गांव की खुशबू।

गांव की खुशबू।       

नेनुआ, भिंडी औ तररोई  
क्या कुछ याद दिलाती है
छप्पर पर लटकी वो लौकी
मुँह में स्वाद जगाती है।

आलू के खेतों की क्यारी
हरी मटर की तरकारी
लहसुन,धनिया की वो खुशबू
घर आंगन महकाती है।

पालक,मेथी औ चौराई
बथुआ मन ललचाता है
दूर देश में बसे सभी को
गांवों की याद दिलाता है।

गन्ना के रस भीनी खुशबू
गुड़ की महक, राब की खुशबू
भूनी आलू सोंधी सोंधी
मन में लोभ जगाती है।

भिंडी, पटर, करेला, कटहल
सबके मन को भाती है
इनके बिना न भाए भोजन
पंगत में स्वाद जगाती है।

बाल्टी में आमों की खुशबू
केला औ अमरूद की खुशबू
जामुन, बेल, आंवला कितने
रोगों को दूर भगाती है।

आज शहर की जिंदगी हमको
देख कहां ले आयी है
बंद हुआ डिब्बों में जीवन
घुट घुट कर तड़पाती है।

पैसा चाहे खूब कमा लो
शहरों में महल बना लो
मगर गांव की खुशबू दिल से
निकल नहीं कभी पाएगी।

असली भारत गांव बसे है
सत्य नहीं मिट पायेगा
दूर देश में बसे सभी को
मिट्टी की याद दिलाएगा।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
       हैदराबाद
       30अगस्त,2020

मुझे याद है जरा जरा।




मुझे याद है जरा जरा।  

वो प्यार की हसीन डगर
चले जो बनके हमसफ़र
वो चाहतों की बारिशें
मुझे याद है जरा जरा।

वो ज़ुल्फ़ की घटा तेरी
कांधों पे बेसबब गिरी
पलकों की वो सिफारिशें
मुझे याद है जरा जरा।

तेरी अदा, वो शोखियों
लवों की वो सरगोशियां
बाहों की वो गुजारिशें
मुझे याद है जरा जरा।

वो वक्त की पाबंदियां
वो चीखती खामोशियाँ
वो दिल की मौन ख्वाहिशें
मुझे याद है जरा जरा।

माना कि हम मिले नहीं
साथ दूर तक चले नहीं
पर प्यार की वो राहतें
मुझे याद है जरा जरा।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       29अगस्त,2020

बिटिया को आशीष।

बिटिया को आशीष।    

ओ मेरी प्यारी बिटिया सुन
जीवन की सारी खुशियां सुन
देख तुझे पुलकित होता मन
हँसती घर की गलियां सुन।।

जिस पल तू घर में आई
जीवन की बगिया मुस्काई
मरुधर से इस जीवन में
बसंत बहार तू ले आई।।

उदास जो तू हो, मुरझाए
घर के सभी खिलौने सुन।
तेरे हँसने से हँसता हैं
घर के कोना कोना सुन।।

है आशीष हमारा तुझको
जग की सारी खुशियां पाए
जीवन का हर पथ सुंदर हो
कदमों में कलियाँ बिछ जाए।।

तेरी खुशियाँ ही मेरे
जीवन का है सपना सुन।
और नहीं कुछ माँगू प्रभु से
पूरा हो तेरा सपना सुन।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
 हैदराबाद
 29अगस्त, 2020

तुम्हारी याद।

तुम्हारी याद।             

भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।
कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा की
बात पुरानी ले आई।

इक दूजे के पहलू में हम
कितने सपने बुनते थे
ऐसे खोये इक दूजे में
और नहीं कुछ सुनते थे।

मधुर चाँदनी पावस की फिर
आज वहीं फिर ले आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।

उन यादों की परछाईं
मीठे सपनों की अँगनाई
पल पल मुझे छकाती औ
नेह जगाती ये पुरवाई।

पुरवाई के पवन झँकोरे
चाह वही फिर ले आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।

मुझे सुलाने की खातिर
साथ जगे सब चंदा तारे
नींद ने भी उम्मीद न छोड़ी
पलकों के आगे, पर हारे।

हार-जीत की इस दुविधा में
मिली मुझे बस रुसवाई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।

