इस बार करो कुछ होली में।
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।
नयनों में सूनापन लेकर दूर कहाँ तक जाओगे
खुद से जितना दूर चलोगे उतना खुद को पाओगे
खुद से खुद ही मिल जाये इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।
ऊंच नीच का भेद रहे न मन में कोई खेद रहे न
मन से मन यूँ मिल जाये फिर कोई मनभेद रहे न
मन से मन का मेल मिले इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।
टूटी सरगम जुड़ जाये बिखरे सारे साज मिला दो
दूर ठहरती आवाजों में फिर अपनी आवाज मिला दो
नहीं अकेला रहे हृदय इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।
झूठे वादे झूठी कसमें झूठी शानो शौकत बस
झूठे भाषण झूठे राशन जन गण मन से घातें बस
टूटे भरम जाल सारे इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।
कितनी दूर अभी तक आये कितनी दूर अभी जाना
कहीं ख्वाहिशों के मेले औ सपनों का ताना-बाना
पलकों पे फिर स्वप्न सजे इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।
गीत गजल कवितायें कितनी कितने लिखे छंद दोहे
सतरंगी जब भाव हृदय के पंक्ति-पंक्ति मन को मोहे
मन के सब अवसाद मिटे इस बार करो कुछ होली में
टूटे मन के तार जुड़ें इस बार करो कुछ होली में।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08मार्च, 2023
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