फागुन के रंग।

🙏🌹होली की हार्दिक शुभकामनाएं🌹🙏

फागुन का रंग।

नयनन की भूल भुलइया में
पिय अइसन तुमरे खोय गयी
सुध बुध बिसराय गयी मैं तो
बिन बंधन तुमरी होय गयी।।

रात रात भर जागत हैं 
इन अँखियन में अब नींद नहीं
इक तुमरो संग सुहात इसे
दूजा अब कउनो मीत नहीं।

अंग लगा लो अब तो हमको
रंग में तुमरे खोय गयी।
सुध बुध बिसराय गयी मैं तो
बिन बंधन तुमरी होय गयी।।

यहि फागुन फाग रचो अइसन
मन मोहन मोय श्रृंगार करो
रँग जाऊँ तुमरे रंगन में
मोहे कछु अइसन प्यार करो।

अइसन रंग लगा हिय पर
सब रंगन को मैं खोय गयी
सुध बुध बिसराय गयी मैं तो
बिन बंधन तुमरी होय गयी।।

 ©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28मार्च, 2023

हो संभव साथी बन जाना।।

हो संभव साथी बन जाना।।

और नहीं कुछ चाहूँ तुमसे, मुझपर अहसान यही करना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।

शांत अचेतन मन में जब तुम्हारे होने का भान उठे
सांध्य क्षितिज सिमटे आँचल में जब अपनेपन का गान उठे
शब्द सिमट अधरों पर आयें तब उनकी प्रति ध्वनि बन जाना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।

सर्द रात जब चंदा सिमटे जब तारों के अरमान जगे
जब साँसों के मद्धम लौ पर अरमानों के मधुमास जगे
तब मेरे एकाकीपन में आकर नव दीप जला जाना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।

जब पीड़ा की मौन तपिश में अंतर्मन ये उलझा जाये
मधु स्मृतियाँ जब स्वयं पथिक बन राहों में उलझी जायें
मधु स्मृतियों को पुष्पित कर दे वो नूतन पंथ सजा जाना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।

जीवन की गोधूली में जब साँसों की डोरी मद्धम हो
धुँधली-धुँधली बेला में जब रिश्तों की डोरी मद्धम हो
तब रिश्तों की डोर थामना अरु नूतन राह दिखा जाना
मेरे मन के मौन सफर में, हो संभव साथी बन जाना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27मार्च, 2023

संग-संग जब हम गाएंगे।।

संग-संग जब हम गाएंगे।।

निज सपनों के पुण्य पंथ ये
सुरमित सुरभित हो जाएंगे
संग-संग जब हम गाएंगे।।

बाट जोहती इन पलकों को
सुख सपनों से मैं बाँधूँगा
उर में उपजे भाव सभी जो
गीतों में उनको साधुंगा
बादल की उजली किरणों से
सपने सारे सज जाएंगे।।

दिल ये अब तक रहा उपेक्षित
मन वीणा के मृदु तारों से
रहा अपरिचित जीवन अपना
वीणा के मृदु झंकारों से
गूँजेंगे सब भाव हृदय के
गीत अधर पर सज जाएंगे।।

आशाओं के पंथ सजा कर
अपने सपनों को साजेंगे
चंचल मन के भाव सुनहरे
साथ-साथ में हम साधेंगे
चंदा की किरणों से सजकर
स्वप्न लोक तक हम जाएंगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27मार्च, 2023