छोड़ मुझे जब जाना था
यादें वो सारी ले जाते
साथ गुजारी जो हमने
वो रात सुहानी ले जाते।

तेरे इस आने जाने से
जान पे मेरे है बन आई।
भींगी भींगी रात सुहानी
याद तुम्हारी ले आई।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
          हैदराबाद
          28अगस्त,2020

उम्र।

              उम्र।         


ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही
लिए चंद ख्वाहिशें, मौन मचलती रही।।

उम्र के हर ठौर पर, मुश्किलों का दौर पर
ख्वाहिशों का बोझ ले, खुद से ही लड़ती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

शब्दो से ही घाव थे, शब्दों से ही भाव थे
शब्द के वो मायने, उम्र बदलती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

दर्द का वो धुंधलका, साफ हो सके कभी
चाहतें लिए यही, आंख छलकती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

लोगों की भीड़ ने, पत्थर दिल कहा जिसे
मौन वो मोम सी, बूँद बूँद पिघलती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

हालात की चोट से, जितना रौंदते रहे
उतनी हो मुखर यहां, राह निखरती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

छोटा हो या हो बड़ा, सबका एक रूप है
एक रूप भाव ले, निष्पक्ष बढ़ती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

वक्त के साथ सब, अपनी राह देख लो
सूर्य की भी रोशनी, हर शाम ढलती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही।।

ना कर गुरुर तू, अपनी किसी बात पर
आखिरी सफर में उम्र, खुद से ही बिछड़ती रही।

ज़िंदगी की रेत पर, उम्र फिसलती रही
लिए चंद ख्वाहिशें, मौन मचलती रही।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अगस्त,2020

गीत-प्रेम दीवानी।

गीत- प्रेम दीवानी।  

मैं तो दीवानी हुई
सपनों की रानी हुई
डूबी मैं तुझमें ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

सुध-बुध भूली ऐसे
अपनी खबर ही नहीं
डूबी मैं तुझमें ऐसे
अपनी कदर ही नहीं।

आन बसे जो दिल में
ये सांसें सुहानी हुई।
डूबी मैं तुझमें ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

तुझसे शुरू हो करके
तुझपे ही खत्म हूँ मैं
नहीं और चाहत दिल में
बस तेरी चाहत हूँ मैं।

तेरे ही सपने देखूं
रातें सुहानी हुई।
डूबी मैं तुझमें ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

इतनी है चाहत मेरी
साथ तेरा न छूटे
रूठे भले जग सारा
मुझसे पिया ना रूठे।

पिय की खुशी ही मेरे
होठों की लाली हुई।
डूबी मैं तुझमें ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

मैं तो दीवानी हुई
सपनों की रानी हुई
डूबी मैं तुझमे ऐसे
ज्यूँ मीरा दीवानी हुई।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       26अगस्त,2020




चिट्ठी तेरे नाम की।



चिट्ठी तेरे नाम की।  

चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।
मन की सारी बातें उसमें
मौन, मगर सुन लेना तुम।

थोड़ी सी बातें अपनी हैं
थोड़ी जग की रुसवाई है
थोड़े शिकवे अपनेपन के
औ चाहत की गहराई है।

थोड़ी ही बातें हैं उसमें
पूरा मगर समझ लेना तुम।
चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।

साथ निभाने का वादा
राह दिखाने का वादा
भूल नहीं जाना प्रियवर
वादा निभाने, का वादा।   

वादों की पीड़ाओं को
मौन मगर सह लेना तुम।
चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।

उम्मीदों का आसमान तुम
जीवन में मेरे लाये
अपनेपन की बातों से
कितने ही सपने दिखलाये।

उन सपनों की गठरी को
पलकों से चुन लेना तुम।
चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।

जीवन, वो ही जीवन है
जो उम्मीदों पर चलते हैं
इक दूजे का साथी बनकर
सब पीड़ाएँ हरते हैं।

मन की सारी पीड़ाओं को
आज समझ फिर लेना तुम।
चिट्ठी तेरे नाम लिखी जो
उसको बस पढ़ लेना तुम।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अगस्त,2020

प्रतीक्षा।

 



