डाकिया जब खबर दे गया
रात भर दीपिका टिमटिमाती रही।
द्वार पर नींद से नैन उलझे रहे,
कोर की बूँद में मौन उलझे रहे।
रात के मौन को वो सहर दे गया,
डाकिया जब सुबह ये खबर दे गया।
आस की बूँदों में पाती भिंगोकर,
नैन ने देखा फिर सपना सँजोकर।
देख पाती हृदय ये मचलता रहा,
थी कहीं इक तपिश मन पिघलता रहा।
नेह की पंक्तियों को लहर दे गया,
डाकिया जब सुबह ये खबर दे गया।
खुली पाती चेहरा दिखाई दिया,
पंक्ति में भाव मन के सुनाई दिया।
दूरियों से नजर डबडबाती रही,
आस की तितलियाँ मन लुभाती रही।
आस को इक नई वो प्रहर दे गया,
डाकिया जब सुबह ये खबर दे गया।
दूरियाँ जो रहीं आज मिटने लगीं,
धुंध की बदलियाँ आज छँटने लगीं।
मन मिलन का नया गीत गाने लगा,
ऋतु पतझड़ में मधुमास छाने लगा।
शांत मन की नदी को लहर दे गया,
डाकिया जब सुबह ये खबर दे गया।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28 फरवरी, 2024
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