मैं क्या करूँगा।
प्यार भी सत्कार भी
और शब्दों से खिला है
गीत का संसार भी
पर गीत जो गा न पाए
गीत का क्या करूँगा
तुम हमारे हो न पाए
जग मिले क्या करूँगा।।
हैं लोग कहते शब्द में
है छुपा संसार भी
भाव जिस हिय में बसा हो
है वहीं पर प्यार भी
जक हृदय के भाव शंकित
मैं वहाँ क्या करूँगा
तुम हमारे हो न पाए
जग मिले क्या करूँगा।।
वक्त की पाबंदियों से
तुम घिरे हम भी घिरे
वक्त के आगोश से ये
पल न जाने कब गिरे
लम्हा छूटा हाथों से
शोक कर क्या करूँगा
तुम हमारे हो न पाए
जग मिले क्या करूँगा।।
है कहीं कुछ रोकता है
नैन के मृदु कोर को
गिर न जाये मौन होकर
बूँद बंधन तोड़ कर
आस में जब तक रहोगे
मैं न साँसें तजूँगा
दूर पर तुमसे हुआ तो
जग मिले क्या करूँगा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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