प्रतीक्षा             

मौन प्रतीक्षारत जीवन
करता है स्वीकार यहां
पंथ चुनौती देता है
कर लो अंगीकार यहां।

इक विश्वास उमड़ता हर पल
पल पल प्रति जीवन पथ पर
और खींचता जाता हमको
मंगलकारी जीवन पथ पर।

जीवन अपना रेल की तरह
साथ-साथ चलते हैं सुख-दुःख
अगणित पड़ाव मिलते पथ में
पर जीवन नहीं बदलता रुख।

ठहरा जो भी पथ में इसके
लोक उसे फिर भूला है
चलना जिसने स्वीकार किया
जग की बाहों में झूला है।

ठहरे पल में रुक जाता है
हो जाता है जीवन वंचित
चलता रहता जो इस पथ में
धैर्य, पुण्य करता वो संचित।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
    हैदराबाद
    20अगस्त, 2020

सम्मान।

सम्मान         

तेज हवा के झोंकों ने
जीवन पर कितना वार किया
जीवन भी अलबेला ठहरा
हँस कर के स्वीकार किया।

हर भोर नई जिम्मेदारी
ले द्वार पलक का खटकाती
शाम सुहानी फिर आकर
हौले से खुद सहलाती।

शाम सुबह के बीच खड़ी
सपनों की सुंदर डोरी
कभी मिला है साथ सभी का
और कभी खुद नाते जोड़ी।

जिम्मेदारी की गठरी ले
जीवन पथ जो चलते हैं
उनके ही कांधों पर कितने
सुंदर सपने पलते हैं।

इनकी लहरों से भींगे जो
जीवन तर कर जाते हैं
मिलता है सम्मान जगत में
प्रेम सभी से पाते हैं।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19अगस्त,2020

श्वेत भाव।

   श्वेत भाव             

श्वेत गगन हैं, श्वेत मेघ हैं
श्वेत धवल हैं हिम की बूंदें
श्वेत भाव ले प्रकृति सारी
बरसाती अमृत की बूंदें।

श्वेत रंग जब जलद बरसता
रंग धरा में तब आता है
धरती तब पुलकित होती है
रंग हरा तब मिल पाता है।

हिमगिरि से सागर के तट तक
श्वेत चांदनी फैली है
इतना श्वेत चरित्र है जग का
फिर गंगा क्यों मैली है।

श्वेत वसन पहचान देश की
श्वेत भाव मुस्कान देश की
श्वेत चित्त है शांति प्रदाता
सुख, समृद्धि, सम्मान देश की।

फिर क्यों रंग बदलता है
इंसानों का जीवन इतना
आओ इससे हम सीखें
हर रंगों में खुद ढलना।।

 
 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद 
        19अगस्त,2020

एक प्रश्न।

एक प्रश्न         

पूछ रहा है देश हमारा
लाल किले की प्राचीरों से
कब तक वादे बहलायेंगे
निर्धनता को तकदीरों से।

पूछ रही है सूखी आंतें
सत्ता की अंगनाई से
भारत कब बाहर आएगा
निर्धनता की गहराई से।

पूछ रहे हैं गांव के रास्ते
शहरों की चिकनी सड़कों से
उनसे मेल कभी क्या होगा
बिन गड्ढ़ों औ बिन झटकों के।

पूछ रही टपकती खपरैल
सत्ता के रणवीरों से
मुक्ति इनको कब मिलेगी
शीत,ग्रीष्म व बरसातों से।

पूछ रही सागर की लहरें
नदियों से औ तटबंधों से
मुक्त धरा कब होगी अपनी
जाति, धर्म वाले फंदों से।

पूछ रहा है खड़ा हिमालय
सत्ता के गलियारों से
कब तक भारत छलनी होगा
गद्दारों के वारों से।

पूछ रही सरहद की आंखें
भारत के जिम्मेदारों से
कब तक शरण मिलेगी भीतर
कुछ जयचंदी व्यवहारों को।

जाने कितने प्रश्न दबे हैं
जन गण मन के सीने में
इन प्रश्नों का हल मिलने तक
मुश्किल होगा फिर जीने में।

भृष्ट आचरण सता लालच
मुद्दों से बस भटकाएगा
विकास सब बाधित होगा
हाथ नहीं कुछ आएगा।

इन मसलों के हल की खातिर
जन गण को ही उठना होगा
अपने अधिकारों की सुरक्षा
अब हमको ही करना होगा।