लम्हों का दर्द।

लम्हों का दर्द।  

कुछ शब्द गिरे थे उस दिन शायद क्या तुमको अहसास नहीं
कुछ मुझसे छूटे कुछ तुमसे शायद वो लम्हे अब भी पास वहीं
गिरे वहीं पर सपने शायद जब नींद बहुत ही गहरी थी
दोनों के हाथों से गिरकर एक उम्मीद वहीं कहीं ठहरी थी
शब्दों का क्या है कब बिगड़े और कभी फिर बन जाये
घाव कभी देते हैं गहरे और कभी मलहम बन जाये
जब परदेसी हवा चली मौसम का रुख तब बदल गया
जो वक्त हाथ में ठहरा लगता लम्हों में ही फिसल गया
पलकों में कुछ अश्रु ठहर कर चौखट को यूँ देख रहे
मौन सिसकती आवाजों में अपनेपन को खोज रहे
जाने थी वो कौन घड़ी जब मन से मन का मान गिरा
औरों की बातों में आकर खुद अपना सम्मान गिरा
एक कोख के रिश्तों पर कुछ शब्द किसी के भारी क्यूँ
लम्हों के कुछ दोषों से ये सदियाँ हरदम हारी क्यूँ
उगता सूरज रोज निकलता साँझ ढले छिप जाता है
जाते-जाते जीवन के वो कुछ सीख हमें दे जाता है
रात अँधेरी भले घनेरी लेकिन कितनी देर रही है
खिली किरण जब पुनः भोर की रातें कितनी देर रही हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25मार्च, 2023

जीवन पथ से नाता।

जीवन पथ से नाता।  

सुख के कभी पुष्प खिलते हैं
कभी दुखों के अँधियारे
पथ जीवन का शीतल लगता
कभी लगे ये अंगारे
सुख-दुख जीवन के दो पहलू
इक आता इक जाता है
जीवन कब ये रहा अछूता
इनसे सबका नाता है।।

कभी बिना माँगे मिल जाता
कभी चाहतें दूर हुईं
कभी आस चौखट पर आई
कभी स्वयं ही दूर हुई
कभी खिली उम्मीदें सारी
जिनमें मन हँसता गाता
है शिथिल कभी गतिशील कभी
जीवन यूँ बीता जाता।।

कभी अधर पर गीत सुनहरे
कभी आह के सुर सजते
कभी विरह के गीत सताते
कभी प्रेम के सुर सजते
बिछड़ गया जो कभी मिलेगा
मन खोता, मन फिर पाता
नहीं सफर ये रहा अकेला
इससे सबका है नाता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25मार्च, 2023




मुक्तक- सलीका, प्रतिकीर्ति

मुक्तक- सलीका, प्रतिकीर्ति

कहूँ कैसे के दर्द-ए-गम यहाँ कैसे भुलाया है
कभी गीतों में गजलों में कभी छंदों में गाया है।
बहुत एहसान उन जख्मों का जिनमें जिंदगी रोई
सलीका जिन्दगी जीने का तब जाकर के आया है।।

बहुत मुश्किल नहीं है कि मैं लहरों से उलझ जाऊँ
लिखूँ मैं भाव खुद के और खुद में ही सुलझ जाऊँ।
है प्रतिकीर्ति, जो गढ़ता हूँ मन के भाव पृष्ठों पे
इशारा हो मचल जाऊँ इशारा हो सँभल जाऊँ।।


©✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         24 मार्च, 2023

रीत को गिरने न देंगे।।

 रीत को गिरने न देंगे।।

आधुनिकता की लहर में बह चले चाहे किनारे
किन्तु भावों के समर में रीत को गिरने न देंगे।।

मन के भावों को कहे जो शब्द वो प्रवाहमय है
आस का अहसास है वो गान का निर्झर निलय है
तान मुरली की मधुर है रास है संगीत है वो
भावों की अभिव्यक्ति है प्रीत का अनुपम विलय है
शब्द के संसार से अनुगीत को गिरने न देंगे
आज भावों के समर में रीत को गिरने न देंगे।।

पंछियों ने तान देकर गीत का आँगन सजाया
आज ऋतुओं ने मचलकर प्रीत का मधुगीत गाया
वेदनायें मिट गईं सब अवसाद के बादल छँटे
शब्द का सानिध्य पाकर मौन ने मधुमास गाया
मौन मन के भाव से मधुगीत को गिरने न देंगे
आज भावों के समर में रीत को गिरने न देंगे।।

