दिल की राहत

दिल की राहत

स्वप्न न थे पलकों पर कोई, और नहीं कोई चाहत थी,
तुमसे जब तक मिले नहीं थे, दिल में कितनी राहत थी।

शाम कहीं पर सुबह कहीं पर, रात कहीं भी कटती थी,
करते थे बस मन जो चाहे, महफ़िल अपनी जमती थी।
सुबह शाम का बोध नहीं था, और नहीं कोई आहट थी,
तुमसे जब तक मिले नहीं थे, दिल में कितनी राहत थी।

यार दोस्त से मिलकर कितने, सपने सदा सजाते थे,
सुनते थे हम कभी किसी की, अपनी कभी सुनाते थे।
अपनेपन के उस रिश्ते में, कितनी ही गर्माहट थी,
तुमसे जब तक मिले नहीं थे, दिल में कितनी राहत थी।

नाम हमारा दर्ज हुआ है, दुनिया के दीवानों में,
अपनों के भी बीच रहूँ तो, लगता हूँ अनजानों में।
भूल गया दिल कभी यहाँ के, दिलों पे बादशाहत थी,
तुमसे जब तक मिले नहीं थे, दिल में कितनी राहत थी।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       10 फरवरी, 2024

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