लोभ मोह लालच से हटकर
जीवन हमको चुनना होगा
नई सदी के नूतन भारत
का सपना हमको बुनना होगा।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
 हैदराबाद
 17अगस्त,2020

श्री राम महिमा।

🙏🌹श्री राम महिमा 🌹🙏     

🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
   
 ।।दोहा।।

राम नाम के जाप से, मिलती शक्ति अपार।
जो सुमिरै नित नाम ये, मिले ज्ञान भंडार।।

 ।।चौपाई।। 

राम नाम है जीवन नायक, नित्य जपो है शुभ फल दायक।
इससे ही है जीवन सुरभित, सकल विश्व होता है पुलकित।
इनके जप से कष्ट मिटे हैं, रोग दोष संताप छंटे हैं।
हर घर में खुशहाली आती, प्रेम भावना सबमें लाती।
दुःख दरिद्रता दूर मिटे हैं, जो भी इनकी राह चले हैं।
रिश्तों की महिमा समझाई, तब पुरुषोत्तम नाम कहाई।। 

  ।।दोहा।।

इनसे ही जीवन मिला, मिला सभी को ज्ञान।
नीति प्रज्ञ का मार्ग मिला, मिला धर्म को मान।।

 ।।चौपाई।।

झूठ नहीं जीवन में बोले, हर पल सोच समझ कर बोले।
बात कही सो सीधी वाणी, संग चले इनके कल्याणी।
जिसने अपना जीवन वारा, राम नाम का बना सहारा।
जिनकी किरपा यदि मिल जाये, मानस का जीवन तर जाए।
इनसे जग को ज्ञान मिला है, रिश्तों का सम्मान मिला है।
जीवन क्या हमको समझाया, त्याग समर्पण पाठ पढ़ाया।

   ।।दोहा।।

इनकी किरपा से बने, जीवन ये खुशहाल।
इनके ही आशीष से, मिटे सकल अँधकाल।।

   ।।चौपाई।।

धन्य धन्य है भारत भूमी, जिसने राम कृष्ण को जाया।
गीता का उपदेश दिया है, जीवन सार हमें समझाया।
राम राम है नाम अपारा, सकल जगत ने है स्वीकारा।
जिनकी महिमा कही न जाए, लेखनी शब्द कहां से लाए।
इतनी किरपा सब पर करना, अवसाद सकल जगत का हरना।
जीवन सब सुरभित हो जाए, खुशियों की कलियाँ मुस्काए।

   ।।दोहा।।

किरपा जिसपर राम की, जीवन बने महान।
घर घर बाढ़े प्रेम धन, हो सबका सम्मान।।

   ।।चौपाई।।

नाम अनेकों अकथ कहानी, बहु विधि जाए कथा बखानी।
निर्गुण सगुण बिच नाम सुंदर, जपो इसे हो जीवन सुंदर।
राम नाम जपि जागहिं जो भी, छूटहिं प्रपंच बनते योगी।
ब्रह्म सुखहि सब अनुभव कीन्हा, राम नाम रस जीवन पीन्हा।
सच्चे मन से नाम पुकारे, मिटे कुसंकट होहि सुखारे।
ज्ञान ध्यान सब कुछ मिल जाये, सकल मनोरथ भाव जगाए।

    ।।दोहा।।

राम नाम विश्वास है, राम नाम निष्काम।
राम नाम से जग चले, बनते बिगड़े काम।।
राम नाम है बड़ यहां, देता शक्ति अपार।
इससे ही होता यहां, सकल जगत उद्धार।।
राम नाम से प्रीत कर, राम नाम से रीत।
राम नाम से सब मिले, राम नाम से जीत।।

 🕉️सियावर रामचंद्र की जय🕉️
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      16अगस्त, 2020

भारत महिमा।

भारत महिमा

हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

भारत की इस माटी पर
क्यों ना हो अभिमान हमें
राह दिखाई जीने की
दिलवाया सम्मान हमें।

है उन्नत इतिहास हमारा
दुनिया ने जिसको स्वीकारा
जिसके हर इक कदमों पर
दुनिया ने तन मन धन वारा।