गीत मन के भाव सारे और जीवन आचरण हैं
सत्य हैं सौंदर्य हैं ये संहिता के अवतरण हैं
गीत हैं ये वेद मन के कल्पनाएं उपनिषद हैं
पंक्ति बन जो सज रहे हैं गीत जीवन का वरण हैं
मुक्त हों श्रृंगार चाहें गीत को गिरने न देंगे
आज भावों के समर में रीत को गिरने न देंगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23मार्च, 2023

गीत हो छंद हो या गजल हो कोई, मिले जब समय गुनगुना लीजिए।।



मन के भाव।

गीत हो छंद हो या गजल हो कोई, मिले जब समय गुनगुना लीजिए
भाव को रोकना जब मुनासिब न हो, भाव मन के अपने बता दीजिए
न रुका है समय न रुकेगा कभी, मन में जो कुछ दबी हो जता दीजिए।।

कहने को बात कितनी है कैसे कहें , कुछ तो सलीका बता दीजिए
आये मन पास कैसे सजन आपके , मुझे अपने दिल का पता दीजिए
हर खता आपकी है स्वीकार अब , नई फिर से कोई खता कीजिए।।

प्रतीक्षा के पल और कब तक रहें , नजर से नजर को छुआ कीजिए
रहें और कब तक अकेले यूँ ही, ले के करवट मुझे अब बता दीजिए
दीदार-ए-दिल जब खता कुछ नहीं , तो दिल को बता कर दुआ कीजिये।।

गीत हो छंद हो या गजल हो कोई, मिले जब समय गुनगुना लीजिए।।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद 
        22मार्च, 2023


भावों के गाँव से तू, कुछ पंक्तियाँ उधार ले।।

भावों के गाँव से तू, कुछ पंक्तियाँ उधार ले।।

अपने मन में प्रेम की तू कश्तियाँ उतार ले
चार पल की जिन्दगी है हँस के तू गुजार ले
कौन जाने कंठ में कब शब्द का घट शून्य हो
शब्द के प्रवाह में खुद को पार तू उतार ले
भावों के गाँव से तू, कुछ पंक्तियाँ उधार ले।।

ले आये क्या यहाँ जो छूटने का गम तुम्हें
क्या रहा यहाँ हमेशा टूटने का गम तुम्हें
कौन जाने कब भरे कब अंक जाने शून्य हो
इस शून्य के प्रभाव में खुद स्वयं को विचार ले
भावों के गाँव से तू, कुछ पंक्तियाँ उधार ले।।

कब जाने छोड़ दे कहाँ जिंदगी ये साथ भी
छूट कर बिछड़ न जाये राहों में कहीं कोई
हँस रही है जो नजर न जाने कब वो शून्य हो
मौन मन नहीं रहे फिर साँसों में श्रृंगार ले
भावों के गाँव से तू, कुछ पंक्तियाँ उधार ले।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       21मार्च, 2023

चाँद पकड़ कर ले आता।

चाँद पकड़ कर ले आता।  

यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।

काश कभी चंदा के रथ तक मेरे हाथ पहुँच पाते
काश सितारों के आँगन तक मेरे सपने जा पाते
काश पलक कोरों को सुख सपनों से नहला पाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।

लिखता मन के गीत सुनहरे भावों को जो सुख देतीं
ऐसे शब्द पिरोता उनमें सारे दुख जो हर लेती
शब्दों के गुलशन से कलियाँ चुनता मन को बहलाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।

जुगनू से बातें करता तारों से मैं पंथ सजाता
रात अँधेरी चौखट पर उम्मीदों के दीप जलाता
जिन पलकों के सपने वंचित उन पलकों को सहलाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।

दूध भात की एक कटोरी दादी-नानी का आँचल
एक निवाला हाथों से खाने को मन अब भी पागल
तुतलाती बोली जब सुनता तारों का मन ललचाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।

