रेल हमारी
इनसे गुजरे रेल हमारी।
ले छोटी सी आशा मन में,
मुस्कानों को ओढ़ लिया है।
जंगल झाड़ी और सुरंगें,
पर्वत रस्ते मोड़ लिया है।
छुक-छुक करती भाव लुभाती,
गाँव-गाँव से अपनी यारी।
नदिया लहरें खेत पहाड़ी
इनसे गुजरे रेल हमारी।
लाखों सपने लिए साथ में,
नित-नित उम्मीदें गढ़ते हैं।
हर आने जाने वालों के,
मन के भावों को पढ़ते हैं।
हर रिश्तों से नेह हमारा,
अपनी सबसे रिश्तेदारी।
नदिया लहरें खेत पहाड़ी
इनसे गुजरे रेल हमारी।
हमने भारत के कण-कण को,
सदियों से खिलते देखा है।
जीवन रेखा हम भारत के,
हर सपना पलते देखा है।
भारत की आशाओं में है,
अपनी थोड़ी हिस्सेदारी।
नदिया लहरें खेत पहाड़ी
इनसे गुजरे रेल हमारी।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29 फरवरी, 2024
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