जिसने सबको राह दिखाया
नैतिकता है क्या समझाया।
ऐसी धरती की माटी पर
हम नित नित शीश झुकाते हैं।

हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

दुनिया को इसने राम दिए
नानक, बुद्ध महान दिए
दुनिया को गीता समझाया
अच्छे बुरे की राह बताया।

इसने वेद पुराण दिए
जग को चाणक्य महान दिए
हमें विदुर की नीति सिखाई
मानस ग्रंथ महान दिए।

ऐसी पावन माटी को हम
नित नित शीश झुकाते हैं।
हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता का
नित नूतन प्रतिमान दिए
नालंदा औ तक्षशिला संग
काशी, मथुरा से ज्ञान दिए।

जिसने प्रेम सिखाया जग को
हम जिससे जीवन पाते हैं।
हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

राणा प्रताप, लक्ष्मीबाई
वीर शिवाजी, नानाजी
तोड़ गुलामी की जंजीरें
अलख जगाई आज़ादी की।

राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह
बिस्मिल, सुभाष, आजाद दिए
लाल, बाल, पाल दिए हैं
जवाहर, गांधी महान दिए।

ऐसी पावन जननी को हम
नित नित शीश झुकाते हैं।
हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।

इस माटी की गौरव गाथा
अनजाना क्या गा पायेगा
इसका इक इक कण पावन है
दुश्मन समझ न पायेगा।

जिनके मंसूबे बेमानी है 
उनको है एलान यहां
वक्त अभी है बदलें खुद को
वरना मुश्किल राह यहां।

भारत ये भूभाग नहीं है
तुम जिसकी चाहत करते हो
वक्त अभी संभालो खुद को
बेमौत यहां क्यूँ मरते हो।

कण कण में है साहस इसके
हर बच्चा बच्चा शोला है
शत्रु के नापाक इरादों को
बस तलवारों से तोला है।

हैं अहिंसा के अनुयायी हम
पहला वार नहीं करते
स्वाभिमान को छेड़े कोई
हम स्वीकार नहीं करते।

ऐसी पावन धरती का
गुणगान यहां हम गाते हैं।
हम भारत के वासी हैं
भारत का गीत सुनाते हैं।।


✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
     हैदराबाद
     15अगस्त, 2020

अभिनय



अभिनय              

दुनिया ये इक रंगमंच है
नित नूतन दिखता व्यवहार
अभिनय की श्रेणी पर निर्भर
जीवन के सारे व्यापार।।

कोई रोता कोई हंसता
कोई सोता कोई जगता
हर मौके पर सबको अपना
अभिनित अभिनय ही है जँचता।

दूजे का सत भी लागे है
दोयम दर्जे का व्यवहार।
दुनिया ये इक रंगमंच है
नित नूतन दिखता व्यवहार।।

घूमो सारे बाजारों में
चौराहों या चौबारों में
हर चौक पर लाखों चेहरे
चिन्हित इच्छित सबका व्यवहार।

अभिनय सफल वही है समझो
जो ढल जाए मौसम अनुसार।
दुनिया ये इक रंगमंच है
नित नूतन दिखता व्यवहार।।

✍️ ©️अजय कुमार पाण्डेय
   हैदराबाद

आज़ादी- इक जिम्मेदारी

आज़ादी- इक जिम्मेदारी


गूंजी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है
जन जन को आह्लादित कर दे
ऐसा भाव जगाना है।।

देशप्रेम का घृत हो जिसमें
भाईचारा बाती हो
जिसकी हर लौ की लहरें
गीत प्रेम का गाती हों।

ऐसे लौ की धारा से
जीवन रोशन कर जाना है।
गूंजी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

आवाज़ उठे आज यहां जो
भारत की पहचान बने
भूले बिसरे इतिहासों का
फिर नूतन सम्मान बने।

अपने उन इतिहासों को
फिर इक बार बताना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

वार करे जो व्यभिचार पर
अनैतिकता पर, भ्रष्टाचार पर
काटे बेड़ी अवसादों की
वार करे जो जातिवाद पर।

एक सूत्र में देश पिरोए
ऐसी ललकार जगाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