इक-इक पल से मोती चुनता गुहता यादों की माला
रखता उनको कहीं छुपाकर मन के बीच बना आला
सपने नयन द्वार जब आते माला उनको पहनाता
यदि ये संभव होता मुझसे चाँद पकड़ कर ले आता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       15मार्च, 2023

अर्पित करने आया हूँ।

अर्पित करने आया हूँ।  

शब्दों के गुलशन से चुनकर कोमल कलियाँ लाया हूँ
गीतों में कुछ पुष्प सजाकर अर्पित करने आया हूँ।।

नहीं पास है सोना चाँदी धन दौलत की चाह नहीं
कल क्या होगा किसने जाना मुझको भी परवाह नहीं
वर्तमान से मिला मुझे जो पूजित करने आया हूँ
गीतों में कुछ पुष्प सजाकर अर्पित करने आया हूँ।।

दुनियादारी बोध नहीं है बीते का अफसोस नहीं
अच्छे का नतमस्तक हूँ मैं बुरा किसी का दोष नहीं
जग से कितना कुछ पाया है अर्हित करने आया हूँ
गीतों में कुछ पुष्प सजाकर अर्पित करने आया हूँ।।

लिखे गीत जो मन को भाये जिसने पग-पग बहलाया
पीड़ा के आवेगों में भी जिसने मन को सहलाया
उन्हीं पँक्ति के आदर्शों को अर्चित करने आया हूँ
गीतों में कुछ पुष्प सजाकर अर्पित करने आया हूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15मार्च, 2023

कुछ नूतन कर जाओ।

कुछ नूतन कर जाओ।  

रीत पुरानी बहुत हुई नई रीत के पंथ बनाओ
युग नई दिशाएं पाये ऐसा कुछ नूतन कर जाओ।।

मिले प्रेरणा इस जग को पुण्य पंथ की ओर चरण हो
मुक्त हृदय, भाव प्रवण हो नव गीतों का आज वरण हो
जीवन के सब पंथ सजे काँटों में भी पुष्प खिलाओ
युग नई दिशाएं पाये ऐसा कुछ नूतन कर जाओ।।

बीता पीछे छूट गया आने वाला वक्त नया है
हर युग की नई कहानी पीछे बोलो कौन गया है
नई कहानी नए राग में इस जग को आज सुनाओ
युग नई दिशाएं पाये ऐसा कुछ नूतन कर जाओ।।

अज्ञानी का तर्क सर्वदा अंतस को दुख देता है
तर्क ज्ञान का मिले जहाँ पर भावों को सुख देता है
ज्ञान श्रेष्ठ संपत्ति जगत में अपने गीतों में गाओ
युग नई दिशाएं पाये ऐसा कुछ नूतन कर जाओ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15मार्च, 2023

पंखुरी गुलाब की सुन तो क्या कह रही।।

पंखुरी गुलाब की सुन तो क्या कह रही।।

प्रेम की छुअन है या गीत कोई गा रहा
मौन मन के भाव को राग में सुना रहा
खिलखिला उठे सभी भाव आज प्यार के
पल विरह के बने भाव अब श्रृंगार के
चाहतों की बात कुछ सुन जरा कह रही
पंखुरी गुलाब की सुन तो क्या कह रही।।

चाँदनी की रश्मियाँ देखो गुनगुना रहीं
जो रुकी बात थी पल में सब सुना रही
रात ने भी रागिनी को मधुर साज दी
तारों ने जुगनू में रश्मियाँ साज दी
रात की रश्मियाँ सुन जरा कुछ कह रहीं
पंखुरी गुलाब की सुन तो क्या कह रही।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        14मार्च, 2023

मन की बातें।

 मन की बातें।  

आदि गोमती तट पर जन्मा गंगा तट पर पला बढ़ा
पृष्ठों पर कुछ भाव सजा अपने मन की कह लेता हूँ।।

