती, गंगा सी निर्मल धारा,
तुतलाते बोलों के आगे, सभी व्याकरण है हारा।

तुतलाते रागों में जिसके, भोर वंदना गाती है,
जन्म-जन्म के पुण्य फलित हों, बेटी जब मुस्काती है।

वन उपवन सब खिल जाता है, चिड़ियों के आ जाने से,
जीवन में उत्सव आता है, बिटिया के घर आने से।
घर-घर में सोहर होता है, और बधाई बजती है,
कहीं दूर माँ के आँचल में, जब-जब बेटी सजती है।

देवत्व देव का खिल जाये, बेटी जब-जब गाती है,
जन्म-जन्म के पुण्य फलित हों, बेटी जब मुस्काती है।

खुशकिस्मत होता है जीवन, जिसने कन्यादान किया,
सात जन्म का पुण्य जिया है, देवों का वरदान जिया।
जिसके होने भर से जीवन, मंदिर सा बन जाता है,
जिसकी एक झलक मिलते ही, धूप छाँव बन जाता है।

जिसके चरण पड़े जब घर में, खुशियाँ दौड़ी आती हैं,
जन्म-जन्म के पुण्य फलित हों, बेटी जब मुस्काती है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       17 फरवरी, 2024

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