साँसों ने गुणगान किया

साँसों ने गुणगान किया

जब-जब देखा दर्पण मैंने, यादों ने मधुपान किया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

पलकों पे सपनों की सागर, अधरों ने मृदु गीत कहे,
बीते कितने जाने जीवन, यादों के मनमीत रहे।
प्रेम ग्रन्थ के इतिहासों ने, कितने ही सोपान जिया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

लहरों का नर्तन देखा है, जब-जब मौसम बदला है,
बीते चाहे कितने सावन, अपना हरदम पहला है।
हर सावन में मधुमासों ने, कितने ही अनुमान जिया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

बंधन से मन मुक्त हुआ है, आशा का संचार हुआ,
आना-जाना, खोना-पाना, जीवन का व्यवहार हुआ।
मुक्त बंधनों से होकर के, मन अपनी पहचान जिया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

आज शून्य से जीवन उठकर, अपनी परिधि बनाई है,
त्रिज्याएँ जब स्वयं चलीं तब, नापी सब गहराई है।
व्यास, परिधि, त्रिज्या से उठकर, वीथी का संज्ञान किया,
लिखे गीत यादों के दिल ने, साँसों ने गुणगान किया।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10 फरवरी, 2024

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