रोटी-कमल प्रतीक बना था
आज़ादी के दीवानों का
जीवन रण संगीत बना था
आज़ादी के परवानों का।

उनके उस दीवानेपन पर
नित नित शीश झुकाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

भूख, गरीबी, बेकारी पर
जीवन की हर लाचारी पर
मूलभूत सुविधाएं सारी
गिरती शुचिता, बीमारी पर।

कुव्यवस्था जो भी फैली है
उनको दूर भगना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

कदम कदम पर ताक लगाए
कितने हैं शत्रु सूंघ रहे
खंडित भारत की चाहत ले
सालों से हैं ऊंघ रहे।

ऐसे सारे शत्रु को हमको
चिर-परिचित नींद सुलाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

झूठे वादे तड़पाते हैं
लोभ-प्रलोभन बहलाते हैं
कठपुतली जैसा करके
सबका जीवन दहलाते हैं।

ऐसे झूठे आडंबर का
तोड़ हमें समझाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है। 

आज़ादी उपहार नहीं है
ये इक जिम्मेदारी है
इसके समुचित संचालन में
सबकी हिस्सेदारी है।

आज़ादी के अहसासों को
सबमें हमें जगाना है।
गूंजी थी जो सन सत्तावन में
फिर आवाज़ उठाना है।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
 हैदराबाद
 13 अगस्त, 2020

व्यंग्य

व्यंग्य        

चुप चुप से क्यों बैठे हो
क्या कोई बात तो नहीं
पहले भी मिले हैं हम
ये कोई पहली मुलाकात तो नहीं।

ये कोई पहली दफा तो नहीं
पहले भी तो मिले थे ऐसे ही कहीं
पांच साल बाद ही सही, मिले तो हैं
इसमें कोई नई बात तो नहीं।

माना वादे पुराने अभी पूरे नहीं हुए
वादों का क्या, इक बार और सही
ये तो राजनीति का तसव्वुर है
कोई नई बात तो नहीं।

संसद से सड़क तक चर्चा आम है
जाति-धर्म की बात, संविधान का अपमान है
मगर वोट के लिए सब चलता है
जो ये तिकड़म नहीं अपनाता
वो फिर हाथ मलता है।

अब तो वादों व बातों की
आदत सी हो चुकी है
सालों से ढोते ढोते वादों की गठरी
लोकतंत्र की लानत तक हो चुकी है।

अब तो इसमें ही मजा आने लगा है
इसके बिना चुनावी भाषण
मंच से, सजा सा लगने लगा है।

अरे अब हम तो वादों से ही
खुश हो लिया करते हैं
पहले मौन समझने की कोशिश करते थे
अब मन को समझने की कोशिश करते हैं।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
      हैदराबाद

ज़िंदगी-इक सफर

ज़िंदगी-इक सफर


ज़िंदगी है इक सफर, आये फिर चले गए
पास है वो आपका, दूर- कुछ निकल गए।

हर कदम पे प्रश्न है, जवाब सिर्फ आप हैं
लोक के निगाह का, निर्वाह सिर्फ आप हैं।
आप के जवाब से, कितने दिल मचल गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

किसी ने कुछ कहा नहीं, क्या सुना पता नहीं
दोष शून्य का है सब, कुछ हुआ पता नहीं।
ऐसा खेल खेलकर वो मुकर मुकर गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

चोट जो लगी कहीं, तो दर्द क्या हुआ कहीं
आंँख के जो अश्रु थे,मचल के क्यों गिरे नहीं।
आंँख के वो अश्रु भी, आंँख से चले गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

पूछते हैं लोग भी, क्या हुआ था उस घड़ी
क्या कहूँ मैं किसे, दिल पे जो मेरे पड़ी
दिल की जो भी दर्द थे ,
मौन हो निकल गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

जिम्मेदारियों का बोझ, कांँधों पे लिये रहे
हँस चले कदम-कदम,
उफ्फ मगर नहीं किये
उफ की आस थी जिन्हें, आस से बिखर गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।

दूर से ही देखता हूँ, मौन सब मैं सोचता हूँ
हुई प्रथम ख़ता कहाँ, स्वयं से ही पूछता हूँ,
स्वयं के भी प्रश्न सारे, खुद से चुप टले गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये-फिर चले गए।।