मर्यादा की खड़ी लकीरें मेरे मन को भाती हैं
अवध धाम की सोंधी खुशबू छन-छन जिनसे आती है
आदि संस्कृति का मैं पूजक नीति धर्म का पालक हूँ
माँ गंगा की गोद पल रहा मैं नन्हा सा बालक हूँ।।

अवध निवासी भक्त राम का हँसता हूँ कह लेता हूँ
पृष्ठों पर कुछ भाव सजा अपने मन की कह लेता हूँ।।

काशी की गलियों में बीता बचपन यौवन यहीं खिला
शिक्षा संस्कृति और सभ्यता संस्कारों का संग मिला
जिसने दिया ज्ञान को जीवन जिसकी माटी है चंदन
देव, दैत्य औ गन्धर्वों की वाणी में जिसका वंदन।।

उसी सभ्यता नगरी की धूल माथ मैं रख लेता हूँ
पृष्ठों पर कुछ भाव सजा अपने मन की कह लेता हूँ।।

लिखे भाव जो मन को भाए जिसने मन को मान दिया
कंटक हो या पुष्प पंथ के सबको है सम्मान दिया
नहीं चाहता हूँ जग से केवल अपने मन की पाऊँ
लिखूँ भाव सब जन मानस के गीतों में उसको गाऊँ।।

शब्दों के कुछ पुष्प उठा श्रेष्ठ चरण में रख देता हूँ
पृष्ठों पर कुछ भाव सजा अपने मन की कह लेता हूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13मार्च, 2023

होली-जोगीरा सारा रा रा.. ।।

जोगीरा सारा रा रा.. ।।

दूर देश में जाइके करें देश के बात
राहुल जी के देश में देत न केहू साथ
जोगीरा सारा रा रा...।।

भारत जोड़न को चले लिए हाथ में हाथ
लेकिन उपचुनाव में मिलल ने केहू साथ
जोगीरा सारा रा रा..।।

माया चुप है, राहुल बोलें, लालू जी हैं दंग
बाबा जी के राज में न मिला किसी का संग
जोगीरा सारा रा रा..।।

दिल्ली की कुर्सी मिले मची हुई है जंग
सबके अपने स्वार्थ हैं आये न कोई संग
जोगीरा सारा रा रा...।।

ममता दंग बंगाल में यूपी में अखिलेश
आएं कैसे साथ में सबक मन में क्लेश
जोगीरा सारा रा रा...।।

होली के त्यौहार की मची हुई हुड़दंग
नेता जी को देख कर शर्माए खुद व्यंग्य
जोगीरा सारा रा रा..।।

बाबा जी के राज में हुआ विपक्ष नाकाम
भगवा रंग सब पर चढ़ा बोलो जय श्री राम
जोगीरा सारा रा रा..।।

खिला कमल चहुँओर है आया भारत संग
पंजा, झाड़ू, साइकिल, सबकी हालत तंग
जोगीरा सारा रा रा..।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय

इस बार करो कुछ होली में।

इस बार करो कुछ होली में।  

मन को मन की चाह जगे इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।

नयनों में सूनापन लेकर दूर कहाँ तक जाओगे
खुद से जितना दूर चलोगे उतना खुद को पाओगे
खुद से खुद ही मिल जाये इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।

ऊंच नीच का भेद रहे न मन में कोई खेद रहे न
मन से मन यूँ मिल जाये फिर कोई मनभेद रहे न
मन से मन का मेल मिले इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।

टूटी सरगम जुड़ जाये बिखरे सारे साज मिला दो
दूर ठहरती आवाजों में फिर अपनी आवाज मिला दो
नहीं अकेला रहे हृदय इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।

झूठे वादे झूठी कसमें झूठी शानो शौकत बस
झूठे भाषण झूठे राशन जन गण मन से घातें बस
टूटे भरम जाल सारे इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।