 राह बाकी  एक है
 चाह  भी तो एक है
जो फासले हैं दरमियाँ
 निशान उनके अब भी हैं

फासलों के चोट सारे, वक्त संग गुजर गए
ज़िंदगी है इक सफर, आये- फिर चले गए।।
 
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
     हैदराबाद
     09अगस्त,2020

नाजुक एहसास।

नाजुक एहसास। 

गुमसुम कहीं वो घबराती तो होगी
मेरे गीतों को वो गुनगुनाती तो होगी
याद आती होंगी जब भी बातें पुरानी
आंखों में सही वो शर्माती तो होगी।

वो बीते पल याद आते तो होंगे
गुजरे वो कल याद आते तो होंगे
चले साथ में दो कदम जो कभी
वो रास्ते तुम्हें याद आते तो होंगे।

महफ़िल में सखियां फिर बुलाती तो होंगी
पुराने नामों से चिढ़ाती तो होंगी
तन्हाई में जब भींगती होंगी पलकें
चुपके से खुद को समझाती तो होंगी।

पुरवा के झोंके फिर सहलाते तो होंगे
मीठी छुवन की याद दिलाते तो होंगे
संभालती होगी भले अपना आँचल
ये झोंके मगर लहराते तो होंगे।

सूरज वहीं फिर ढलता तो होगा
देख उसका मन मचलता तो होगा
मेरी याद अब भी आती तो होगी
पलकों से आंसू छलकता तो होगा।

गुमसुम कहीं वो घबराती तो होगी
मेरे गीतों को वो गुनगुनाती तो होगी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
   हैदराबाद
   09अगस्त,2020

चौपाई।

     चौपाई           

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राम सिया राम सिया राम              
        जय जय राम।  
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।       
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दीप जलाओ हो उजियारा
मिटा आज अंधेरा सारा।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
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मंगल गीत सुनाओ सारे।
आये हैं प्रभु राम दुआरे।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
पांच अगस्त यह तिथि पुनीता।
हरषित जन अभिजीत हरिप्रीता।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
मंदिर का है काम पुनीता
हिल मिल गाओ मंगल गीता।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
इतिहास बना आज अवध में।
मिला राम को धाम अवध में।।
राम सिया राम सिया राम
         जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
हरषित भए सभी नर नारी।
पुण्य भई है धरती सारी।।
राम सिया राम सिया राम
        जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
खग मृग और पशु पक्षी प्यारे।
झूमे नाचे गायें सारे।।
राम सिया राम सिया राम
      जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
राम राम है नाम अपारा।
सकल जगत ने है स्वीकारा।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
कहे "अजय" यह जनम सुनहरा।
आज हटा है प्रभु का पहरा।।
राम सिया राम सिया राम
      जय जय राम।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
राम कथा सुंदर सुविचारी
शोक मिटे मन होए सुखारी।।
राम सिया राम सिया राम
       जय जय राम।।
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 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
         हैदराबाद 
         05अगस्त,2020

अपनी बात अलग है थोड़ी।



 अपनी बात अलग है थोड़ी। 

कितने लोगों को देखा है
औरों के जीवन अपनाते
कितने ही लोगों को देखा
इतिहास पुराना दुहराते।

पर जीवन के रण में मैंने
अपनी छाप अलग है छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

चलते हैं सब राहों में
लिए हाथ को हाथों में
मैंने जीवन जीना सीखा
आंधी में तूफानों में।

तूफानों में कश्ती डूबी
लेकिन आस कभी ना छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।

प्यार किया जब प्यार किया
दिल और जान सब वार दिया
रिश्तों की मर्यादा समझी
जैसा जो था स्वीकार किया।

कभी नहीं छोड़ा कुछ मैंने
बस रिश्तों की डोरी जोड़ी
चाहे कोई कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

जो भी हूँ मैं जैसा भी हूँ
अपनी दुनिया में जीता हूँ
जितने घाव मिले जीवन में
उन घावों को मैं सीता हूँ।

पैबंद लगे उन घावों पर
मलहम की आस न छोड़ी
कोई चाहे कुछ भी बोले
अपनी बात अलग है थोड़ी।।

 ✍️©अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01अगस्त,2020

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...