कितनी दूर अभी तक आये कितनी दूर अभी जाना
कहीं ख्वाहिशों के मेले औ सपनों का ताना-बाना
पलकों पे फिर स्वप्न सजे इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।

गीत गजल कवितायें कितनी कितने लिखे  छंद दोहे
सतरंगी जब भाव हृदय के पंक्ति-पंक्ति मन को मोहे
मन के सब अवसाद मिटे इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08मार्च, 2023

मुक्तक।



यहाँ हर बार जीवन ने लिखी सबकी कहानी है।
किसी की याद में ठहरी किसी की मय जुबानी है।।
लिखे कुछ भाव जीवन ने मेरे हिस्से में ऐसे।
कि बन कर गीत कुछ छाये कुछ आंखों का पानी है।।

किसी से है नहीं शिकवा नहीं कोई शिकायत है।
जमाने की यही शायद पुरानी ही रवायत है।।
भरोसा हो जहाँ ज्यादा वहीं पर दर्द ज्यादा है।
कि कुछ तो बात है ऐसी सभी में ये अदावत है।।

मैं क्या करूँगा।

मैं क्या करूँगा।   

है मिला जग से बहुत कुछ
प्यार भी सत्कार भी
और शब्दों से खिला है
गीत का संसार भी
पर गीत जो गा न पाए
गीत का क्या करूँगा
तुम हमारे हो न पाए
जग मिले क्या करूँगा।।

हैं लोग कहते शब्द में
है छुपा संसार भी
भाव जिस हिय में बसा हो
है वहीं पर प्यार भी
जक हृदय के भाव शंकित
मैं वहाँ क्या करूँगा
तुम हमारे हो न पाए
जग मिले क्या करूँगा।।

वक्त की पाबंदियों से
तुम घिरे हम भी घिरे
वक्त के आगोश से ये
पल न जाने कब गिरे
लम्हा छूटा हाथों से
शोक कर क्या करूँगा
तुम हमारे हो न पाए
जग मिले क्या करूँगा।।

है कहीं कुछ रोकता है
नैन के मृदु कोर को
गिर न जाये मौन होकर
बूँद बंधन तोड़ कर
आस में जब तक रहोगे
मैं न साँसें तजूँगा
दूर पर तुमसे हुआ तो
जग मिले क्या करूँगा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद

कैसे कह दूँ मन को अब भी चाह नहीं है।

कैसे कह दूँ मन को अब भी चाह नहीं है।  

दूर हुए थे जिन गलियों से उन गलियों ने पुनः पुकारा
कैसे कह दूँ उन राहों को अब भी मन की चाह नहीं है।।

कहने को कितनी ही बातें
पलकों में अलसाई रातें
अधरों की मृदु पाँखुरियों पे
मृदुल हास्य की वो सौगातें
रक्त कपोलों के डिम्पल में दिल कल डूबा अब भी हारा
कैसे कह दूँ उन सपनों की अब भी मन को चाह नहीं है।।

दूर क्षितिज पर मन का मिलना
कदम मिलाकर पग-पग चलना
कहना सुनना कितनी बातें
फिर कहने को और मचलना
दूर गगन की छाँव तले जब सांध्य-निशा का पंथ बुहारा
कैसे कह दूँ पुनर्मिलन की अब भी मन को चाह नहीं है।।

वीथी पे कुछ याद पुरानी
भूली बिसरी एक कहानी
कुछ साँसों में बसे अभी तक
और बहे कुछ बन कर पानी
कहीं दूर अंतर्मन पिघला यादों ने है पुनः पुकारा
कैसे कह दूँ उन यादों की अब भी मन को चाह नहीं है।।

वहीं दूर पर भोर सुहानी
खुशियों का अंबार लिए है
रातों की सिलवट की खातिर
पुष्पच्छादित हार लिए है
उसी भाव के अपनेपन ने मधु गीतों को दिया सहारा
कैसे कह दूँ उन गीतों की अब भी मन को चाह नहीं है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02मार्च, 2023

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...